बठिंडा. नगर निगम बठिंडा के चुनावों में अब तक उसी राजनीतिक दल को बहुमत मिलता रहा है जो राज्य की सत्ता में काबिज है। कहने का भाव इस बार कांग्रेस राज्य की सत्ता में काबिज है जो उम्मीद भी यही की जा रही है कि बठिंडा नगर निगम चुनाव में वह बहुमत हासिल करे लेकिन इस बार चुनावी मुद्दों के साथ चुनावी बयार पिछले आंकन से उलट है। साल 2021 में होने वाले निकाय चुनाव में कांग्रेस के लिए निकाय की सत्ता हासिल करना इतना आसन नहीं रहने वाला है। मुकाबला दो दलों का नहीं बल्कि चार दलों के बीच सीधा है जबकि पार्टी की तरफ से टिकट नहीं मिलने से नाराज लोगों का खेमा अलग से होगा जबकि समाज सेवियों के मैदान में उतरने से मुकबला छह दलों का बन गया है। 50 वार्डों में चुनाव लड़ने वाले छह दलों का समूह कांग्रेस के सत्ता में बैठने के सपनों को तोड़ने की जुगत में लगा है।
चुनावी रणनीति में सभी दलों ने कर दी तबदीली
यही कारण है कि इस बार सभी राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति में पूरी तरह से तबदीली कर दी है। उम्मीदवारों के चयन से लेकर चुनाव प्रचार तक के सभी नियम बदल दिए गए है। निगम चुनावों में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि उम्मीदवारों का चुनाव करने से पहले फिल्ड सर्वे करवाया गया हो लेकिन इस बार कांग्रेस, अकाली दल व आप के साथ भाजपा फिल्ड सर्वे पर जोर दे रही है। इसमें वार्ड में उम्मीदवार बनाने से पहले वार्ड के लोगों से पूछा जाएगा कि उनकी पसंद क्या है।
ऐसे लिया जाएगा उम्मीदवारों का फीडबैक
कांग्रेस के पास एक वार्ड में छह संभावित दावेदार है तो सभी का फीडबैक लोगों से लिया जाएगा। इसमें उम्मीदवार की छवि कैसी है, कितने लोग उसे पसंद करते हैं, किस वर्ग में उसकी पैठ है, लोगों के साथ उसका संपर्क कितना है जैसे सवाल लोगों से पूछकर एक चार्ट तैयार होगा। उसके बकायदा अंक भी होगें, इसमें जो संभावित दावेदार सबसे ज्यादा अंक लेगा उसे ही वहां उम्मीदवारी दी जाएगी भाव सीधे तौर पर जीत से पहले जीत की जमीन तैयार होगी। यही फार्मूला अकाली दल व दूसरे दल अपना रहे हैं। कोई बाहरी एजेंसी की मदद ले रहा है तो कोई अपने कार्यकर्ताओं की टीम बनाकर वार्ड में दौरा कर लोगों से मिल रहे हैं। इस स्थिति में स्पष्ट है कि इस बार पुराना कार्यकर्ता, टक्साली कार्यकर्ता व सिटिंग पार्षद जैसी शब्द चुनाव की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं होंगे बल्कि अगर कोई व्यक्ति दल में नया आया है और उसकी क्षवि साफ है व चुनाव जीतने की समर्थता रखता है तो उसे कांग्रेस, आप, अकाली व भाजपा टिकट देंगे।
फार्मूले के फायदे पर नुकसान भी होगा राजनीतिक दलों को
इस फार्मूले के जहां ढेंरों फायदे हैं वही इसका एक नुकसान भी होगा। पुराना वर्कर व पूर्व पार्षद टिकट नहीं मिलने से नाराज हो बागी होगा व इस स्थिति में चुनाव में आजाद चुनाव लड़ने वाले लोगों की भी भरमार होगी। इन्हें मनाने के जुगाड़ भी लगेंगे व दूसरे दल बेहतर उम्मीदवार नहीं होने की स्थिति में इन्हें पद का प्रलोभन दे अपने खेमे में शामिल करेगा। फायदा स्पष्ट है कि बेहतर क्षवि व लोगों की पसंद वाला उम्मीदवार पार्टी को जीत की तरफ लेकर जाएगा। अब चुनाव प्रक्रिया में उम्मीदवार के चयन के बाद चुनाव प्रचार की बारी आएगी तो इस बार के चुनाव फिल्ड में कम तो सोशल मीडिया में ज्यादा प्रचारित होंगे। संभावित उम्मीदवारों ने अपने फेसबुक पेज, वट्सएप ग्रुप, यूट्यूब पेज बनाकर अभी से चुनाव प्रचार की मुहिम शुरू कर दी है।
इस बार पार्टी के अलग पेज व ग्रुप होंगे तो उम्मीदवार व समर्थकों के भी अलग से ग्रुप व पेज बन रहे हैं। कोरोना काल में रैली व चुनावी सभा होगी लेकिन इससे ज्यादा वर्किंग सोशल मीडिया पर होगी क्योंकि किसान आंदोलन के दौरान जिस तरह से लोगों ने मुद्दों को आम लोगों तक पहुंचाकर समर्थन जुटाया उसे से उत्साहित उम्मीदवार इस बार नगर निगम चुनाव के मुद्दों को सोशल प्लेटफार्म पर सजा रहे हैं व लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें पिछले कुछ साल से किए कार्यों के क्लाज बनाए जा रहे हैं वही समाज के लिए किए कार्य़ों की विडियो बनाकर उसमें स्वयं को सबसे ज्यादा लोगों की सेवा करने वाला सेवक बताया जा रहा है।
बहूं-बेटे के लिए मांग रहे समर्थन
फिलहाल सोशल प्लेटफार्म में कोई स्वयं के लिए तो कोई अपनी बेटी व बहूं या फिर बेटे व पिता के लिए लोगों से समर्थन मांग रहा है। फिलहाल चुनाव फरवरी माह में होने की उम्मीद है, कोरोना महामारी का असर भी है व सरकार की गाइडलाइन भी लागू करनी है पर उम्मीद की वैक्सीन भी बाजार में आने को तैयार है। किसान आंदोलन ने कड़कती ठंड में गर्मी पैदा कर रखी है तो निगम चुनावों की आहट ने गली मुहल्लों में सर्गमियां शुरू कर दी है। अब चुनाव से पहले हर स्थिति व प्रस्थिति को देखते तकनीक भी इस्तेमाल हो रही है व इसमें नए-नए प्रयोग भी किए जा रहे हैं। उक्त सभी दांवपेच लोगों में कितना असर डालेंगे व किसे जीत का ताज पहनाएंगे यह तो आने वाला समय ही बताएंगा।