कोटा फिर शर्मसार : सरकारी अस्पताल में 8 घंटे में 9 नवजात की मौत, पिछले साल यहीं 35 दिन में 107 बच्चों की जान गई थी

मृत नवजातों में 7 बच्चों का जन्म अस्पताल में हुआ। 2 बच्चे बूंदी से रेफर होकर आए थे। सभी बच्चे 1 से 7 दिन के थे

कोटा के मातृ एवं शिशु चिकित्सालय जेके लोन में करीब 8 घंटे के भीतर यहां 9 नवजातों की मौत हो गई। गुरुवार तड़के 3 बजे पहले बच्चे की जान गई और सुबह करीब साढ़े दस बजे 9वीं मौत हुई। इन सभी बच्चों की उम्र 1 से 7 दिन के बीच थी। पहली बार नहीं है, जब इस अस्पताल में मासूमों की इस तरह से मौत हुई हो। पिछले साल इसी अस्पताल में नवंबर-दिसंबर में 35 दिन के भीतर 107 बच्चों की जान गई थी।

बच्चों की मौत के बाद कलेक्टर अस्पताल पहुंचे। उन्होंने तुरंत 5 अतिरिक्त डॉक्टर और 10 नर्सिंग स्टाफ तैनात करने के आदेश दिए। उधर, राज्य के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की है। एक्सपर्ट कमेटी 24 घंटे में रिपोर्ट सौंपेगी। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने भी जांच की मांग की है।

9 नवजातों की मौत के बाद कलेक्टर और कमिश्नर अस्पताल पहुंचे।
9 नवजातों की मौत के बाद कलेक्टर और कमिश्नर अस्पताल पहुंचे।

अस्पताल की सफाई- 3 बच्चों को जन्म से बीमारी थी

8 घंटे में 9 बच्चों की जान गई है, लेकिन अस्पताल का इस पर बयान लीपापोती वाला है। अस्पताल अधीक्षक डॉ. एससी दुलारा ने कहा- 9 नवजात में से 3 जब अस्पताल पहुंचे तो उनकी जान जा चुकी थी। 3 को जन्मजात बीमारी थी। इनमें एक का सिर ही नहीं था और दूसरे के सिर में पानी भर गया था। तीसरे में शुगर की कमी थी। जो 2 बच्चे बूंदी से रेफर होकर आए हैं, उन्हें इन्फेक्शन था।

डॉ. दुलारा ने कहा कि अस्पताल में हर महीने करीब 60 से 100 बच्चों की मौत होती है। रोज के लिहाज से ये आंकड़ा 2 से 5 के बीच रहता है। हालांकि, एक दिन में 9 बच्चों की मौत सामान्य नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि 2019 में इस अस्पताल में 963 बच्चों की जान गई थी और इस साल दिसंबर तक 917 बच्चों की मौत हो चुकी है। यह बोझ बहुत भारी है: नवजात के शव को कपड़े में लपेटकर गोद में लिए हुए परिजन।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने जताई चिंता

जेके लोन अस्पताल में एक दिन में नौ नवजातों की मौत पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि पहले भी इस अस्पताल में बड़ी संख्या में शिशुओं की मौत हुई थी। तब भी अस्पताल प्रशासन की मांग के अनुसार केंद्र सरकार और CSR के जरिए कई संसाधन दिए गए थे।

इसके बावजूद अस्पताल में नवजातों और मांओं का सुरक्षित न होना चिंता का विषय है। इस मामले की हाई लेवल इन्क्वायरी होनी चाहिए, ताकि बार-बार ऐसी घटनाएं न हों। इलाज के इंतजाम ऐसे हों, जिससे किसी के भी घर की खुशियां न उजड़ें।

अस्पताल में संसाधन कम, जो हैं, वो भी खराब
पिछले साल भी ठंड में ही बच्चों की मौत का सिलसिला शुरू हुआ था। नीचे से ऊपर तक हंगामा हुआ, नीतियां और प्रस्ताव बने। हालांकि, असर यहां देखने को नहीं मिला। अस्पताल सूत्रों के मुताबिक, यहां ठंड में बच्चों के लिए जरूरी मेडिकल उपकरणों की कमी है। जो हैं, उनमें भी कई खराब पड़े हैं। अभी यहां 98 बच्चे भर्ती हैं। मौसम के लिहाज से वाॅर्मर की डिमांड बढ़ गई है। इसके बावजूद 11 वॉर्मर खराब पड़े हैं।

दिल्ली की टीम जांच कर चुकी है, डॉक्टर भी हटाए गए

पिछले साल जब इस अस्पताल में 35 दिनों में 107 बच्चों की मौत हुई थी, इसकी वजह जानने के लिए दिल्ली से टीम आई थी। राज्य के मंत्री और अधिकारी भी पहुंचे। पीडियाट्रिक विभाग के अध्यक्ष डॉ. अमृत लाल बैरवा को हटाया गया था। उनकी जगह जयपुर के डॉ. जगदीश को विभागाध्यक्ष बनाया था।

इस बार भी पिछले साल जैसे हालात हैं। कोटा दक्षिण से विधायक संदीप शर्मा ने राज्य सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अस्पताल में डॉक्टरों की जरूरत है। पिछली बार की घटना के बाद यहां नए चिकित्सक तैनात किए गए थे। बाद में उन सभी का तबादला कर दिया गया। एक प्रोफेसर और एक एसोसिएट प्रोफेसर के भरोसे अस्पताल चल रहा है। 230 बच्चों की जान का जिम्मा एक प्रोफेसर व एक एसोसिएट प्रोफेसर नहीं उठा सकते हैं।

कोटा का जेके लोन अस्पताल एक बार फिर सवालों के घेरे में हैं। कारण इस अस्पताल में हुईं नवजातों की मौतें हैं, जो 10 दिसंबर तड़के तीन बजे से लेकर सुबह साढ़े 10 बजे के बीच हुईं। इस घटनाक्रम के बाद एक बार फिर सिस्टम की बदइंतजामी उजागर हुई है।

पड़ताल में सामने आया है कि यहां ठंड में बच्चों की जान बचाने के लिए जरूरी मेडिकल उपकरणों में 20% खराब पड़े हैं। इनमें नेबुलाइजर, वॉर्मर, इन्फ्यूजन पंप शामिल हैं। पिछले साल सर्दी के 35 दिनों में 100 से ज्यादा मौतों के बाद कोटा पूरे देश में चर्चा में आ गया था।

तब सरकार ने आमूलचूल परिवर्तन करने का आश्वासन दिया था। कुछ उपकरण भिजवाए जरूर थे, लेकिन फिर से ये खराब हो गए। अस्पताल प्रशासन ने आठ घंटे में नौ मौतों को सामान्य नहीं माना। हर महीने 60 से 100 मौतों का आंकड़ा है। इस लिहाज से 2 से 5 मौतें औसतन होती हैं, लेकिन रात से सुबह के बीच नौ मौतों ने नींद उड़ा दी है।

 

स्टाफ की कमी

पोस्ट कितने पद स्वीकृत कितने अभी हैं
प्रोफेसर 3 1
एसोसिएट प्रोफेसर 4 1
असिस्टेंट प्रोफेसर 7 7
सीनियर रेजिडेंट 7 5

सभी मौतें तब, जब पारा सबसे कम, कई वॉर्मर बंद

अस्पताल सूत्रों ने बताया कि रात का तापमान 12 डिग्री के आसपास पहुंच गया है। यहां 98 नवजात भर्ती हैं और 71 वॉर्मर हैं। ऐसे में लगभग हर बच्चे को वॉर्मर की जरूरत है लेकिन उपलब्धता के बावजूद 11 वॉर्मर खराब पड़े हैं। पिछले साल भी वॉर्मर की कमी उजागर हुई थी। 10 दिसंबर की सभी मौतें तड़के तेज सर्दी के समय ही हुई हैं। इस समय 24 घंटे का सबसे कम तापमान होता है।

आखिर सर्दी शुरू होने से पहले क्यों नहीं करते इंतजाम

यहां नेबुलाइजर भी 56 की संख्या में आए थे, लेकिन 20 खराब हैं। इंफ्यूजन पंप का हाल भी जुदा नहीं है। 89 में से 25 अनुपयोगी हैं। कड़ाके की ठंड आने से पहले ही कोटा अस्पताल में कोताही के आलम ने परिवारों की खुशियों को उजाड़ने का जैसे इंतजाम कर दिया। अब जब इतनी मौतें हो गई, कलेक्टर से लेकर चिकित्सा मंत्री तक रिपोर्ट मांग रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ठंड होने के पहले ही जरूरी इंतजाम क्यों नहीं किए जाते।

सात बच्चे अस्पताल में ही जन्मे थे, दो रेफर हुए थे

मृत नवजातों में 7 बच्चों का जन्म अस्पताल में हुआ। 2 बच्चे बूंदी से रेफर होकर आए थे। सभी बच्चे 1 से 7 दिन के थे।

विधायक ने कहा- एक प्रोफेसर और एक एसोसिएट के भरोसे 230 बच्चे

कोटा दक्षिण विधायक संदीप शर्मा ने इसे राज्य सरकार की लापरवाही बताया। उन्होंने कहा- अस्पताल में डॉक्टर की जरूरत है। पिछली बार की घटना के बाद यहां नए चिकित्सक पदस्थ किए थे, जो तबादला करवाकर चले गए। एक प्रोफेसर और एक एसोसिएट प्रोफेसर के भरोसे अस्पताल चल रहा है। 230 बच्चों की जान का जिम्मा एक प्रोफेसर और एक एसोसिएट प्रोफेसर नहीं उठा सकता। एक ही एसोसिएट है, जबकि जरूरत के हिसाब से तीन से चार होने चाहिए।

मौतों पर अस्पताल की सफाई

3 बच्चे ब्रॉड डेड थे। 3 बच्चों को जन्मजात बीमारी थी। एक का सिर नहीं था, एक के सिर में पानी भरा था। बूंदी से रैफर होकर आए 2 बच्चों को सेप्टिक शॉक (इंफेक्शन) था। एक बच्चे में शुगर की कमी थी। मौत के कारणों की जांच की जा रही है।

डॉ एससी दुलारा, अस्पताल अधीक्षक

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