बठिंडा. कहा जाता है कि नगर निगम चुनाव में जीत सत्ताधारी दल की होती है क्योंकि तंत्र व शासन उनका होता है व राजपाठ के होते साम, दाम, दंड और भेद की नीति का फायदा भी मिलता है। फिलहाल साल 2021 में फरवरी तक होने वाले नगर निगम चुनाव कांग्रेस के लिए अिग्नपरीक्षा से कम नहीं होगी। इस दौरान सरकार की पिछले चार साल की कारगुजारी का जहां अवलोकन होगा वही करीब 9 माह के कोरोना काल में सरकार की कोशिशों को सफल बताने का फतवा भी हासिल करना होगा।
यह चिंता बठिंडा शहरी इलाके से विधायक व राज्य के वित्तमंत्री मनप्रीत सिंह बादल के मन में भी चल रही है इसका प्रमाण गत दिवस शहरी इलाके में आयोजित क जनसभा के दौरान उनकी तरफ से दिए बयान से भी मिलता है। उन्होंने कहा था कि पिछले चार साल में उन्होंने शहर की सेवा की, विकास काम करवाएं। अब लोगों ने तय करना है कि अगर उन्होने सही में शहर का विकास करवाया है तो उन्हें जीत दिलवाना वर्ना किसी दूसरे को साल 2022 में विधायक बना देना। उनका सीधा सा इशारा आने वाली विधानसभा चुनावों के साथ हाल में होने वाले नगर निगम चुनावों की तरफ था। फिलहाल कांग्रेस के स्थानीय नेता भी इस बात को भलीभांति समझते हैं कि यह नगर निगम आगामी विधानसभा चुनावों से पहले काफी अहम रहने वाले हैं। इसी के चलते शहर में लंबे समय से पेडिंग योजनाओं को फंड की कमी के बावजूद शुरू करवाया जा रहा है।
राज्य में दूसरे जिलों व निकायों को बेशक फंड की कमी का सामना करना पड़ रहा है लेकिन बठिंडा नगर निगम में सड़क बनाने, स्ट्रीट लाइटें लगवाने, सीवरेज का काम करवाने से लेकर साफ सफाई के लिए संसाधनों का प्रबंध किसी तरीके से किया जा रहा है। चुनाव आचार सिहंता लागू होने से पहले गली मुहल्लों के लिए खजाने के दरवाजे खोले जा रहे हैं। इन तमाम बातों के बीच कांग्रेस को इस बात की चिंता भी है कि चुनाव के दौरान मैदान में ऐसे उम्मीदवार उतारे जाए जिनका पिब्लक से सीधा संवाद हो व लोगों के बीच रहने वाला हो। दूसरे दलों से कांग्रेस में आए लोगों को रजिर्व रखा जा रहा है व पहल पुराने वर्करों को देने की बात की जा रही है। रजिर्व वर्कर व नेता को सिर्फ आपातकाल या फिर बेहतर उम्मीदवार नहीं मिलने की स्थिति में ही मैदान में उतारा जाएगा। यही कारण है कि कांग्रेस ने पहले विभिन्न वार्डों से वर्करों की लिस्ट मांगी वही इसमें चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों की दावेदारी मांगी। पहले चरण में शहर की टीम ने पूरी टीम को स्कैन किया व अब दूसरे चरण में राज्य के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल स्वयं उम्मीदवारों की लिस्ट पर विचार करेंगे व इसके बाद हाईकमान इसमें कुछ फेरबदल के बाद मोहर लगाएंगी।
इसमें अंतिम फैसला हाईकमान पर छोड़ने की बात करने का एक फायदा यह भी रहेगा कि संभावित उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिलने पर स्तानीय टीम के साथ उनके संबंधों में किसी तरह का फर्क नहीं पड़ेगा व बगावत के सुरों को दबाने में सहयोग मिलेगा। वर्तमान हालात में कांग्रेस को भी पता है कि सत्ता हाथ में होने के बावजूद स्थानीय निकाय के चुनावों में लोगों के रु ख व रु झान को पढ़ना आसान नहीं होता है।
तंत्र व व्यवस्था हाथ में होने का फायदा कुछ हद तक मिलेगा।लोकतंत्र में लोगों के मत को अपने पक्ष में करने के लिए मेहनत हर स्तर पर करनी लाजमी है। इसमें कांग्रेस का प्रमुख मुकाबला आम आदमी पार्टी के साथ अकाली दल के साथ रहने वाला है जबकि शहरी वोटरों में पैठ रखने वाली भाजपा भी उसे कड़ी टक्कर देगी। इसी बीच करीब 10 वार्ड ऐसे हैं जहां कोई भी दल स्वयं को जीत की स्थिति में होने का दावा नहीं कर पा रही है जिसमें अधिकतर वार्ड लाइन पार इलाके के है। इन वार्डों में आजाद उम्मीदवार जीतते रहे हैं। अकाली दल स्वयं को 20 वार्डों में मजबूत मानकर चल रही है जबकि 30 में कड़े मुकाबले की तरफ है वही रहते 30 वार्डों में कांग्रेस स्वयं को मजबूत मानकर चल रही है।
भाजपा के लिए इस बार हर वार्ड कड़े मुकाबले की स्थिति वाला है क्योंकि अकाली दल के साथ गठजोड़ के समय उसे हिंदु व सिक्ख दोनों वोट पड़ते रहे हैं जबकि शहर के सभी वार्ड ऐसे है जहां अग्रवाल व जाट वोट का प्रतिशत अंतर पांच से 10 फीसदी है। पूरी तरह से किसानी आंदोलन में जुटी आप जाट व बाहरी बिस्तयों की वोट को अपनी झोली में डालने के लिए मेहनत में जुटी है। वैसे भी आप ने दिल्ली माडल के माध्यम से स्वयं को झुग्गी झोपड़ी व गरीब समुदाय की पार्टी होने का लेबल हासिल किया है।
नगर निगम चुनाव-कांग्रेस को राजपाठ के होते साम, दाम, दंड और भेद की नीति का मिलेगा फायदा पर जनमत का भय दिल व दिमाग में
-वित्तमंत्री मनप्रीत सिंह बादल भी जनसभा में लोगों से कर चुके हैं विकास के नाम पर वोट देने की अपील
Hari Dutt Joshi/ Chief Editor
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