अर्नब की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट:महाराष्ट्र पुलिस की FIR में आरोप साबित नहीं, किसी की एक दिन की भी आजादी छीनना गलत

अर्नब गोस्वामी को आर्किटेक्ट अन्वय नाइक की आत्महत्या के मामले में राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 11 नवंबर को जमानत दे दी थी।

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नई दिल्ली। रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी को आर्किटेक्ट अन्वय नाइक की आत्महत्या के मामले में राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 11 नवंबर को जमानत दे दी थी। इसके तकरीबन 15 दिन बाद शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब को बेल दिए जाने के मामले में विस्तृत फैसला सामने रखा है। इसमें बेल दिए जाने के कारणों को स्पष्ट किया गया है। अपने फैसले में अदालत ने कहा है कि रायगढ़ पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर का प्रथम दृष्टया मूल्यांकन उनके खिलाफ आरोप स्थापित नहीं करता है।

4 हफ्तों तक रहेगी अर्नब की जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्रकार अर्नब गोस्वामी की 2018 में आत्महत्या मामले में अंतरिम जमानत तब तक जारी रहेगी जब तक बॉम्बे हाईकोर्ट उनकी याचिका फैसला नहीं दे देता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्रकार अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत अगले 4 सप्ताह के लिए होगी जिस दिन से मुंबई हाईकोर्ट ने आत्महत्या के मामले में उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई शुरू की है।

हाईकोर्ट, निचली अदालतों पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हाईकोर्ट, जिला न्यायपालिका को नागरिकों के चयनात्मक उत्पीड़न के लिए आपराधिक कानून नहीं बनना चाहिए। अदालत के दरवाजे एक ऐसे नागरिकों के लिए बंद नहीं किए जा सकते हैं, जिसके खिलाफ प्रथम दृष्टया राज्य द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने के संकेत हों।’

‘किसी की एक दिन की आजादी छीनना गलत’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को एक दिन के लिए भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना बहुत अधिक है। जमानत अर्जी से निपटने में देरी की संस्थागत समस्याओं को दूर करने के लिए अदालतों की जरूरत है। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अर्नब के खिलाफ मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर और आत्महत्या के लिए अपमान के अपराध की सामग्री के बीच कोई संबंध नहीं दिख रहा है। ऐसे में अर्नब के खिलाफ आरोप साबित नहीं हो रहे हैं।

अदालत ने जमानत के दौरान यह कहा था
बता दें कि विगत 11 नवंबर को सर्वोच्च अदालत गोस्वामी को अंतरिम जमानत देते हुए कहा था कि अगर उनकी निजी स्वतंत्रता को बाधित किया गया तो यह अन्याय होगा। जस्टिस चंद्रचूड़ ने 11 नवंबर को अर्नब गोस्वामी को जमानत मंजूर करते हुए इस बात पर चिंता जताई थी कि राज्य सरकार कुछ लोगों को सिर्फ इस आधार पर कैसे निशाना बना सकती है कि वह उसके आदर्शों या राय से सहमत नहीं हैं।

इस मामले में दो अन्य नीतीश सारदा और फिरोज मुहम्मद शेख को भी पचास-पचास हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दे दी थी। जमानत देते हुए जस्टिस ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक सर्वोच्च अदालत है।

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