पुणे में अफगानी छात्रों का डर:कहा- अफगानिस्तान में तालिबानी शासन से फिर शुरू होगा महिलाओं का कत्लेआम, नहीं लौटना चाहते अपने देश

तालिबान भले ही खुद को बदलने की बात कर रहा हो, लेकिन पुणे में रह रहे अफगानी छात्र बिल्कुल भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वे बदल गए हैं।

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पुणे. लगभग पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा जमाते हुए सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले ली है। तकरीबन 20 साल बाद तालिबान की वापसी से न सिर्फ अफगानिस्तान में बल्कि कई हजार किलोमीटर दूर रह रहे पुणे के छात्रों में भी डर का माहौल है। तालिबान भले ही खुद को बदलने की बात कर रहा हो, लेकिन पुणे में रह रहे अफगानी छात्र बिल्कुल भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वे बदल गए हैं। इन छात्रों को डर है कि फिर से अफगानिस्तान में सड़कों पर महिलाओं और पढ़े-लिखे लोगों का कत्लेआम शुरू हो सकता है।

पुणे की सावित्रीबाई फुले यूनिवर्सिटी (पुणे यूनिवर्सिटी) में पॉलिटिक्स एंड पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई करने वाले 26 वर्षीय मुजामिल साबिर अफगानिस्तान के कुंदूज प्रांत के रहने वाले हैं। उनके पिता का वहां अच्छा-खासा बिजनेस है। मुजामिल तीन साल से पुणे में रह रहे हैं।

मुजामिल ने बताया कि कुंदूज पर तालिबान का कब्जा हो गया है। परिवार के लोगों से बात तो हो रही है, लेकिन वे पिछले 5 दिन से घरों में बंद हैं। वहां सिर्फ सड़कों पर दौड़ने वाली गाड़ियों, गोलियों और एम्बुलेंस की आवाज सुनाई दे रही है। रात में भी फायरिंग की आवाज आती है, इस कारण डरे हुए परिजन वीडियो कॉल पर मुझे देखते ही रोने लगते हैं। वे लोग मुझसे वापस नहीं आने को कह रहे हैं। मुझे भी डर लगने लगा है कि शायद अब उनसे नहीं मिल पाऊंगा।

मुजामिल साबिर अफगानिस्तान के कुंदूज प्रांत के रहने वाले हैं और पिछले तीन साल से पुणे में रह रहे हैं।
मुजामिल साबिर अफगानिस्तान के कुंदूज प्रांत के रहने वाले हैं और पिछले तीन साल से पुणे में रह रहे हैं।

पाकिस्तान की वजह से मजबूत हुआ तालिबान
मुजामिल बताते हैं कि पुणे की लाइफ अच्छी है। यहां के लोग मदद करने को तैयार रहते हैं, लेकिन परिवार मुसीबत में है। शरीर भले ही यहां है, लेकिन मेरी आत्मा अभी भी वहीं है। मुझे अपने परिवार की चिंता लगातार सता रही है। हमारी सरकार ने हमें तालिबानी आतंकियों के हवाले कर दिया है। तालिबान को मजबूती पाकिस्तान की वजह से मिली। उन्होंने ही हथियार से लेकर, पैसे तक मुहैया करवाए।

तालिबान आज हमें परेशान कर रहा है, कल वह आसपास के देशों को भी तंग करेगा। हम चाहते हैं कि भारत सरकार हमारी मदद को आगे आए। मेरा और मेरे कुछ साथियों का वीजा जल्द खत्म हो जाएगा, इसके बाद हमें अपने देश लौटना होगा, पर मैं वहां नहीं जाना चाहता हूं। हम अपील करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारी मदद को आगे आएं।

झूठा है तालिबान, फिर सड़कों पर बहेगा महिलाओं का खून
मुजामिल को लगता है कि अफगानिस्तान में फिर से 20 साल पुराना भय का साम्राज्य लौटने वाला है। उन्होंने बताया, ‘मैं छोटा था, लेकिन मैंने तालिबान की क्रूरता को देखा है। वे खुलेआम महिलाओं और पढ़े-लिखे लोगों के संग बर्बरता करते थे।

मुजामिल बताते हैं कि मेरे कई रिश्तेदारों को भी तालिबान ने मौत के घाट उतारा था। तालिबान खुद को बदलने का झूठा प्रोपेगैंडा फैला रहा है। सत्ता में पूरी तरह से काबिज होने के बाद वह फिर से अपना पुराना रूप दिखाएगा और एक बार फिर से सड़कों पर महिलाओं का कत्लेआम होगा। तालिबान न कभी बदला था और न कभी बदलेगा।

फौजाना अफगानिस्तान के वारदाक की रहने वाली हैं और पिछले तीन साल से पुणे में रह रही हैं।
फौजाना अफगानिस्तान के वारदाक की रहने वाली हैं और पिछले तीन साल से पुणे में रह रही हैं।

एक महीने में तालिबान ने 20 साल पीछे धकेल दिया
पुणे यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली फैजाना मिरी ने बताया कि हमने 20 साल तक अपनी लाइफ को सही करने का प्रयास किया। खाने जैसे बेसिक जरूरतों को पूरा करने की कोशिश की और जब सब चीजें ठीक हुई तो फिर से तालिबान उन्हें खराब करने आ गया है। पिछले एक महीने में तालिबान ने हमें 20 साल पीछे धकेल दिया है। हम टूटे नहीं हैं और हम फिर खड़े होंगे और इसके खिलाफ लड़ेंगे।

कई छात्रों का परिवार से नहीं हो पा रहा संपर्क
अफगान स्टूडेंट्स एसोसिएशन, पुणे के अध्यक्ष वली रहमान रहमानी ने बताया कि यहां रहने वाले कई छात्रों का सोमवार दोपहर के बाद से अपने परिवार से संपर्क टूट गया है। पुणे की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी से MBA करने वाले शुकरुल्ला अहमदी (25) ने कहा कि उन्होंने पिछले तीन दिनों से अफगानिस्तान में अपने परिवार से बात नहीं की है।

अहमदी ने कहा कि घर वापस की स्थिति भयानक और डरावनी है। हमने इस तरह की स्थिति की कभी कल्पना नहीं की थी। लोगार प्रांत में मेरे गृहनगर में, जो काबुल से मुश्किल से 50 किमी दूर है, इंटरनेट और टेलीफोन सेवाएं पूरी तरह से बंद हैं और मैं अपने परिवार के साथ कनेक्ट नहीं कर पा रहा हूं।

परिवार से दूर हैं, लेकिन सुरक्षित तो हैं
अहमदी ने बताया कि उनके परिवार में मां और तीन बड़े भाई हैं। आखिरी बार वो साल 2018 में अपने घर गए थे। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को उन छात्रों के वीजा को एक्सटेंड करना चाहिए, जिनका प्रवास जल्द ही समाप्त हो रहा है क्योंकि इस समय अफगानिस्तान वापस जाना बेहद खतरनाक है। अहमदी ने कहा, “अगर हम वहां जाते हैं, तो सुरक्षित नहीं रहेंगे। हम अपने परिवारों से दूर हैं, लेकिन कम से कम यहां सुरक्षित तो हैं।”

छात्र सब कुछ ठीक होने के बाद ही घर लौटना चाहते हैं
वली के मुताबिक, अफगानिस्तान के करीब 3,000 छात्र पुणे शहर के अलग-अलग इंस्टीट्यूट में पढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा, “हम भारत सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि जब तक स्थिति में सुधार नहीं हो जाता, तब तक उनका वीजा बढ़ाया जाए।”

एसोसिएशन इन छात्रों को उनके परिवारों से वापस संपर्क करने में मदद करने की कोशिश कर रहा है। वे स्टूडेंट्स, जिनके प्रांत पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है, वे अब अनहोनी की आशंका से भयभीत हैं। ऐसा नहीं है कि छात्र अब अपने घर लौटना ही नहीं चाहते हैं। वे सब कुछ सही हो जाने के बाद फिर से घर लौटेंगे, लेकिन फिलहाल वे अपने वीजा को आगे बढ़वाना चाहते हैं।”

पुणे यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले अफगानी स्टूडेंट्स ने मंगलवार को यहां एक मीटिंग की और आगे की रणनीति बनाई।
पुणे यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले अफगानी स्टूडेंट्स ने मंगलवार को यहां एक मीटिंग की और आगे की रणनीति बनाई।

सरकारी स्कॉलरशिप पर भारत आए छात्र सबसे ज्यादा डरे हुए हैं
फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल स्टूडेंट्स एसोसिएशन (FISA) के अध्यक्ष अब्बा ओउमर ने इस कठिन समय में कहा, “हम साथी अफगान छात्रों को हर संभव सहायता देने की कोशिश कर रहे हैं।” इन छात्रों की मदद के लिए पुणे का NGO ‘सरहद’ भी आगे आया है।

NGO के प्रमुख संजय नाहर ने बताया, ‘हम 2007 से अफगानी स्टूडेंट्स के साथ काम कर रहे हैं। वहां के हालात बहुत खराब हैं। पुणे में 3 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स अलग-अलग इलाकों में रहते हैं, इनमें से कई पढ़ाई के साथ जॉब भी करते हैं। तकरीबन 50 प्रतिशत स्टूडेंट्स सरकारी माध्यम यानी स्कालरशिप के तहत, 40 प्रतिशत स्टूडेंट्स प्राइवेट फंडिंग के तहत और बचे हुए 10 प्रतिशत अन्य माध्यम से यहां आए हैं।’

नाहर ने कहा कि भारत में कोविड की दूसरी लहर के बाद आधे से ज्यादा छात्र अफगानिस्तान लौट गए थे। कल तक वे भारत में मौजूद अपने साथियों के संपर्क में थे, लेकिन अब ज्यादातर से संपर्क टूट गया है। यह हमारे लिए चिंता का विषय है।

सरकार ही नहीं रही, तो सरकारी वीजा पर आने वाले छात्रों का क्या होगा?
नाहर ने बताया- हमारी संस्था ने अफगानी स्टूडेंट्स के लिए एक हेल्पलाइन नंबर (8007066900) जारी किया है। इसमें हर दिन सैकड़ों कॉल आ रही हैं। ज्यादातर छात्र भारत में रहने के दौरान वीजा को बढ़ाने को लेकर चिंतित हैं। इनमें से कोई भी वापस अफगानिस्तान नहीं लौटना चाहता है।

नाहर ने बताया कि हम लोकल पुलिस से लगातार संपर्क में हैं। हम चाहते हैं कि उनका वीजा एक्सटेंड कर दिया जाए। जो लोग सरकार की स्कॉलरशिप पर भारत आए हैं, वे सबसे ज्यादा डरे हुए हैं क्योंकि जब सरकार ही बदल गई तो उसकी ओर से मिलने वाली स्कॉलरशिप भी रुक सकती है।

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