लुधियाना. हरबंसपुरा इलाके में आत्महत्या के मामले में पुलिस की गलती और जांच में लापरवाही की वजह से 17 दिन जेल में सजा काट चुका सुमित आखिरकार 18वें दिन बुधवार को कोर्ट के ऑर्डर जेल में पहुंचने के 5 घंटे बाद दोपहर 3.40 बजे रिहा हो गया। हालांकि मंगलवार को अदालत से 1.15 बजे ऑर्डर मिल गए, लेकिन वो जेल तक न पहुंचने की वजह से सुमित रिहा नहीं हो सका था और परिवार को पूरा दिन जेल के बाहर सुमित के छूटने का इंतजार करता रहा था। बुधवार को कभी जेल में इंस्पेक्शन तो कभी अधिकारियों की मीटिंग का हवाला देकर परिवार को परेशान होना पड़ा।
वहीं, भरी हुई आंखों से बेटे को ठीक-ठाक देखने के बाद उनकी सारी परेशानी खत्म हो गई। हैरत की बात ये है कि परिवार को इस परेशानी में डालने वाली पुलिस कहीं भी उनका साथ देती नजर नहीं आई। अधिकारी ऑर्डरों की कापी अपने मोबाइल और टेबल पर रखकर बैठे रहे। जबकि अगर चाहते तो ऑर्डर मैन्युअल लेकर जेल में जा सकते थे। खैर, इस सारे घटनाक्रम के बाद परिवार का पुलिस से भरोसा उठ गया, जिसे उन्होंने भावुक होकर कहा।
ऑर्डर पर साइन के लिए पांच घंटे का इंतजार
मंगलवार को पूरा दिन और रात 9 बजे तक जेल के बाहर रिहाई के इंतजार में वापस लौटा सुमित का परिवार बुधवार सुबह 10 बजे दोबारा जेल के बाहर पहुंच गया। जहां जेल मुलाजिमों ने उन्हें बताया कि रिहाई के ऑर्डरों की मेल 10 बजे जेल प्रबंधन को आ गई है। लिहाजा वो 12 बजे तक सुमित को छोड़ देंगे।
मां सीमा, पिता सुनील मिश्रा और प्रकाश रिहाई के इंतजार में बोर्स्टल जेल के बाहर बैठे रहे। जब साढ़े 12 बजे तो परिवार दोबारा जेल प्रबंधन से पूछने के लिए पहुंचा। फिर उन्हें जवाब मिला कि जेल में इंस्पेक्शन के लिए टीम बाहर से आ गई है। लिहाजा सुमित की रिहाई की फाइल पर साइन नहीं हो पा रहे।
डेढ़ बजे तक हस्ताक्षर हो जाएंगे और दो बजे तक उसे रिहा कर दिया जाएगा। जैसे ही डेढ़ बजे तो पता चला कि डीएसपी की मीटिंग शुरू हो गई, अभी और समय लगेगा। सुबह से भूखे-प्यासे परिवार के लोग धूप में बैठकर बेटे की रिहाई का इंतजार करते रहे।
पिता सुनील ने गेट पर दोबारा पूछा, फिर पता चला कि अधिकारी खाना खाने गए हैं। लिहाजा अब साढ़े 3 बजे छोड़ा जाएगा। इसी तरह से बैठे-बैठे 3.40 हो गए। जैसे ही पिता दोबारा उठकर जाने लगे तो सामने से सुमित जेल से बाहर निकल आया। जिसे देखते ही पूरा परिवार भावुक हो गया और सभी रोने लगे। अंतत: जेल की जमीन को माथा टेक कर सुमित परिवार के साथ अपने घर लौट गया।
खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे
सुमित की मां सीमा और पिता सुनील इतने भावुक हुए कि अपने आंसुओं को रोक नहीं सके। उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी है कि उनका बेटा जेल से आ गया। लेकिन वो पुलिस व सिस्टम से नाखुश हैं। जिन्होंने उनके निर्दोष बेटे को 17 दिन जेल में रखा और उसे छुड़वाने में भी कोई मदद नहीं की। उन्हें लुधियाना में रहते 5 साल हो गए है, लेकिन अब अपने आप को वो असुरक्षित महसूस कर रहें है।
17 दिन 17 सालों से कम नहीं थे, भगवान किसी को ये दिन न दिखाए
सुमित ने बताया कि जेल में जो 17 दिन उसने काटे, वो 17 सालों से कम नहीं थे। हर रोज एक नई दुनिया देखने को मिलती थी। जब जेल से बाहर था तो रोज 8 घंटे मंदिर में सफाई और पूजा-पाठ करता था। उसी को सोचकर पहले दिन जेल में बने मंदिर में जाने लगा पुलिस वाले गालियां देने लगे, मैं वापस लौट आया।
मन में ये सोच रहा था कि भगवान की सेवा का ये ईनाम मिला, भगवान से विश्वास उठने लगा था। दूसरे दिन दोबारा मंदिर जाने लगा तो फिर रोक दिया गया। मेरी लगन देखकर तीसरे दिन से मुझे जेल के मंदिर की सफाई और पूजा-पाठ का काम दे दिया गया। मैं वो सब कर रहा था, लेकिन मेरे लिये एक-एक मिनट निकालना मुश्किल था।
कभी मां की याद आ रही थी तो कभी पिता और भाई की। सोच रहा था कि कहीं जेल में ही न मर जाऊं और अपने परिवार को भी नहीं मिल पाउंगा। ये सब सोचकर रोता था। मगर भगवान पर जो उम्मीद थी, वो धीरे-धीरे काम करने लगी, जब पता चला कि परिवार उसे निकालने की कोशिश कर रही है तो यकीन बंधने लगा की अब छूट जाउंगा और आखिरकार मैं छूट गया, क्योंकि मैं निर्दोष था।
ये था मामला : हरबंसपुरा में पत्नी और उसके प्रेमी से परेशान राकेश यादव की आत्महत्या के मामले में मिले सुसाइड नोट पर लिखे सुमित नाम के शख्स के आधार पर पुलिस ने मृतक की पत्नी रिया को दूध देने आए उसके भाई सुमित को नाम एक जैसा होने की वजह से गलती से गिरफ्तार कर कोर्ट में पेशी के बाद जेल भेज दिया।
परिवार ने आवाज उठाई तो सीपी ने मामले की जांच बैठाई। इसके बाद रिया ने कबूला कि उसने पुलिस को गुमराह किया था। उसने अपने प्रेमी सुधीर का नाम पति के फोन में सुमित के नाम से सेव किया था। इसी गलती की वजह से बेकसूर सुमित पकड़ा गया। फिर आरोपी सुधीर को पकड़ कर जेल भेजा गया। जिसके बाद सुमित को डिस्चार्ज करवाने में 17 दिन लग गए।