चंडीगढ़। भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद शिरोमणि अकाली दल (शिअद) अब बसपा के साथ मिलकर 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है। दो महीने में कई मैराथन बैठकों के बाद गठजोड़ को अंतिम रूप दे दिया गया हैं। हालांकि, अभी औपचारिक घोषणा नहीं की है। माना जा रहा है कि दोनों दलों में अभी सीटों को लेकर अंतिम फैसला नहीं हुआ है।
शिअद भाजपा की तरह ही सीमित सीटें बसपा को देना चाहता है लेकिन सूत्रों का कहना है कि बसपा अधिक सीटें मांग रही है। वह लगभग 30% सीटों, यानी 37 से 40 सीटों की डिमांड कर रही है, लेकिन शिअद केवल 18 सीटें देना चाहता है। बसपा के पंजाब प्रभारी रणधीर सिंह बैनीपाल ने भास्कर से कहा कि अगर गठबंधन में दो से चार सीटें हमें छोड़नी पड़ीं, तो इसके लिए तैयार हैं। वहीं शिअद के डॉ.दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि इस संबंध में शिअद रणनीति तैयार कर रहा है।
33% दलित वोट बैंक पर नजर
प्रदेश में दलितों की अनदेखी के आरोप विभिन्न राजनेता लगाते रहे हैं। हाल ही में कांग्रेस की अंतर्कलह के दौरान भी हाईकमान की कमेटी के समक्ष विभिन्न नेताओं ने यह मुद्दा उठाया था। उनका कहना था कि सूबे में दलितों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। जब दलित एमएलए की ही कोई सुनवाई नहीं होती तो आम जनता का क्या होगा। इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए। इसीलिए इस बार सभी पार्टियों की 33% दलित वोट बैंक पर विशेष नजर है। इसीलिए सभी पार्टियां दलित नेताओं को पक्ष में करने में जुटी हैं।
दलित को डिप्टी सीएम बनाने की घोषणा संभव
एक दिन पहले शिअद अध्यक्ष सुखबीर बादल ने दलित को डिप्टी सीएम बनाए जाने की घोषणा की है। क्योंकि सूबे में बसपा में अधिकतर नेता दलित माने जाते हैं, इसलिए इस गठजोड़ का फायदा शिअद का मिलेगा। अपनी पार्टी और दलित नेताओं की प्रदेश में स्थिति जाने के लिए अकाली दल प्रदेश में सभी 117 विधानसभा क्षेत्रों में सर्वे करा रहा है, जिसमें यह पता लगाया जाएगा कि किस क्षेत्र में दलितों नेताओं के कितने समर्थक है और उन्हें कितने वोट मिल सकते हैं। वहीं अपनी पार्टी का भी शिअद आकलन कर रहा है।
भाजपा ने भी की है दलित सीएम बनाने की घोषणा
दूसरी ओर, अकालियों और बसपा की तैयारियों को देखते हुए और दलितों का समर्थन हासिल करने के लिए प्रदेश भाजपा ने भी गत दिवस दलित को सीएम बनाए जाने की घोषणा की है, ताकि दलितों द्वारा उनकी अनदेखी के उठाए जा रहे सवालों पर विराम लग सके। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शिरोमणि अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी से गठजोड़ कर दलितों को रिझाने में बाजी मार ली है। इस फैसले के बाद अब देखना यह है कि प्रदेश में अन्य दलों को चुनाव में दलितों का कितना समर्थन मिल पाता है।