MP: शिवराज ने कराई 106 विधायकों की परेड, गवर्नर बोले- संविधान के तहत होगा एक्शन,शिवराज बोले- कमलनाथ रणछोड़दास हैं, उनकी सरकार को कोरोना भी नहीं बचा सकता

मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर छाया संकट अब कुछ दिनों के लिए टलता हुआ दिख रहा है. आज फ्लोर टेस्ट होने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन अब विधानसभा की कार्यवाही को 26 मार्च तक के लिए टाल दिया गया है. राज्यपाल लालजी टंडन ने अपने अभिभाषण में विधायकों से नियम का पालन करने को कहा. बता दें कि कांग्रेस के 22 विधायकों ने इस्तीफा देने की बात कही है, जिसके बाद से कमलनाथ सरकार पर संकट बरकरार है.

  • मध्य प्रदेश में जारी है सियासी संकट,26 मार्च तक विधानसभा की कार्यवाही स्थगित
  • BJP ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका, राज्यपाल ने विधानसभा को संबोधित किया
  • विधायकों को दायित्व निभाने की सलाह, कमलनाथ का राज्यपाल को पत्र- मौजूदा हालात में फ्लोर टेस्ट कराना अलोकतांत्रिक
  • बेंगलुरु में मौजूद सिंधिया समर्थक कांग्रेस के 22 बागी विधायक भी भोपाल नहीं पहुंचे
  • कोरोना का हवाला देकर कार्यवाही राज्यसभा चुनाव तक स्थगित, भाजपा सुप्रीम कोर्ट पहुंची

भोपाल। मध्य प्रदेश में 106 विधायकों की सूची ले कर बीजेपी राजभवन पहुंची. राज्यपाल लालजी टंडन ने विधायकों को आश्वासन दिया और कहा, “आप निश्चिंत रहें. आपके अधिकारों का हनन नहीं होगा.” इसके बाद बीजेपी नेताओं ने राजभवन में नारेबाज़ी की. इससे पहले 26 मार्च तक के लिए विधानसभा स्पीकर ने बजट सत्र स्थगित कर दिया था. मध्य प्रदेश बीजेपी ने पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. मध्य प्रदेश की राजनीतिक सरगर्मियों के मुताबिक़, सोमवार को विधान सभा में फ़्लोर टेस्ट होने के संकेत मिल रहे थे.

राज्यपाल के सामने विधायकों की परेड
भारतीय जनता पार्टी ने अपने सभी 106 विधायकों की राज्यपाल के सामने परेड करवाई और समर्थन की सूची सौंपी. इस दौरान राज्यपाल ने विधायकों को भरोसा दिया कि वह संविधान के अनुसार कार्रवाई करेंगे. गवर्नर बोले कि विधायकों के अधिकारों का हनन नहीं होगा. राज्यपाल से मुलाकात के बाद बीजेपी ओर से कहा गया कि हमने राज्यपाल को सूचित किया कि आपके आदेश का पालन नहीं हुआ है.

 

इसके ये मायने हैं कि फ्लोर टेस्ट 26 मार्च तक टल गया है, लेकिन शर्तें लागू हैं क्योंकि…

1) मामला अदालत में पहुंचा, इसलिए 26 मार्च से पहले फ्लोर टेस्ट मुमकिन
फ्लोर टेस्ट में देरी के विरोध में भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। सुनवाई के दौरान भाजपा सुप्रीम कोर्ट से यह मांग करेगी कि स्पीकर को जल्द फ्लोर टेस्ट कराने के निर्देश दिए जाएं। इसके अलावा अगर स्पीकर अगले 10 दिन के भीतर बागी विधायकों को अयोग्य करार देते हैं तो भी मामला हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जा सकता है। कोर्ट में तुरंत सुनवाई हुई तो 26 मार्च से पहले भी फ्लोर टेस्ट हो सकता है।
एक्सपर्ट व्यू : संवैधानिक मामलों के जानकार फैजान मुस्तफा के मुताबिक, स्पीकर के पास दो विकल्प हैं। या तो वे विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लें या उन्हें डिस्क्वालिफाई (अयोग्य) करार दें। स्पीकर अपने फैसले को डिले कर सकते हैं, ताकि सत्ताधारी पार्टी के लोगों को बागियों को मनाने का कुछ वक्त मिल जाए। लेकिन दो विकल्पों के अलावा स्पीकर के पास कोई और चारा नहीं है।

2) राज्यपाल निर्देश दें तो भी 26 मार्च से पहले फ्लोर टेस्ट की संभावना
राज्यसभा चुनाव में 10 दिन बाकी हैं। इससे पहले अगर सियासी घटनाक्रम बदलता है तो कमलनाथ और भाजपा, दोनों ही अपने-अपने तर्क देकर राज्यपाल से फ्लोर टेस्ट कराने का अनुरोध कर सकते हैं। कमलनाथ 14 मार्च को राज्यपाल को पत्र लिखकर कह चुके हैं, ‘हम फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हैं, लेकिन 22 विधायकों को बंधक बनाकर यह संभव नहीं है। आप गृह मंत्री अमित शाह से कहें कि बेंगलुरु में बंधक विधायकों को छुड़ाएं।’ कमलनाथ ने बाद में गृह मंत्री को भी चिट्‌ठी लिखी थी।
एक्सपर्ट व्यू : फैजान मुस्तफा बताते हैं- राज्यपाल सरकार को एक निश्चित समय तक फ्लोर टेस्ट कराने को कह सकते हैं।

3) क्या राष्ट्रपति शासन लगने के आसार हैं?
ये भी एक संभावना है। इसके उदाहरण भी हैं। पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में महाराष्ट्र में चुनाव नतीजों के 19 दिन बाद राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। तब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य के तीन प्रमुख दलों भाजपा, शिवसेना और राकांपा को सरकार बनाने का न्योता दिया था, लेकिन कोई भी दल सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या बल नहीं जुटा पाया। 12 दिन बाद रातों-रात राष्ट्रपति शासन हटा और देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। इससे भी पहले जून 2018 में जम्मू-कश्मीर में जब भाजपा ने महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की। हालांकि, इसी बीच वहां राज्यपाल शासन लगा दिया गया।
एक्सपर्ट व्यू : फैजान मुस्तफा बताते हैं कि सरकार या स्पीकर जानबूझकर फ्लोर टेस्ट नहीं कराते तो प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का कारण बताकर राज्यपाल सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकते हैं।

कमलनाथ ने जताया था ऐतराज

आज ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पत्र लिखकर राज्यपाल लालजी टंडन को फ़्लोर टेस्ट नहीं कराए जाने की मांग की है.

कमलनाथ की चिट्ठी
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                                          Image captionकमलनाथ ने 16 मार्च को लिखी ये चिट्ठी
  • कमलनाथ ने अपने पत्र में लिखा, “मैं आपको स्मरण कराना चाहूंगा कि दिनांक 13 मार्च, 2020 को जब मैं आपसे मिला था तब मैंने आपको अवगत कराया था कि बीजेपी द्वारा कांग्रेस पार्टी के कई विधायकों को बंदी बनाकर कर्नाटक पुलिस के नियंत्रण में रखकर उन्हें विभिन्न प्रकार का बयान देने के लिए मजबूर किया जा रहा है.”
  • “मैंने यह स्पष्ट किया था कि ऐसी परिस्थितियों में विधानसभा में किसी भी फ़्लोर टेस्ट का कोई औचित्य नहीं होगा. और ऐसा करना पूर्ण रूप से अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक होगा. फ़्लोर टेस्ट का औचित्य तभी है जब सभी विधायक बंदिश से बाहर हों और पूर्ण रूप से दबावमुक्त हों.”

भारत के संविधान के अनुच्छेद 175 (2) में राज्यपाल की उल्लेखित विधिक शक्तियों द्वारा नबाम रेबिया एंड बमांग फेलिक्स बनाम डिप्टी स्पीकर, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा एवं अन्य 8 एससीसी 1 में स्पष्ट रूप से निम्नानुसार व्याख्यान किया हुआ है.

  • “हमारे मत में राज्यपाल और विधानसभा के बीच का संबंध संदेश भेजने के मामले में उसी हद तक सीमित है जिस हद तक मंत्रीपरिषद उचित समझे. वास्तव में हम इसके अलावा कोई अन्य निष्कर्ष निकाल ही नहीं सकते क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 175 सह पठित अनुच्छेद 163 (1) स्पष्ट रूप से यह प्रावधानित नहीं करता है कि राज्यपाल उपरोक्त शक्तियां अपने विवेकाधिकार से कर सकेंगे.”
  • “ऐसी स्थिति में हमें इस निष्कर्ष तक पहुंचने में कोई शंका नहीं है कि राज्यपाल द्वारा विधानसभा को भेजे जाने वाले संदेश मंत्रीपरिषद द्वारा दिए गए सलाह के अनुरूप ही होंगे. विधानसभा अध्यक्ष के कार्य में हस्तक्षेप करना राज्यपाल के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है.”

“राज्यपाल द्वारा जारी किए गए ऐसे संदेश उनक प्रदत्त शक्तियों के अनुरूप नहीं आते. उसी प्रकार राज्यपाल विधानसभा की गतिविधियों में केवल इस कारण हस्तक्षेु नहीं कर सकते कि उनके मत में मुख्यमंत्री या मंत्रिपरिषद का कोई मंत्री या यहां तक कि कोई विधायक संविधान के अनुरूप कार्य नहीं कर रहा है अथवा राज्य के हित में काम नहीं कर रहा है. विधानसभा राज्यपाल के नीचे काम नहीं करती. कुल मिलाकर राज्यपाल विधानसभा के लोकपाल की तरह काम नहीं कर सकते.”

“उपरोक्त कारणों से हमें इस निष्कर्ष तक पहुंचने में कोई शंका नहीं है कि राज्यपाल द्वारा विधानसभा को भेजे जाने वाले संदेश अनुच्छेद 163 (1) में वर्णित अनुसार ही हो सकते हैं यानि कि ऐसे संदेश मंत्रीपरिषद जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री हैं उनकी सहायता और सलाह पर ही विधानसभा को भेजे जा सकते हैं.” मध्य प्रदेश के राज्यपाल लाल जी टंडन ने कुछ मिनटों के अभिभाषण के बाद सदन छोड़कर चले गए हैं. राज्यपाल ने एक मिनट के भाषण में अपील की- सभी अपना दायित्व निभायें. लोकतंत्रिक गरिमा बनी रहें. इसके बाद विधानसभा में हंगामा हुआ और सदन की कारवाई 26 मार्च तक के लिये स्थगित कर दी गई है.

 

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