चंडीगढ़। महंतों से गुरुद्वारा साहिब और अंग्रेजों से देश को आजादी दिलाने में बाकमाल योगदान देने वाला शिरोमणि अकाली दल आज अपना 100वां स्थापना दिवस मना रहा है। अकाली दल की स्थापना 14 दिसंबर 1920 को गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सहयोग और सिखों की आवाज बनकर समुदाय के मुद्दे सरगर्मी से उभारने को हुई थी। 7 जुलाई 1925 को गुरुद्वारा बिल लागू होने के बाद अकाली दल ने आजादी की
लड़ाई लड़ी। मैं मरां ते पंथ जिवे की विचारधारा लेकर शुरुआत में राजनीति से पूरी तरह दूर रहे अकाली दल का सियासी सफर 1937 में शुरू हुआ। प्रोविंशियल चुनाव में शिअद ने 10 सीटें जीत ताकत अहसास कराया था। अकाली दल का 100 साल का सफर संघर्ष, बलिदान, त्याग और सेवा का रहा है। आजादी की लड़ाई में 80% से ज्यादा शहादत देने वाले सिखों की अगुवाई करने वाले अकाली दल ने देश के विभाजन का
पुरजोर विरोध किया। विभाजन से ठीक पहले जब पता चला कि फिरोजपुर और जीरा पाकिस्तान को मिल रहा है, मास्टर तारा सिंह रातोंरात दिल्ली पहुंचे और वायसराय से संपर्क साध इस फैसले को बदलवाया। ताउम्र संघर्ष करने वाले मास्टर तारा सिंह के निधन के बाद उनके खाते में 36 रुपए थे।
जनवरी 1921 में सरमुख सिंह झबाल बने थे पहले शिअद प्रधान, सुखबीर बादल 20वें प्रधान
ये हुए हैं 1920 से लेकर अब तक के अकाली प्रधान
सरमुख सिंह झबाल शिअद के पहले प्रधान थे। फिर बाबा खडक सिंह, मास्टर तारा सिंह, गोपाल सिंह कौमी, तारा सिंह थेथर, तेजा सिंह अकारपुरी, बाबू लाभ सिंह, उधम सिंह नागोके, ज्ञानी करतार सिंह, प्रीतम सिंह गोधरां, हुकम सिंह, संत फतेह सिंह, अच्छर सिंह, भुपिंदर सिंह, मोहन सिंह तुड, जगदेव सिंह तलवंडी, हरचंद सिंह लौंगोवाल, सुरजीत सिंह बरनाला, परकाश सिंह बादल बने। सुखबीर बादल 20वें प्रधान हैं।
कई बार टूटे पर बरकरार रहा शिअद का वजूद
शिअद भी कई बार टूटा। 60 के दशक में पार्टी के सिरमौर नेता मास्टर तारा सिंह और संत फतेह सिंह भी कुछ समय के लिए पार्टी से दूर हुए थे। मौजूदा दौर में अलग-अलग नाम से अकाली दल वजूद में है लेकिन सियासी, धार्मिक स्तर पर सबसे ज्यादा सक्रिय शिअद बादल है।
सियासी, धार्मिक मोर्चे पर आगे, इमरजेंसी में सरकार से लिया लोहा-25 मार्च 1972 को संत फतेह सिंह द्वारा संन्यास लेने के बाद जत्थेदार मोहन सिंह तुढ़, जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहड़ा, संत हरचंत सिंह लौंगोवाल, सुरजीत सिंह बरनाला और स. परकाश सिंह बादल अकाली नेता के बड़े नेता के रूप में उभरे। अक्टूबर 1973 में अकाली दल ने धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, सियासी प्रोग्राम बारे अपना मेनीफेस्टो जारी किया जिसे आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के रूप में पहचान मिली। जुलाई 1975 को देश पर थोपी इमरजेंसी का विरोध करने में अकाली दल आगे रहा। जत्थेदार जगदेव सिंह तलवंडी, गुरचरण सिंह टोहड़ा और स. परकाश सिंह बादल की अगुवाई अकाल तख्त पर अरदास करने के बाद आंदोलन छेड़ा। इमरजेंसी दौरान सबसे लंबे मोर्चे और गिरफ्तारियां अकाली नेताओं ने दीं। विभाजन के बाद अकाली दल ने पंजाब को 7 मुख्यमंत्री दिए। 5 बार स. परकाश सिंह बादल ने बतौर सीएम पंजाब की रहनुमाई की।
1966 : 22 साल संघर्ष, नया पंजाब की घोषणा। 1970 : शिअद की सरकार एक साल ही चली। 1977 : परकाश सिंह बादल की अगुवाई में बहुमत की सरकार बनी। 1977 : शिअद के सबसे ज्यादा 9 सांसद बने। 1980 : शिअद की हार। कांग्रेस की सरकार बनी। 1996 : परकाश सिंह बादल शिअद प्रधान बने। 1996 : पार्टी का मुख्यालय अमृतसर से चंडीगढ़ शिफ्ट हुआ। 1997 : पहली बार भाजपा के साथ गठजोड़। 1997 : बादल तीसरी बार सीएम बने। 2002 : चुनाव में अकाली दल हार गया। 2007 : अकाली-भाजपा की सरकार में परकाश सिंह बादल चौथी बार सीएम बने। 2008 : शिअद प्रधान बने सुखबीर बादल। 2012 : अकाली-भाजपा की सरकार में वापसी। परकाश सिंह बादल 5वीं बार सीएम बने।