बठिंडा में लाल खून का काला कारोबार-भ्रष्ट सिस्टम, लापरवाह अफसर और अनट्रेड कर्मियों ने बच्चों को धकेला मौत के मुंह में

फिलहाल सिविल अस्पताल बठिंडा में पूरा सिस्टम ही भ्रष्टाचार, भतीजा भाईवाद व राजनीतिक सिफारिश में काम करने जैसी कुर्तियों से डगमगा रहा है लेकिन अधिकारी इसे ठीक करने की बजाय जी हजूरी व अपनो को बचाने की जुगत में जुटे हैं। इस सबके बीच आम आदमी लाल खून के काले कारोबार के चलते अपने परिजनों की जिंदगी को मौत के मुंह में धकेलने को मजबूर हो रहा है।   

  • -बठिंडा का दौरा रद्द कर सिविल सर्जन को हेल्थ सेक्रेटरी ने किया चंडीगढ़ तलब, मांगी एक माह में ब्लड बैंक में की कारगुजारी की रिपोर्ट
  • -अनट्रेड टेक्निसियन स्टाफ के सहारे चल रहा सिविल अस्पताल, माहिरों की कमी से आए दिन हो रही लापरवाही
  • -बठिंडा में पिछले एक माह में तीन थेलेसीमिया पीड़ित बच्चों को एचआईवी पोजटिव रक्त चढ़ाया 

बठिंडा. सिविल अस्पताल स्थित ब्लड बैंक में पिछले एक माह में एक के बाद एक लापरवाही कर थैलेसीमिया पीड़ित तीन बच्चों व एक महिला को एचआईवी पोजटिव रक्त चढ़ाने के मामले में हेल्थ सेक्ट्री हुसन लाल ने सिविल सर्जन बठिंडा को पूरा रिकार्ड लेकर चंडीगढ़ तलब किया है। वही हेल्थ सेक्ट्री का बठिंडा दौरा भी रद्द कर दिया गया है। इसी बीच ब्लड बैंक बीटीओं डा. मयंक जैन का तबादला कर उनकी जगह पर डा. रजिंदर कुमार की तैनाती की गई है। वही गत दिवस चंडीगढ़ से जांच के लिए आई एड्स कंट्रोल सोसायटी की टीम ने जिन चार टैक्निसियनों को मामले में लापरवाह करार दिया था उनके खिलाफ सेहत विभाग पंजाब के पास कारर्वाई के लिए सिफारिश की है लेकिन वीरवार को उक्त चारों कर्मी सिविल अस्पताल में पूर्व की तरह अपनी ड्यूटी करते रहे।

दूसरी तरफ सिविल अस्पताल में अनट्रेड व सिफारिशी टेक्नीक्ल कर्मियों की भर्ती करने की आशंका के चलते ठेके पर काम कर रहे कर्मचारियों की कारगुजारी को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। इसमें रिप्लेसमेंट एजेंसी की तरफ से जिन कर्मचारियों को ठेके पर तैनात किया जाता है उनके पास जहां अनुभव की भारी कमी है वही उन्हें तकनीकि ज्ञान की भी कमी है जिसके चलते सिविल अस्पताल में आए दिन लापरवाही हो रही है व मरीजों को बिना जांच पड़ताल के ही एचआईवी रक्त चढ़ाया जा रहा है। इसी बीच गत 7 नवंबर को थैलेसीमिया पीड़ित 11 साल के बच्चे को एचआईवी पोजटिव रक्त चढाने की लिखित शिकायत सिविल सर्जन व संबंधित अधिकारियों के पास परिजनों की तरफ से की गई है। इससे पहले आला अधिकारी इस मामले में यह कहकर किसी तरह की कारर्वाई करने से गुरेज कर रहे थे कि उनके पास प्रभावित परिवार की तरफ से कोई भी शिकायत नहीं पहुंची है।

शिकायत मिलने के बाद अगला एक्शन लिया जाएगा। इस टिप्पणी के बाद पूरे सबूत व तथ्यों के साथछ प्रभावित बच्चे के परिजनों ने अधिकारियों को शिकायत दी व मामले में आरोपी लोगों के खिलाफऱ सख्त से सख्त कानूनी व विभागीय कारर्वाई करने की मांग की है। पीड़ित बच्चे की माता बलजीत कौर की तरफ से दी शिकायत में आरोप लगाया गया है कि सिविल अस्पताल में ब्लड बैंक प्रबंधन से लेकर आला अधिकारियों ने अपी जिम्मेवारी से भागते हुए लगातार लापरवाही बरती व उनके बच्चे को एचआईवी पोजटिव ब्लड देकर उसकी जिंदगी से खिलवाड़ किया है। बिना जांच ही एचआईवी संक्रमित खून थैलेसीमिया के मरीज बच्चों को चढ़ाया गया है जिसका पहला खुलासा 3 अक्टूबर को थैलेसीमिया मरीज एक बच्चे को ब्लड चढ़ाने के बाद ब्लड बैंक के ही एक कर्मचारी ने किया था। 3 अक्टूबर से 17 नवंबर के बीच अब तक तीन थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों सहित एक महिला को एचआईवी संक्रमित ब्लड चढ़ाने के केसों के उजागर होने के बाद लोग सकते में हैं, वहीं सिविल अस्पताल प्रबंधन के हाथ-पांव फूले हुए हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर मात्र लीपापोती हो रही है।

राज्य सेहत विभाग की सख्ती के बाद अब सिविल अस्पताल में पिछले छह माह में ब्लड बैंक से रक्त इश्यू करवाने वालों की जांच करवाने के लिए कहा है। इस मामले में 3 अक्टूबर के केस में जिम्मेदार तीन कर्मियों में मात्र एक पर एफआईआर दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया है जबकि दो कांट्रेक्ट कर्मियों ब्लड बैंक इंचार्ज बीटीओ व एलटी को पहले ट्रांसफर किया व बाद में नौकरी से बर्खास्त कर आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की गई जबकि 7 नवंबर के केस में अब सूत्रों के अनुसार कांट्रेक्ट कर्मियों को दोषी ठहराने के बाद उनपर गाज गिरना तय है जबकि तीसरे मामले में जांच बाकी है। अब सवाल उठता है कि क्या इस गंभीर मामले में केवल नीचले स्तर के कर्मी ही दोषी है। जबकि कर्मचारियों के कामकाज की देखरेख करने व प्रबंधकीय व्यवस्था देखने वाले अधिकारी इसमें दूध के धुले हुए है। आला अधिकारियों के सामने एक माह में एक के बाद एक बच्चों को संक्रमित खून चढ़ाया जा रहा है जबकि अधिकारी मात्र खानापूर्ति कर मामले को दबाने व कर्मियोंको बचाने में ही अपनी पूरी ताकत लगाने में जुटे हैं। इसमें छह माह से एलाइजा टैस्ट करने वाली मशीन खराब पड़ी है। इस मशीन को ठीक करवाने की जिम्मेवारी किसकी थी व अगर उस अधिकारी ने अपनी जिम्मेवारी को नहीं निभाया व बिना जांच के ही लोगों को संक्रमित खून चढ़ाया गया तो क्या उसके खिलाफ विभागीय व कानूनी कारर्वाई नहीं होनी चाहिए। फिलहाल सिविल अस्पताल बठिंडा में पूरा सिस्टम ही भ्रष्टाचार, भतीजा भाईवाद व राजनीतिक सिफारिश में काम करने जैसी कुर्तियों से डगमगा रहा है लेकिन अधिकारी इसे ठीक करने की बजाय जी हजूरी व अपनो को बचाने की जुगत में जुटे हैं। इस सबके बीच आम आदमी लाल खून के काले कारोबार के चलते अपने परिजनों की जिंदगी को मौत के मुंह में धकेलने को मजबूर हो रहा है।

रक्त की सही जांच होती तो ना होते यह हालात
ब्लड बैंक में डोनेट ब्लड की जांच मैक एलाइजा मशीन के खराब होने पर रेपिड टेस्ट से काम चलाया गया जो कम प्रभावी है। किट बचाने के चक्कर में यह टेस्ट किए भी गए या नहीं, सभी चुप्पी साधे हैं। 3 अक्टूबर केस में एचआईवी पॉजिटिव डोनर ने मई 2020 में भी ब्लड डोनेट किया था, लेकिन कागजों में जानकारी होने के बाद भी उसे एचआईवी स्टेट्स नहीं बताया गया। वहीं 7 नवंबर को खूनदान करने वाला डोनर सिविल अस्पताल में पहले तीन बार ब्लड डोनेट कर चुका है तथा उसका रक्त किन-किन लोगांे को चढ़ा है, पता लगाया जा रहा है।

एसओपी फॉलो नहीं किया
अस्सिटेंट प्रोजेक्ट डायरेक्टर आज बठिंडा में जांच के लिए गई थीं तथा उन्होंने वीरवार सुबह मुझे जांच रिपोर्ट सौंपनी है। इसके बाद कुछ तथ्यात्मक कहना संभव होगा। एक बात यह है कि इन ब्लड केसों में सैंपलों को लेकर एसओपी फॉलो नहीं किया गया है, जो चिंताजनक है।
हुस्न लाल, हेल्थ सेक्रेटरी, पंजाब

आरोपी बख्शे नहीं जाएंगे
यह मामला बेहद संगीन है। पहले मामले में जांच के आधार पर तुरंत कार्रवाई की गई है। इस पूरे प्रकरण की सख्ती से जांच की जा रही है तथा किसी भी आरोपी को बख्शा नहीं जाएगा। जिम्मेदार लोगों पर हर हाल में एक्शन होगा।
बलबीर सिंह सिद्धू, सेहत मंत्री, पंजाब

ब्लड बैंक के कर्मचारी जिनकी जिम्मेदारी थी ब्लड की जांच करना

बीटीओ डा. करिश्मा
ब्लड बैंक के काम का पूरा जिम्मा बीटीओ का होता है। इनकी निगरानी में ही ब्लड डोनेशन कैंप व ब्लड आदि कंपोनेंट इश्यू होते थे। उन्होंने ब्लड सैंपल की स्टीक जांच व स्टॉक का मिलान ही नहीं किया तथा बिना जांच रक्त इश्यू हो गया।

एलटी रिचा
इनकी जिम्मेदारी ब्लड एकत्र करने व ब्लड टेस्टों की है, लेकिन इस मामले में ब्लड टेस्ट पर ही सवालिया निशान लगा है। अगर इन्होंने ब्लड टेस्ट जिम्मेदारी से किए होते तो एचआईवी केस समय रहते पता लगते।

सीनियर एमएलटी बलदेव रोमाणा
इनकी जिम्मेदारी ब्लड बैंक काे किटें जारी करना, ब्लड स्टॉक व किट स्टॉक दुरुस्त रखना था, लेकिन बलदेव रोमाणा पर लापरवाही का मामला दर्ज होने के उपरांत रिमांड के बाद वह जेल में हैं।

डा. मयंक जैन
नये बीटीओ के कार्यकाल में 7 नवंबर को बिना नंबर नेगेटिव मुहर लगा एचआईवी संक्रमित ब्लड जारी हुआ। एक थैलेसीमिया मरीज बच्चे को चढ़ाने के दौरान जांच में सैंपल पॉजिटिव पाया जिसे सिविल सर्जन ने शरारत करार दिया है।

क्या कहते हैं जवाबदेह अधिकारी

एसएमओ मनिंदर सिंह
डाक्टर व कर्मियों की उपस्थिति व ब्लड बैंक से ब्लड इश्यू होना आदि पर इनका ही कंट्रोल है, लेकिन ब्लड बैंक की वर्किंग क्रास चेक नही की। हालांकि एसएमओ डा. मनिंदर सिंह कहते हैं कि वह समय-समय पर टीम से रिपोर्ट लेते रहे, लेकिन उन्हें अंधेरे में रखा।

सिविल सर्जन डा. अमरीक सिंह संधू
सबसे बड़े जवाबदेह सिविल सर्जन बठिंडा डा. अमरीक सिंह संधू हैं जिनके कंट्रोल में ब्लड बैंक से लेकर पूरा अस्पताल आता है। सिस्टम को खुद रिव्यू करते तो हालात ऐसे नहीं होते। डा. संधू के अनुसार ब्लड बैंक मेनटेन करने की जिम्मेदारी एसएमओ की है।

 

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