कृषि कानूनों का विरोध किसान संगठन कर रहे हैं। बड़ी संख्या में किसान दिल्ली बॉर्डर पर डेरा डाले बैठे हैं। किसानों को मनाने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री ने मंगलवार को किसान संगठनों से बातचीत की, लेकिन सफल नहीं रही। किसान संगठनों से वे सवाल लिए जो वे सरकार से पूछना चाहते हैं और इन पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से जवाब लिया।
1. क्या किसी किसान आंदोलन में कभी ये तीन या इन जैसे कानून बनाने की मांग उठी थी? क्या कानूनों का ड्राफ्ट बनाने के लिए किसान संगठन से मशविरा किया गया था?
राष्ट्रीय किसान आयोग ने सिफारिशें की थीं। नए कानूनों के पीछे सरकार का यही मंतव्य है कि अन्नदाताओं का शोषण बंद हो। स्वामीनाथन कमेटी की 201 अनुशंसाओं में से 200 को मोदी के नेतृत्व में लागू किया जा चुका है।
(मंत्री ने यह नहीं बताया कि किस आंदोलन में कानूनों की मांग उठी थी।)
2. क्या देश में कोई भी जनाधार वाला किसान संगठन या किसान नेता इन कानूनों के समर्थन में है?
पूरे देश के किसानों ने नए कानूनों का समर्थन किया है। अगर ऐसा नहीं होता तो फिर देशभर में आंदोलन खड़ा हो जाता। राजनीतिक दल किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।
3. अगर इन कानूनों से MSP को कोई खतरा नहीं है, तो सरकार MSP को किसान का कानूनी हक क्यों नहीं बना रही?
इन कानूनों में MSP की बात है ही नहीं, राजनीतिक स्वार्थ के चलते विपक्षी दल भ्रम फैला रहे हैं। प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि MSP था, है और आगे भी रहेगा। फिर कन्फ्यूजन क्यों है?
4. कॉन्ट्रैक्ट की खेती में किसान को लुटने से कौन बचाएगा?
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की नई व्यवस्था स्पष्ट है, जिसमें किसानों का शोषण नहीं हो सकेगा। जो भी किसानों की फसल का पहले से सौदा करेगा, वह सब-कुछ लिखित करार में होगा। किसान अपनी मर्जी से ही यह करार करेगा, जिस भाव पर बेचने का अनुबंध होगा, उसे उपज के खरीदार को पूरी तरह से अंत तक निभाना पड़ेगा। कोई समस्या आने पर किसान इस अनुबंध का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है। अनुबंध तोड़ने पर किसानों को कोई नुकसान नहीं होगा, वहीं यदि खरीदार व्यापारी सौदे से मुकरता है तो उसे भारी पेनल्टी लगेगी, जो किसान को मिलेगी। इसी तरह, करार में किसान की जमीन का सौदा किसी भी कीमत पर बिल्कुल नहीं होगा। जमीन किसान की ही रहेगी। सौदा सिर्फ फसल का होगा। वर्तमान में भी पंजाब, हरियाणा सहित कई राज्यों में कांट्रेक्ट फार्मिंग एक्ट/नियम लागू हैं। पूरे देश में एक तरह के नियम होने से समानता के साथ ही किसानों को ज्यादा लाभ होना भी सुनिश्चित है।
5. राज्यसभा में बिना मत विभाजन किए यह कानून क्यों पारित किए गए?
राज्यसभा में बिल पारित किए जाने के दौरान विपक्ष ने जो हंगामा किया, वह हमारे लोकतंत्र पर काले धब्बों के रूप में अंकित हो गया है। जब मैंने जवाब देने चाहे तो विपक्ष के साथी कुछ सुनने-समझने को तैयार ही नहीं थे।
6. क्या इन कानून से जमाखोरी की खुली छूट नहीं मिल जाएगी, किसानों को कैसे फायदा होगा?
जमाखोरी का सवाल तो तब आता है, जब देश में खाद्यान्न का संकट हो। भारत खाद्यान्न के मामले में न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि सरप्लस भी है।
7. कंपनियों को मंडी से बाहर बिना टैक्स खरीद की छूट देने से क्या मंडी खत्म नहीं हो जाएगी? अगर मंडी नहीं बची तो किसान कैसे बचेगा? सरकारी रेट पर खरीद कहां होगी?
नए कानून से मंडियां समाप्त नहीं हो रही हैं। किसानों से उनकी उपज व्यापारी ही खरीदेंगे, ऐसा तो कानून में कहीं नहीं है। कृषि उपज को पैनकार्ड धारक कोई भी व्यापारी खरीद सकता है या किसान चाहे तो खेत से सीधे उपभोक्ताओं को बेच सकते हैं। कृषि उपज बेचने की स्वतंत्रता पूरी तरह से अब किसानों को मिल गई है। मंडी परिधि के बाहर टैक्स नहीं लगने से किसानों के साथ ही उपभोक्ताओं यानी जनता को सीधा-सीधा फायदा ही तो है।
8.अध्यादेश लॉकडाउन और महामारी के बीच क्यों लाए गए? अगर इतनी ही जरूरत थी तो अध्यादेश लाने के बाद तीन महीने तक सरकार ने इन कानूनों के तहत कोई भी आदेश क्यों नहीं निकाला?
ऐसी बात कहने वाले पहले जवाब दें कि लॉकडाउन के दौरान क्या देश में सिर्फ कृषि कानून लाए गए? क्या कोई दूसरा सरकारी काम नहीं हुआ? लॉकडाउन के दौरान ही आत्मनिर्भर भारत अभियान की दिशा में देश तेजी से आगे बढ़ा है। 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज घोषित किए गए हैं, जिन पर अमल भी शुरू हो चुका है। नए कृषि कानून के कारण ही महाराष्ट्र के धुले जिले के किसान जितेंद्र भोईजी को उनकी उपज बेचने के बदले मध्यप्रदेश के व्यापारी से बकाया भुगतान एसडीएम के माध्यम से मिल पाया, जिसका प्रावधान नए नियमों में किया गया है।
9. अगर राज्य सरकारें किसानों को सस्ती बिजली देती हैं तो उसे रोकने के लिए कानून बनाकर केंद्र दखल क्यों दे रहा है?
(तोमर ने जवाब नहीं दिया।)
तोमर बोले- 10 करोड़ किसानों को 93 हजार करोड़ रुपए खाते में ट्रांसफर किए गए
कृषि मंत्री ने कहा- पीएम किसान योजना के तहत देश के लगभग 10 करोड़ किसानों को 93 हजार करोड़ रुपए सीधे उनके खाते में ट्रांसफर किए गए हैं। किसानों को उर्वरक की कमी न हो इसके लिए पर्याप्त प्रबंध किए गए हैं। साढ़े तीन साल में किसानों द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत लगभग 17 हजार 738 करोड़ का प्रीमियम भरा गया, जबकि उनके दावों के भुगतान में पांच गुना राशि, यानी लगभग 87 हजार करोड़ रुपए वितरित किए गए।
साभार/दैनिक भास्कर