रेलवे प्लेटफॉर्म से पॉलिटिक्स तक का सफर: एक ट्रांसजेंडर देश के पहले LGBT पॉलिटिकल सेल की प्रमुख बनीं, 13 साल में मां ने घर से निकाल दिया था, कई रातें भूखे रहकर गुजारीं

आर्थिक तंगी झेलते हुए ट्रांसजेंडर प्रिया 13 की हुईं तो समाज, परिवार और उनकी मां भी उनके खिलाफ हो गईं और उन्हें घर से निकाल दिया विरार रेलवे स्टेशन पर रहने के दौरान उन्हें कई बार यौन शोषण का शिकार होना पड़ा, कई रातें भूखी काटनी पड़ीं और एक जोड़ी कपड़े में वे एक साल तक रहीं

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मुंबई. LGBT कम्युनिटी के लिए एक अलग सेल शुरू करने वाला देश का पहला राजनीतिक दल बन गई है राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (राकांपा)। मुंबई में सोमवार को बारामती से सांसद सुप्रिया सुले और पार्टी अध्यक्ष जयंत पाटिल ने मुंबई की ट्रांसजेंडर प्रिया पाटिल को इसका अध्यक्ष बनाया। विरार स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक साल तक रहीं प्रिया पाटिल ने अपने पॉलिटिक्स तक के सफर को शेयर किया।

13 साल की उम्र में मां ने घर से बाहर निकाला
3 जुलाई 1987 को मुंबई से सटे वसई-विरार में एक लड़के के रूप में जन्मीं प्रिया का बचपन कठिनाइयों में बीता। 9 साल की उम्र में उन्हें एहसास हुआ कि वह एक आम बच्चे से कुछ अलग हैं और जब वे 10 साल की थीं तो उनके पिता उन्हें और उनकी मां को छोड़कर चले गए।

आर्थिक तंगी झेलते हुए वे 13 की हुईं तो समाज, परिवार और उनकी मां भी उनके खिलाफ हो गईं। उनका लड़कियों के साथ रहना परिवार को पसंद नहीं था और एक दिन मां ने धक्का देकर उन्हें घर से बाहर निकाल दिया।

2017 में बीएमसी का चुनाव लड़ चुकीं प्रिया मुंबई की पहली ट्रांसजेंडर उम्मीदवार भी हैं।
2017 में बीएमसी का चुनाव लड़ चुकीं प्रिया मुंबई की पहली ट्रांसजेंडर उम्मीदवार भी हैं।

प्लेटफॉर्म पर एक साल तक रहीं
प्रिया पाटिल ने आगे बताया कि घर से निकलने के बाद वे मुंबई के विरार रेलवे स्टेशन पर आ गईं। यहां करीब एक साल तक रहीं। इस दौरान कई बार दो-तीन दिन तक खाना नहीं मिलता था। लोगों की जूठन खाई और कई बार यौन उत्पीड़न का शिकार भी हुईं। एक साल तक उनके पास सिर्फ एक ही कपड़ा था और नहाने के बाद उसके सूखने तक वो बिना कपड़ों के झाड़ियों में छिपी रहती थीं।

2002 में विरार रेलवे स्टेशन पर ही उनकी मुलाकात ट्रांसजेंडर कम्युनिटी से जुड़े कुछ लोगों से हुई और पेट भरने के लिए उनके साथ ट्रेन में भीख मांगना, लोगों के घरों में बधाइयां देने जैसे काम प्रिया ने शुरू किए।

प्रिया पाटिल का सपना संसद में पहुंचकर अपने समुदाय की आवाज को बुलंद करने का है।
प्रिया पाटिल का सपना संसद में पहुंचकर अपने समुदाय की आवाज को बुलंद करने का है।

दोस्त की मौत के बाद पॉलिटिक्स में जाने का मन बनाया
प्रिया ने बताया कि ट्रेन में भीख मांग कर काम करने वाली उनकी एक फ्रेंड एक दिन पुलिस से बचने के लिए ट्रेन के ऊपर चढ़ गई और ओवरहेड वायर की चपेट में आकर बुरी तरह से झुलस गई। इस घटना के बाद वह 8 दिनों तक हॉस्पिटल में रहीं और सही ढंग से इलाज नहीं मिलने के कारण उसकी मौत हो गई।

ऐसे हुई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में एंट्री
दोस्त के इलाज में हुई उपेक्षा को देख प्रिया ने तय किया आगे से ऐसा किसी के साथ नहीं हो, इसके लिए वो प्रयास करेंगी। इसके बाद वह पहले एक एनजीओ से जुड़ीं और फिर साल 2017 में बीएमसी की कुर्ला वेस्ट वार्ड-166 से चुनाव लड़ा। हालांकि, इसमें उनकी हार हुई। लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मार्च 2019 में उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की।

मार्च 2019 में सुप्रिया सुले ने ही उन्हें राकांपा में एंट्री दिलवाई थी।
मार्च 2019 में सुप्रिया सुले ने ही उन्हें राकांपा में एंट्री दिलवाई थी।

प्रिया के आइडिया और सुप्रिया सुले के प्रयास से बनी यह सेल
राकांपा से जुड़ने के बाद हुए चुनावों में उन्होंने पार्टी को मजबूत करने का काम किया और घर-घर जाकर वोट मांगे। मार्च 2020 में कोरोना महामारी के मद्देनजर लगे लॉकडाउन के बीच उन्हें ऐसी जानकारी मिली कि उनके समुदाय से जुड़े लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं। कई लोगों को उनके मकान मालिकों ने घरों से निकाल दिया है।

समुदाय से जुड़े लोगों तक आर्थिक मदद पहुंचाने के साथ उन्होंने आगे ऐसा न हो इसलिए बारामती से सांसद सुप्रिया सुले से मुलाकात की और पार्टी में ट्रांसजेंडर सेल शुरू करने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को और आगे बढ़ाते हुए सुप्रिया सुले ने इसमें एलजीबीटी कम्युनिटी से जुड़े लोगों को शामिल करने की बात कही। इस तरह से देश का पहला एलजीबीटी सेल बनकर तैयार हुआ।

प्रिया के साथ एलजीबीटी समुदाय से जुड़े 15 अन्य लोगों ने भी इस सेल को ज्वाइन किया है।
प्रिया के साथ एलजीबीटी समुदाय से जुड़े 15 अन्य लोगों ने भी इस सेल को ज्वाइन किया है।

प्रिया पाटिल का संसद तक पहुंचने का सपना
प्रिया ने बताया कि वे बचपन से लाल बत्ती की गाड़ी में घूमना चाहती थीं। अदालत के फैसले के बाद वह तो अब संभव नहीं है, लेकिन मैं चाहती हूं कि एक दिन अपने समुदाय की आवाज बनकर विधानसभा या संसद से अपनी बात रख सकूं। प्रिया का कहना है कि ऐसा करने के पीछे यही मकसद है कि इस कम्युनिटी के लोगों को भी बराबर अधिकार मिले।

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