मिजोरम में 3 की बजाय 4 दिसंबर को काउंटिंग:ईसाई समुदाय की मांग पर फैसला, कहा था- रविवार को चर्च जाना जरूरी
मिजोरम में अब 3 दिसंबर की जगह 4 दिसंबर को मतगणना होगी। शुक्रवार यानी 1 दिसंबर को चुनाव आयोग ने यह जानकारी दी। राज्य की 40 सीटों पर 7 नवंबर को वोटिंग हुई थी, काउंटिंग 3 दिसंबर यानी रविवार को होनी थी। जिसके विरोध में एनजीओ कॉर्डिनेशन कमेटी (NGOCC), सेंट्रल यंग मिजो एसोसिएशन (CYMA) और मिजो जिरलाई पॉल (MZP) जैसे संगठन प्रदर्शन कर रहे थे।
दरअसल, मिजोरम में बड़ी संख्या में क्रिश्चियन समुदाय के लोग रहते हैं। रविवार ईसाइयों के लिए पवित्र दिन है, और ईसाई समुदाय कई धार्मिक कार्यक्रम करता है। काउंटिंग के कारण इनमें बदलाव करना पड़ेगा, इसलिए मांग की जा रही थी कि इस दिन राज्य में वोट काउंटिंग न कराई जाए। राज्य की कुल आबादी करीब 11 लाख इनमें से 9.56 लाख ईसाई हैं।
लगातार चल रहा था विरोध प्रदर्शन काउंटिंग डे बदलने के लिए कई दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा था। शुक्रवार (1 दिसंबर) को इन लोगों ने राजभवन के पास एक रैली की। जिसमें NGOCC के चेयरमैन लालह्म छुआना ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि पॉलिटिकल पार्टी, चर्चों और NGO ने चुनाव आयोग से कई बार काउंटिंग की तारीख बदलने की अपील की, लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
मिजोरम की 40 विधानसभा सीटों पर 7 नवंबर को वोटिंग हुई थी। राज्य में 77.04% मतदान हुआ था। सेरछिप में सबसे ज्यादा 77.78%, तो सियाहा में सबसे कम 52.02% मतदान हुआ। आइजोल में 65.06% वोटिंग हुई। मिजोरम में 2018 के विधानसभा चुनाव में 81.61% वोट पड़े थे।
65 साल के कार्यकर्ता ने भूख हड़ताल की
आइजोल में 65 साल के एक्टिविस्ट लालबियाकथंगा वोटिंग वाले दिन 7 नवंबर को सुबह 7 बजे से 4 बजे तक भूख हड़ताल पर बैठे। उन्होंने मांग की थी कि चुनाव आयोग को 3 दिसंबर को होने वाली काउंटिंग का दिन बदलना चाहिए। 3 दिसंबर को रविवार है। कई पार्टियों ने भी मांग की थी कि रविवार को होने वाली काउंटिंग के दिन को बदलना चाहिए, क्योंकि इसके लिए चर्च के कार्यक्रम बदलने पड़ेंगे।
मिजोरम चुनाव के 4 समीकरण…
1. मिजो नेशनल फ्रंट, कांग्रेस और जोरम पीपुल्स मूवमेंट के बीच त्रिकोणीय मुकाबला
मिजोरम विधानसभा चुनाव में भाजपा का वर्चस्व ज्यादा नहीं रहा। यहां सत्ताधारी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF), जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला रहता है। 2018 में कांग्रेस को हराकर MNF ने 10 साल बाद सत्ता हासिल की थी। सबसे बड़ा उलटफेर था कि कांग्रेस तीसरे नंबर पर आ गई और विपक्ष की भूमिका जोरम पीपल्स मूवमेंट के पास चली गई है। वहीं भाजपा को पिछले चुनाव में सिर्फ एक सीट मिली थी।
2. मिजोरम के CM केंद्र में NDA के साथ हैं, लेकिन राज्य में अलग
CM जोरमथंगा की पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) भाजपा के नेतृत्व वाली नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) और केंद्र में सत्ताधारी NDA में शामिल है। हालांकि, MNF मिजोरम में भाजपा से अलग है। लोकसभा में MNF से एकमात्र सांसद लालरोसांगा हैं। वहीं राज्यसभा में भी MNF का एक ही सांसद हैं और उनका नाम के वनलालवेना है। वैसे तो यह पार्टी NDA के साथ रहती, मगर मणिपुर हिंसा को लेकर MNF की केंद्र सरकार से नाराजगी है।
3. मिजोरम में ईसाई वोटर्स सबसे अहम, CM का मोदी के साथ स्टेज शेयर करने से इनकार
मिजोरम में इस बार BJP और MNF अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। मणिपुर हिंसा की आंच मिजोरम तक फैली हुई है। CM जोरमथंगा ने 24 अक्टूबर को एक प्रोग्राम में कहा था, ‘मैं PM के साथ स्टेज शेयर नहीं करूंगा, क्योंकि मणिपुर में मैतेई लोगों ने चर्च जलाए। इसी वजह से हम BJP का साथ नहीं दे सकते।’
दरअसल, मिजोरम में 87 फीसदी आबादी ईसाई है। ऐसे में जोरमथंगा अपने ईसाई वोटरों का नाराज करने का रिस्क नहीं उठाना चाहते। इसके अलावा राज्य में इस बार शरणार्थी संकट से निपटना प्रमुख चुनावी मुद्दा है।
4. इस बार मणिपुर हिंसा का मिजोरम की पॉलिटिक्स पर असर
मिजोरम में इस बार के विधानसभा चुनाव में मणिपुर का मुद्दा काफी अहम रहने वाला है। 25 जुलाई को आइजोल में हजारों लोगों ने कुकी समुदाय के समर्थन में रैली निकाली थी। इस रैली में CM जोरमथंगा भी शामिल हुए थे। उनका इशारा साफ था कि मणिपुर हिंसा इस बार चुनावी मुद्दा बनने वाला है।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने 16 अक्टूबर को मिजोरम के आइजोल में एक रैली को संबोधित करते हुए मणिपुर पर बात की थी। राहुल ने कहा था- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिपुर की तुलना में इजराइल में होने वाली घटनाओं की ज्यादा चिंता है। 3 मई के बाद से हिंसा से जूझ रहा मणिपुर अब एक राज्य नहीं रहेगा बल्कि जाति के आधार पर दो हिस्सों में बंट जाएगा।