15 जनवरी को मनाई जाएगी मकर संक्रांति, पूजा, दान और स्नान का क्या रहेगा सही समय, यहां जानें

वैदिक शास्त्रों के मुताबिक उत्तरायण देवताओं का दिन है. इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसीलिए इसे मकर सक्रांति कहते हैं.

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नई दिल्ली: मकर संक्रांति का पर्व बेहद खास माना गया है. इस बार 15 जनवरी को ये पर्व मनाया जाएगा. इस दिन किया गया दान सर्वश्रेष्ठ माना गया है वहीं इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और पूजा अर्चना करने से व्यक्ति के कई संकट दूर हो जाते हैं. मकर संक्रांति एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना भी है. जिसका हर व्यक्ति पर प्रभाव पड़ता है. आइए जानते हैं मकर संक्रांति के पर्व के बारे में…

मकर संक्रांति है दान का पर्व

मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा. सूर्य जब मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर जाता है तो इस पूरी प्रक्रिया को उत्तरायण कहते हैं. 14 जनवरी को रात्रि में सूर्य उत्तरायण होगी. वैदिक शास्त्रों के मुताबिक उत्तरायण देवताओं का दिन है. इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसीलिए इसे मकर सक्रांति कहते हैं. इस दिन स्नान, सूर्य उपासना, जप , अनुष्ठान, दान का विशेष महत्व है. इस दिन दान करने को सबसे अच्छा माना गया है. इस दिन काले तिल, गुड़, खिचड़ी, कम्बल आदि का दान किया जाता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी अपना अलग महत्व है.

मकर संक्रांति पंचाग के अनुसार

14 जनवरी की रात्रि में 2.22 पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा. संक्रांति सूर्यास्त के बाद होगी. पुण्यकाल सूर्योदय से 15 जनवरी को सायंकाल 5:34 बजे तक रहेगा. दान और स्नान 15 जनवरी को किया जाएगा.

लोहड़ी का पर्व लाएगा खुशहाली

यह पर्व 13 जनवरी को मनाया जाएगा. लोहड़ी सिख, पंजाबी समुदाय का प्रमुख त्यौहार है. लोहड़ी मकर सक्रांति के पहले आता है. लोहड़ी का पर्व खुशहाली का पर्व है जब खेतों में पकने के बाद फसलों की कटाई शुरू होती है तो इस पर्व को मनाकर ईश्वर और प्रकृति का धन्यवाद दिया जाता है. इस दिन खुशी में गाते हैं झूमते हैं.

इस बार संक्रांति 15 जनवरी 2020 को मनाई जाएगी। संक्रांति ‘गर्दभ’ पर सवार होकर 14 जनवरी शाम को आ रही है। संक्रांति का उपवाहन मेष है। संक्रांति गर्दभ पर सवार होकर गुलाबी वस्त्र धारण करके मिठाई का भक्षण करते हुए दक्षिण से पश्चिम दिशा की ओर जाएगी।

14 जनवरी को शाम 7.53 बजे सूर्य देव धनु से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। चूंकि सूर्य का राशि परिवर्तन सूर्यास्त के बाद होगा। इसके चलते पुण्यकाल 15 जनवरी को सुबह श्रेष्ठ रहेगा। जिस रात्रि में सूर्य, मकर राशि में प्रवेश करता है उसके अगले दिन को पुण्य काल माना जाता है। इस बार सूर्य 14 जनवरी की शाम के बाद मकर राशि में प्रवेश कर रहा है, इसलिए 15 जनवरी को सुबह पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद तिल, गुड़ का दान किया जाएगा।

संक्रांति की विशेषता
नाम – महोदर
प्रवेश – दक्षिण
गमन – पश्चिम
वाहन – गर्दभ
उपवाहन – मेष
वस्त्र – गुलाबी
भक्ष्य पदार्थ – मिठाई
पुष्प – केतकी
वय – युवावस्था
स्थिति – सोती हुई
पात्र – कांसा

आभूषण – मूंगा


संक्रांति का 12 राशियों को मिलेगा यह फल
1. मेष-  उच्च पद की प्राप्ति होगी।
2. वृषभ-  महत्वपूर्ण योजनाएं प्रारंभ होने के योग बनेगें।
3. मिथुन- ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी।
4. कर्क- कलह-संघर्ष, व्यवधानों पर विराम लगेगा।
5. सिंह-  किसी बड़ी उपलब्धि की प्राप्ति होगी।
6. कन्या-  शुभ समाचार मिलेगा।  
7. तुला- व्यवसाय में बाहरी संबंधों से लाभ तथा शत्रु अनुकूल होंगे।
8. वृश्चिक- विदेशी कार्यों से लाभ तथा विदेश यात्रा होगी।
9. धनु- चहुंओर विजय होगी।
10. मकर-  अधिकार प्राप्ति होगी।
11. कुंभ- विरोधी परास्त होंगे। भेंट मिलेगी।
12. मीन- सम्मान, यश बढ़ेगा।

सूर्य संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। संत-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। मकर संक्रांति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है। यह संपूर्ण भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में आयोजित होता है।


* विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं- तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण, तिल से आहुति, तिल का उबटन लगाना।


* सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं। मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए।


* रामायण काल से भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। राम कथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है।


* राजा भगीरथ सूर्यवंशी थे, जिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है।


* कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मातु गंगे का पदार्पण हुआ था, वह मकर संक्रांति का दिन था। पावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, ‘मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।’


* महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है।

* सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।


*सूर्य की सातवीं किरण का शुभ प्रभाव चाहिए तो मकर संक्रांति का अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। सुख, सेहत, सौभाग्य, सफलता, संतान और समृद्धि के लिए यही किरण मार्ग रोशन करती है। इसी में आशीर्वाद की और किस्मत चमकाने की अचूक शक्ति होती है।

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