नई दिल्ली। संयुक्त किसान मोर्चा ने बयान जारी करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान पर तंज कसा है। मोर्चा ने कहा- प्रधानमंत्री का बयान किसानों और सरकार के बीच हुईं 11 मीटिंगों के जैसा ही रहा है। बेशक मोदी सरकार ने कृषि कानून वापस ले लिए, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा मानने वाला नहीं है। हम प्रधानमंत्री के ऐलान का स्वागत करते हैं, मगर हमारा आंदोलन MSP बिल और बिजली शोध कानूनों को लेकर भी है। वह अभी मीटिंग करने जा रहे हैं और इस पर अगली रणनीति का ऐलान करेंगे।
प्रेस विज्ञप्ति में लिखा गया है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2020 में ऑर्डिनेंस के रूप में लाए गए काले कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा की है। संयुक्त किसान मोर्चा इस फैसले का स्वागत करता है, मगर हम उचित संसदीय प्रक्रिया के जरिए इस ऐलान के लागू होने की राह देखेगा। इस संघर्ष में 700 के करीब किसान शहीद हो चुके हैं, लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा समेत अन्य हिंसात्मक प्रदर्शनों के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है।
संयुक्त किसान मोर्चा प्रधानमंत्री मोदी को याद दिलाता है कि किसानों का आंदोलन तीन काले कानूनों को लेकर ही नहीं था, बल्कि सभी कृषि उपजों और सभी किसानों के लिए MSP की कानूनी गारंटी के लिए भी है। किसानों की अहम मांग अभी भी लटक रही है, जिसमें बिजली शोध बिल वापस लेना भी शामिल है। संयुक्त किसान मोर्चा सभी गतिविधियों के नोट करेगा और जल्द ही अपनी मीटिंग रखेगा व अगले फैसलों का ऐलान करेगा।
1 साल 11 बैठक, नतीजा जीरो
कृषि कानूनों को लेकर पिछले 14 माह से किसानों का संघर्ष चल रहा है। पहले पंजाब में और 26 नवंबर 2020 से दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर संघर्ष चल रहा है। किसानों की सरकार से जनवरी 2021 तक 11 बैठक हो चुकी हैं, जिसमें कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर शामिल होते रहे हैं, मगर हर बार बात नहीं बनी। पहले कहा जा रहा था कि बिलों में संशोधन किया जा सकता है, मगर ऐसा भी नहीं हुआ।
संसद कूच पर भी लिया जाना है फैसला
26 नवंबर को दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन का एक साल पूरा हो रहा है। इसे लेकर किसानों की तरफ से 29 नवंबर से दिल्ली संसद के लिए ट्रैक्टर मार्च का ऐलान किया गया है। अब इस पर फैसला होना है कि वह यह कार्यक्रम करते हैं या इसे टाला जाता है।
गुरू पर्व के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद किसान आंदोलन में जश्न का माहौल है। सिंघु बॉर्डर, टीकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों ने जश्न मनाया है। किसान नेताओं का कहना है कि वे प्रधानमंत्री के बयान को अपनी जीत के रूप में देख रहे हैं। हालांकि किसान आंदोलन समाप्त करने की घोषणा अभी नहीं की गई है।
किसान आंदोलन की अगुआई कर रहे राकेश टिकैत का कहना है कि एक साल बाद में सरकार की समझ में किसान शब्द आया है, हम इसे अपनी जीत मान रहे हैं। सरकार से बातचीत का रास्ता खुला है। सरकार जब संसद में कानून लेकर जाएगी, वहां क्या होगा, ये मायने रखता है। MSP हमारा मुद्दा है। सरकार MSP गारंटी कानून लेकर आए। जब तक सभी मुद्दों पर समाधान नहीं होता, आंदोलन जारी रहेगा।
टिकैत कहते हैं कि MSP कानून को लागू करने के लिए कमेटी का गठन होना चाहिए। सरकार के सिर्फ वादे भर से काम नहीं चलेगा, कागज पर लिखित देना होगा। किसानों को भी अभी ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है। वे सरकार की इस चाल में ना फंसे। जब तक हमें MSP गारंटी का कानून का कागज नहीं मिल जाता, तब तक हमें मोर्चे से नहीं हटना है।
इस फैसले को लेकर किसान नेता योगेंद्र यादव कहते हैं कि गुरुपूरब के दिन किसानों की ऐतिहासिक जीत है। मैं इसे किसी मंत्री, किसी नेता या किसी आंदोलन की जीत रूप में मैं नहीं देखता, मैं इसे सिर्फ किसान की जीत के रूप में देखता हूं और किसानों ने यह साबित कर दिया है कि वह इस देश के न केवल अतीत बल्कि भविष्य का भी हिस्सा हैं।
आपको नहीं लगता कि यह मोदी जी ने यह फैसला पांच राज्यों के चुनावों की वजह से लिया है? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, ‘जाहिर है, संविधान का उन पर असर नहीं पड़ता, अर्थशास्त्र की बात उन्हें समझ नहीं आती, इंसानियत उन्हें समझ नहीं आती है। उन्हें सिर्फ और सिर्फ वोट की बात समझ आती है, लेकिन चलिए लोकतंत्र के लिए यह भी सही है। यह लोकतंत्र की जीत है।’
अब किसान क्या भाजपा की जय-जयकार करेंगे? इसको लेकर योगेंद्र यादव कहते हैं,’जिसने उन पर लाठियां चलाईं, जिसने उन्हें गालियां दीं, जिसने उन्हें दिन-रात आंतकवादी कहा, जो प्रधानमंत्री कहते थे कि यह कानून किसानों को भी समझ नहीं आया, उनकी जय-जयकार कौन करेगा।’
देर आए दुरुस्त आए : जोगिंदर सिंह उगराहां
वहीं किसान आंदोलन में शामिल सबसे बड़े समूहों में से एक उगराहां ग्रुप के नेता जोगिंदर सिंह उगराहां ने भास्कर से बात करते हुए कहा, ‘मोदी साहब ने टीवी पर जो बयान दिया है, उस पर ये कहा जा सकता है कि देरी से आए दुरुस्त आए। आज हम बहुत खुश हैं। किसानों के संघर्ष की जीत हुई है।’ क्या सरकार किसानों के आगे झुक गई है इस सवाल पर उगराहां कहते हैं कि सरकार लोगों की बनाई हुई होती है, लोग से बड़ा कोई होता नहीं है, इसलिए सरकार को कभी ना कभी झुकना ही होता है।
26 नवंबर को दिल्ली की सरहदों पर किसानों के आंदोलन को एक साल हो रहे हैं। बीते एक साल में किसान और सरकार कई बार आमने-सामने आए हैं। किसानों और सरकार के बीच कई दौर की वार्ता हुई जो नाकाम रही। एक समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार ने स्पष्ट किया था कि वो तीन कानूनों पर पीछे नहीं हटेंगे। किसान भी तीन कानूनों के रद्द होने से कम किसी भी बात पर मानने को तैयार नहीं थे।
आखिरकार अब एक साल होते-होते सरकार ने तीन विवादित कानून वापस लेने की घोषणा कर दी है। क्या सरकार ने फैसले में देर की, इस सवाल पर उगराहां कहते हैं, ‘सरकार ने लोगों की भावनाओं को समझने में देरी की है, सरकार पहले फैसला कर लेती तो बहुत अच्छा होता। फिर भी हम कहेंगे देर आए दुरुस्त आए।’
क्या ये मान लिया जाए कि अब आंदोलन वापस हो जाएगा?
उगराहां कहते हैं कि सरकार ने कुछ फैसले कर लिए हैं, कुछ पर फैसला करना बाकी है। लखीमपुर खीरी की जो घटना हुई है उसका मसला अभी बाकी है, क्योंकि ये आंदोलन के बीच में हुई है। अजय मिश्रा अभी इनके बीच में ही बैठा हुआ है, उस पर निर्णय करना अभी बाकी है। अभी सरकार को MSP पर निर्णय लेना बाकी है। किसान मोर्चे में जो 600-700 किसान शहीद हुए हैं अभी सरकार ने उन पर मुंह नहीं खोला है। अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। किसान जत्थेबंदियां बैठकर सरकार के निर्णय पर बात करेंगी और फिर आगे का फैसला लिया जाएगा।
नुकसान कम होगा, लेकिन होगा जरूर
अगले कुछ महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें उत्तर प्रदेश और पंजाब भी शामिल हैं। क्या ये कहा जा सकता है कि सरकार ने नेक नीयत से फैसला लिया या फिर सरकार की राजनीतिक मजबूरियां थीं? इस सवाल पर उगराहां कहते हैं कि जो भी सत्ताधारी पार्टी होती है, कुर्सी उसकी कमजोरी होती है। कुर्सी जनता के हाथ में होती है, जिसके चाहे बिठाए, जिसको चाहे उतार दे।
अब चुनाव का समय है, राजनीतिक नुकसान तो उन्हें हो ही रहा था। जो उपचुनाव हुए हैं, उनमें BJP को नुकसान हुआ है। आगे पांच राज्यों में चुनाव हैं, उससे पहले सरकार ने ये फैसला कर लिया, तो ये कहा जा सकता है कि जितना नुकसान BJP को होना था, उतना नहीं होगा लेकिन ये तय है कि नुकसान तो होगा ही।
किसान संगठन हरियाणा और पंजाब में BJP को घेर रहे थे। तो क्या अब BJP का विरोध बंद होगा, पंजाब में BJP का रास्ता साफ होगा? इस सवाल पर उगराहां कहते हैं, ‘सरकार के कानून वापस लेने के बाद और हमारे और सरकार के बीच फैसला हो जाने के बाद हमारा BJP को घेरने का कोई लॉजिक नहीं बनता है। उन्हें घेरने का फायदा भी क्या है? BJP को भी आजादी है, वो भी अपनी बात लोगों के बीच रख सकेगी, लेकिन इतने दिन लोगों को लटकाए रखा, उसका हर्जाना तो उन्हें भुगतना ही होगा। अगर फैसला पूरा हो जाता है तो हम उनके खिलाफ कोई प्रदर्शन अब नहीं करेंगे।
सरकार नीयत नेक होती तो फिर सरकार 700 किसानों की जान क्यों जाती?
वहीं कीर्ति किसान यूनियन से जुड़े युवा किसान नेता राजिंदर सिंह दीप सिंह वाला कहते हैं कि 26 नवंबर को एक साल पूरे होने पर किसानों से दिल्ली पहुंचने की अपील की जाएगी। क्या अब किसान आंदोलन समाप्त हो जाएगा इस सवाल पर राजिंदर कहते हैं, “पहली बात तो ये कि जब तक संसद में कानून रद्द नहीं हो जाते तब तक हम दिल्ली मोर्चे पर रहेंगे। अंतिम निर्णय संयुक्त किसान मोर्चे को ही लेना है।”
राजिंदर सिंह कहते हैं, “एक बात ये भी है कि अभी MSP को लेकर बात स्पष्ट नहीं हुई है, लेकिन हम इसे अपनी जीत मानते हैं। प्रधानमंत्री का बयान किसानों की जीत है। हम किसानों से अपील करते हैं कि इस जीत से उत्साहित होकर बड़ी संख्या में दिल्ली मोर्चे पर पहुंचे ताकि हम संसद में संवैधानिक प्रक्रिया के पूरा होने तक मोर्चे पर बने रहें।”
सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए राजिंदर सिंह कहते हैं कि नेक नीयत अगर सरकार की होती तो फिर सरकार 700 किसानों की जान क्यों जाती। सर्दी-गर्मी में किसान बैठे थे सरकार उनकी परवाह करती। सरकार के पीछे हटने की वजह ये है कि उनकी राजनीतिक जमीन खिसक रही है और ये आंदोलन अब सरकार की सोच से भी बड़ा हो गया है। समाज के दूसरे वर्ग भी आंदोलन से जुड़ गए थे, सरकार समाज से अलग होती दिख रही थी इसलिए मजबूरी में सरकार ने ये फैसला लिया है।