राज्यसभा / मोदी की टिप्पणी में शामिल एक शब्द को सभापति ने कार्यवाही से हटाया, उनके प्रधानमंत्री रहते पहली बार ऐसा हुआ

सभापति नायडू ने नरेंद्र मोदी के साथ गुलाम नबी आजाद की टिप्पणी का एक शब्द भी कार्यवाही से हटाया गुरुवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब देते समय सीएए-एनपीआर को लेकर सदन में हंगामा हुआ था

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नई दिल्ली. राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर गुरुवार को बहस के दौरान प्रधानमंत्री की टिप्पणी का एक शब्द सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया। सभापति एम.वेंकैया नायडू ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर चर्चा के दौरान की गई मोदी की टिप्पणी में से एक शब्द को हटाने (विलोपित करने) के निर्देश दिए। हालांकि, प्रधानमंत्री की टिप्पणी को कार्रवाई से विलोपित करना दुर्लभ मामलों में शुमार है। मोदी के प्रधानमंत्री रहते उनके साथ ऐसा पहली बार हुआ है। हालांकि, दोनों नेताओं के शब्द कौन से थे, इसका खुलासा नहीं किया गया।

राज्यसभा सचिवालय से जारी बयान में कहा गया, “सभापति ने राज्यसभा में 6 फरवरी को शाम 6:20 से 6:30 बजे के बीच हुई कार्यवाही के कुछ हिस्से कार्यवाही से हटाने के निर्देश दिए हैं।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की टिप्पणी का भी एक शब्द कार्यवाही से हटा दिया गया। दोनों नेताओं ने सदन में हंगामे के दौरान यह टिप्पणियां की थीं।

एनपीआर और सीएए पर बहस हुई

राज्यसभा में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) पर विपक्ष के आरोपों का जवाब देने हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस शब्द का इस्तेमाल किया था। वहीं, गुलाम नबी आजाद ने प्रधानमंत्री के भाषण के बाद सीएए का जिक्र करते हुए इस शब्द का इस्तेमाल किया। राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने दोनों ही नेताओं के भाषण में इस्तेमाल हुए इन शब्दों को सदन की कार्यवाही से विलोपित करने के निर्देश दिए।

कांग्रेस पर ‘यू-टर्न’ ले रही: मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनपीआर को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लिए जरूरी बताते हुए कहा था कि कांग्रेस इस पर ‘यू-टर्न’ ले रही है। उन्होंने कहा- कांग्रेस सरकार ने 2010 में एनपीआर की शुरुआत की थी। इसे 2015 में अपडेट भी किया गया था।

हम धार्मिक विभाजन के खिलाफ: आजाद

राज्यसभा में प्रधानमंत्री के जवाब के बाद गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि कांग्रेस ने पाकिस्तान के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का समर्थन किया है, लेकिन हम धार्मिक आधार पर कानून बनाने के पक्ष में नहीं हैं।

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