कैलाश मानसरोवर यात्रा 5 साल बाद फिर शुरू होगी:भारत-चीन के बीच डायरेक्ट फ्लाइट भी शुरू होगी, विदेश सचिवों की मीटिंग में फैसला
इस साल गर्मी के मौसम से कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू हो जाएगी। इसके साथ ही भारत-चीन के बीच डायरेक्ट फ्लाइट्स सर्विस भी शुरू होगी। हालांकि अभी इसकी डेट नहीं आई है।
यह जानकारी सोमवार को विदेश मंत्रालय ने एक बयान में दी। इसमें बताया गया कि यह 2 बड़े फैसले बीजिंग में भारत के विदेश मंत्री विक्रम मिस्त्री और चीनी मंत्री वांग यी के बीच दो दिन की बैठक में लिए गए।
फ्लाइट सर्विस और यात्रा 2020 से बंद थी
कैलाश मानसरोवर यात्रा और दोनों देशों के बीच फ्लाइट सर्विस 2020 से बंद थी। इसकी वजह दोनों के बीच सीमा विवाद के बाद खराब रिश्ते और कोविड की लहर थी। भारत-चीन के बीच जून 2020 में डोकलाम विवाद हुआ था और 2019 मार्च में कोविड की पहली लहर आई थी।
समझौते की नींव कजान में पड़ी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पिछले साल अक्टूबर में 5 साल बाद कजान में मिले थे। तब दोनों देशों ने आपसी संबंधों की स्थिति पर चर्चा की और संबंधों को बेहतर बनाने के लिए कुछ कदम उठाने पर सहमति जताई थी।
इसके बाद से पिछले 3 महीने में चीन-भारत सीमा के विवादित इलाके डेमचोक और देपसांग से दोनों देशों की सेनाएं के पीछे हटने के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा और फ्लाइट सर्विस शुरू करने के फैसले हुए हैं।
कोरोना के पहले हर महीने 539 सीधी उड़ानें थीं
कोरोना महामारी से पहले दोनों देशों के बीच हर महीने 539 सीधी उड़ानें हुआ करती थीं। इनकी कैपेसिटी कुल मिलाकर 1.25 लाख सीटों से ज्यादा थी। इन फ्लाइट्स में एयर इंडिया, चाइना साउथर्न एयरलाइन्स, चाइना ईस्टर्न एयरलाइन्स जैसी कंपनियां शामिल थीं। उड़ान सेवा निलंबित रहने के बाद दोनों देशों के यात्री बांग्लादेश, हांगकांग, थाइलैंड और सिंगापुर जैसे कनेक्टिंग हब के जरिए यात्रा करते थे। हालांकि यह यात्रा महंगी पड़ती थी।
एयर ट्रैफिक की जानकारी देने वाली कंपनी सिरियम के मुताबिक जनवरी-अक्टूबर 2024 के बीच भारत-चीन की यात्रा करने वाले लोगों की संख्या 4.6 लाख थी। वहीं, 2019 के शुरुआती 10 महीने में यह आंकड़ा 10 लाख था। जनवरी से अक्टूबर 2024 के बीच वाया हांगकांग 1.73 लाख, वाया सिंगापुर 98 हजार, वाया थाईलैंड 93 हजार, वाया बांग्लादेश 30 हजार लोगों ने दोनों देशों की यात्राएं कीं।
कैलाश मानसरोवर का ज्यादातर एरिया तिब्बत में
कैलाश मानसरोवर का ज्यादातर एरिया तिब्बत में है। तिब्बत पर चीन अपना अधिकार बताता है। कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से भूटान तक फैली हुई है। इस इलाके में ल्हा चू और झोंग चू नाम की दो जगहों के बीच एक पहाड़ है। यहीं पर इस पहाड़ के दो जुड़े हुए शिखर हैं। इसमें से उत्तरी शिखर को कैलाश के नाम से जाना जाता है।
इस शिखर का आकार एक विशाल शिवलिंग जैसा है। उत्तराखंड के लिपुलेख से यह जगह सिर्फ 65 किलोमीटर दूर है। फिलहाल कैलाश मानसरोवर का बड़ा इलाका चीन के कब्जे में है। इसलिए यहां जाने के लिए चीन की अनुमति चाहिए होती है।
मान्यता- कैलाश पर्वत पर भगवान शिव रहते हैं
हिंदू धर्म में ये मान्यता है कि भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। यही वजह है कि हिंदुओं के लिए ये बेहद पवित्र जगह है। जैन धर्म में ये मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ ने यहीं से मोक्ष की प्राप्ति की थी। 2020 से पहले हर साल करीब 50 हजार हिंदू यहां भारत और नेपाल के रास्ते धार्मिक यात्रा पर जाते रहे हैं।
2020 से चीन, भारतीयों को कैलाश मानसरोवर की यात्रा की इजाजत नहीं दे रहा है। इसी महीने भारत सरकार ने एक RTI के जवाब में कहा है कि कैलाश मानसरोवर जाने से रोककर चीन 2013 और 2014 में हुए दो प्रमुख समझौते तोड़ रहा है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए भारत और चीन के बीच दो समझौते हुए थे कैलाश मानसरोवर जाने के लिए भारत और चीन के बीच दो प्रमुख समझौते हुए हैं…
पहला समझौता: 20 मई 2013 को भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रा मार्ग से होकर कैलाश मानसरोवर जाने के लिए ये समझौता हुआ। उस समय के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच यह समझौता हुआ था। इससे यात्रा के लिए लिपुलेख दर्रा मार्ग खुल गया।
दूसरा समझौता: 18 सितंबर 2014 को नाथूला के जरिए कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते को लेकर भारत और चीन में ये समझौता हुआ था। विदेश मंत्री के तौर पर सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री वांग यी के साथ यह समझौता किया था।
दोनों समझौते की भाषा लगभग एक समान है। ये समझौते दोनों देशों के विदेश मंत्री के पेपर पर हस्ताक्षर के दिन से लागू हैं। हर 5 साल के बाद ऑटोमेटिक तरीके से इसकी समय सीमा बढ़ाने की बात समझौते में लिखी है।
कैलाश पर्वत की ऊंचाई एवरेस्ट से कम, लेकिन अब तक कोई चढ़ नहीं सका दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत एवरेस्ट पर अब तक 7000 लोग चढ़ाई कर चुके हैं। इसकी ऊंचाई 8848 मीटर है, जबकि कैलाश पर्वत की ऊंचाई एवरेस्ट से करीब 2000 मीटर कम है। फिर भी इस पर आज तक कोई चढ़ नहीं सका है। कुछ लोग इसकी 52 किमी की परिक्रमा करने में जरूर सफल रहे हैं।
दरअसल, कैलाश पर्वत की चढ़ाई एकदम खड़ी है। पर्वत का ऐंगल 65 डिग्री से ज्यादा है। वहीं, माउंट एवरेस्ट का ऐंगल 40 -50 डिग्री का है, इसलिए कैलाश की चढ़ाई कठिन है। इस पर चढ़ाई की कई कोशिशें हुई हैं। आखिरी कोशिश 2001 में हुई थी। हालांकि, अब कैलाश पर चढ़ाई पूरी तरह से प्रतिबंधित है।
उत्तराखंड की व्यास घाटी से कैलाश पर्वत के दर्शन कर रहे श्रद्धालु कैलाश मानसरोवर यात्रा बंद होने के बाद से श्रद्धालु उत्तराखंड की व्यास घाटी से कैलाश पर्वत के दर्शन कर रहे थे। पिछले साल उत्तराखंड पर्यटन विभाग, सीमा सड़क संगठन (BRO) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के अधिकारियों की एक टीम ने कैलाश पर्वत के स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाले स्थान की खोज की थी।
3 अक्टूबर 2024 को पहली बार भारतीय इलाके से पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन पुराने लिपुलेख दर्रे से हुए। यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी में स्थित है।