लुधियाना. हेरोइन तस्करी में पकड़े गए पूर्व सरपंच का केस अब तक की लुधियाना की सबसे बड़ी ड्रग चेन बनता जा रहा है। इसमें पिछले 40 दिनों से जुटी एसटीएफ की जांच में रोज नए खुलासे हो रहे हैं। खास बात ये है कि इस ड्रग चेन में अब तक एनआरआई, राजनीतिज्ञ, पुलिसकर्मी, जेलबंदी व सप्लायर का नेटवर्क एसटीएफ ब्रेक कर चुकी है, जिसमें 16 नाम सामने आए हैं, जिनमें से 11 को तो पकड़ लिया गया है, जबकि 5 आरोपी अभी भी पकड़ से बाहर हैं, जिनमें से तीन तो एनआरआई हैं जो थाईलैंड, इटली व ऑस्ट्रेलिया में बैठे हैं। इनके प्रत्यर्पण के लिए एसटीएफ ने कार्रवाई शुरू कर दी है। एसटीएफ ने अमृतसर में पकड़ी 200 किलो हेरोइन व लुधियाना की 36 किलो हेरोइन के केस में सिमरण संधू के इटली से प्रत्यर्पण के लिए पेपर दाखिल कर दिए हैं।
दिसंबर अंत तक संधू को इटली से पंजाब लाकर होगी पूछताछ…नेटवर्क में सबसे बड़ा रोल सिमरण संधू और तनवीर बेदी का है जो विदेश से नेटवर्क ऑपरेट करते थे। गुजरात एसटीएफ के इनपुट पर संधू को तो इटली में कई माह पहले ही 300 किलो हेरोइन के केस में डिटेन किया जा चुका है। संधू को पंजाब लाकर पूछताछ की जाएगी।
इन 5 की अभी है तलाश…सिमरण संधू (ईटली)}तनवीर सिंह बेदी (ऑस्ट्रेलिया), }भजन सिंह (पुलिस मुलाजिम)}हरमिंदर रंधावा (थाईलैंड) और बबलजीत सिंह पुलिस गिरफ्त से दूर है।
ड्रग रैकेट में अब तक की बरामदगी : { हेरोइन :36 किलो हेरोइन } {आईस : 6 किलो } {ड्रग मनी : डेढ़ करोड़ से ज्यादा} {गाड़ियां :13 लग्जरी कार} { मोबाइल फोन: 10} { हथियार : 4 पिस्टल, 2 राइफल।
पूर्व अकाली सरपंच गुरदीप सिंह के लिए जेल में बैठकर नशे का नेटवर्क चला रहे केवल कृष्ण और हरमिंदर उर्फ सैंटी के मोबाइल रिकवर करवाने के लिए एटीएफ की ओर से जेल विभाग को पत्र लिखकर मोबाइल तलाशने की मांग की है। फिलहाल उन्हें कोई जवाब तो नहीं मिला। वहीं, आरोपी गुरदीप और रवि को बुधवार को अदालत में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया।
फिलहाल अब बड़ी जांच का विषय ये है कि आखिरकार मोबाइल कहां गए। जानकारी के मुताबिक गुरदीप की पूछताछ के आधार पर पुलिस ने आरोपी केवल कृष्ण और सैंटी को जेल से प्रोडक्शन वॉरंट पर लिया था, क्योंकि वो ही गुरदीप के लिए जेल में बैठकर नशे की सप्लाई का काम मोबाइल के जरिए करते थे। लिहाजा उनसे मोबाइल रिकवर करना था, लेकिन उन्हें जेल से लाने के बाद भी उनसे मोबाइल जेल प्रबंधन रिकवर नहीं कर पाई। काफी कोशिशों के बाद भी एसटीएफ को मोबाइल नहीं मिल पाए। क्योंकि उन्हें शक है कि मोबाइल फोन में उन सभी तस्करों के नंबर और डिटेल्स हैं। नशे का नेटवर्क चलाया जाता था, लेकिन जब पुलिस को मोबाइल नहीं मिले तो उन्होंने जेल प्रबंधन को पत्र लिखा है कि उन्हें मोबाइल खोजकर दिए जाएं, जिनका इस्तेमाल आरोपी करते थे।
जेल में मोबाइल चल रहे तो बड़ी जांच का विषय-अब ये जांच का विषय है कि आखिर जेल में चल रहे आरोपियों के मोबाइल आए कहां से? अगर आए तो अब वो मोबाइल कहां है, जबकि वो उसे चलाने वाले पुलिस की कस्टडी में थे। फिलहाल ये भी आशंका है कि जेल में आरोपियों की मदद कोई मुलाजिम कर रहा है, जोकि उनके मोबाइलों को संभालता है। ताकि उनके नशे के नेटवर्क के बारे में पुलिस को पता न चल पाए। बता दें कि अगर मोबाइल पुलिस के हाथ लगते हैं तो उससे कई बड़े चेहरे भी बेनकाब हो सकते हैं।