अमृतसर. ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी को लेकर अमृतसर में पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा प्रबंध कड़े कर दिए हैं। शहर की सड़कों पर 5500 से ज्यादा पुलिसकर्मी चप्पे-चप्पे पर नजर रखेंगे। अकेले हाल गेट से स्वर्ण मंदिर के रास्ते पर 1 हजार से कर्मचारी तैनात रहेंगे। इसके अलावा पुलिस कमिश्नर डॉ. सुखचैन सिंह गिल ने कड़े आदेश दिए हैं कि जहां कहीं भी थोड़ा सा माहौल खराब होता दिखे, ऐसा करने वाले को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाए। साथ ही पुलिस का खुफिया तंत्र गर्मख्यालियों की हर गतिविधि पर नजर रखेगा।
1 जून को ऑपेरशन ब्लू स्टार की बरसी के मद्देनजर पुलिस शहर के कई हिस्सों में फ्लैग मार्च निकालेगी। पुलिस कमिश्नर डॉ. सुखचैन सिंह गिल ने शहर की जनता से अपील की है कि वह शहर में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस को सहयोग दें। अगर कोई संदिग्ध इलाके में दिखाई देता है तो पुलिस कंट्रोल रूम में सूचना दें, सूचना देने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा।
पुलिस कमिश्नर ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर होने वाली किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए पुलिस को सख्त हिदायतें जारी की हैं। 60 से ज्यादा पीसीआर के गश्ती दलों को तैनात किया जा चुका है। जो पांच मिनट के भीतर घटनास्थल पर पहुंच जाएंगे।
पुलिस कमिश्नर ने आदेश जारी किया है कि अगर कोई शरारती तत्व शहर का माहौल खराब करने का प्रयास करे तो उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाए। पुलिस अधिकारियों को फील्ड में रहकर हर स्थिति पर नजर रखने को कहा गया है। सभी धार्मिक और अति संवेदनशील स्थलों के आसपास पड़े खराब पड़े सीसीवीटी कैमरों को भी ठीक करवाने को कहा गया है। इसके अलावा श्री दरबार साहिब तक आने वाले हर रास्ते पर नाकाबंदी कर दी गई है। हर सड़क पर कई स्थानों पर बैरिकेडिंग की जा चुकी है।
क्या था ऑपरेशन ब्लू स्टार? क्यों सिखों की भावनाएं हुईं थीं आहत?
जून का पहला सप्ताह और उसमें भी पांच जून का दिन देश के सिखों के जहन में एक दुखद घटना के साथ नक्श है। भारतीय सेना ने इस दौरान अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में प्रवेश करके आपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया था। दरअसल देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी देश के सबसे खुशहाल राज्य पंजाब को उग्रवाद के दंश से छुटकारा दिलाना चाहती थीं, लिहाजा उन्होंने यह सख्त कदम उठाया और खालिस्तान के प्रबल समर्थक जरनैल सिंह भिंडरावाले का खात्मा करने और सिखों की आस्था के पवित्रतम स्थान स्वर्ण मंदिर को उग्रवादियों से मुक्त करने के लिए यह अभियान चलाया। समूचे सिख समुदाय ने इसे हर मंदिर साहिब की बेअदबी माना और इंदिरा गांधी को अपने इस कदम की कीमत अपने सिख अंगरक्षक के हाथों जान गंवा कर चुकानी पड़ी।
आखिर हुआ क्या था?
दो जून को हर मंदिर साहिब परिसर में हज़ारों श्रद्धालुओं ने आना शुरु कर दिया था क्योंकि तीन जून को गुरु अर्जुन देव का शहीदी दिवस था। दूसरी ओर जब दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश को संबोधित किया तो ये स्पष्ट हो गया था कि सरकार स्थिति को ख़ासी गंभीरता से देख रही है और भारत सरकार सख्त कार्रवाई करने से भी नहीं हिचकेगी। सरकार ने उस समय पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों और बस सेवाओं पर रोक लगा दी, यही नहीं फ़ोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को पंजाब से बाहर कर दिया गया।
सेना ने स्वर्ण मंदिर को घेर लिया था
भारतीय सेना ने 3 जून को अमृतसर पहुँचकर स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर लिया। इससे पहले शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया था। हालात बेहद तनावपूर्ण हो गये थे। इसी बीच चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरु कर दी ताकि मंदिर में मौजूद मोर्चाबंद चरमपंथियों के हथियारों और असलहों का अंदाज़ा लगाया जा सके। लेकिन चरमपंथियों ने सेना की गोलीबारी का तगड़ा जवाब दिया। पांच जून को आखिरकार सेना ने बख़तरबंद गाड़ियों और टैंकों का इस्तेमाल करने का निर्णय किया। इसके बाद पांच जून की रात को सेना और चरमपंथियों के बीच तगड़ी भिड़ंत हुई।
काफी नुकसान हुआ
इस संघर्ष में भीषण ख़ून-ख़राबा हुआ। स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियाँ चलीं जिससे सिखों की भावनाएं आहत हुईं। यही नहीं सदियों बाद पहली बार ऐसा हुआ कि स्वर्ण मंदिर से पाठ छह, सात और आठ जून को नहीं हो पाया। सिख पुस्तकालय भी इस संघर्ष में जल गया।
राजनीति प्रभाव
भारत सरकार की इस कार्रवाई से सिख समुदाय की भावनाओं को बहुत ठेस पहुँची। स्वर्ण मंदिर पर हमले को धर्म पर हमला मान लिया गया और इस कार्रवाई की कीमत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। उनके दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने 31 अक्तूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी। इसके बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे शुरू हो गये। सिखों की जानमाल का काफी नुकसान हुआ और कांग्रेस को उसकी बड़ी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी।