जहां पैदा हुआ इस्लाम, उसी धरती पर फलफूल रहा है हिंदुओं से मिलता-जुलता ये धर्म
अरब देशों में जहां इस्लाम (Islam) की पैदाइश हुई. वहीं पर एक पुराना धर्म है यजीदी (Yazidi). तमाम थपेड़ों के बाद भी इस धर्म ने खुद को बचाया हुआ ही नहीं बल्कि फलफूल भी रहा है. इस धर्म की तमाम परंपराएं, रीतिरिवाजो और विश्वास हिंदू धर्म (Hindu religion) से मिलते-जुलते हैं. अरब देशों की धरती पर फलफूल रहे इस धर्म को कुछ समय पहले तक इस्लामिक स्टेट (ISIS) ने खत्म करने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यजीदी मोर पंख की पूजा करते हैं.
यजीदी धर्म की शुरुआत 12वीं सदी में शेख़ अदी इब्न मुसाफिर ने की थी. यजीदी अपने ईश्वर को याज़्दान कहते हैं. इनके मुताबिक दुनिया को बनाने के बाद ईश्वर ने इसकी देखभाल के लिए सात फरिश्तों को तैनात किया है. इन फरिश्तों में ‘मलक ताउस’ यानि मोर का फरिश्ता प्रमुख है. मलक ताउस का अन्य नाम शायतन भी है, जिसका अरबी में मतलब ‘शैतान’ है. और इसी वजह से उनकी छवि ‘शैतान का उपासक’ की बन गई.
यजीदी धर्म के मानने वाले बाइबल और कुरान दोनों ही धर्मग्रंथों में आस्था रखते हैं. दोनों किताबों के मिले-जुले स्वरूप का पालन भी करते हैं. इस धर्म के अनुयायी दिन में पांच बार सूर्य की तरफ मुंह करके पूजा करते हैं. उनकी कब्रों का मुंह पूरब दिशा की तरफ होता है.
पादरी पवित्र जल से बच्चों का धर्म संस्कार (बपतिस्मा) करते हैं. शादियों में पादरी रोटी को दो हिस्सों में तोड़कर पति-पत्नी को देते हैं. दिसंबर में यज़ीदी तीन दिन का उपवास करते हैं और पीर के साथ शराब पीकर उपवास तोड़ते हैं. यज़ीदी जानवरों की क़ुर्बानी भी देते हैं और बच्चों की ख़तना भी कराते हैं.
इस्लामिक स्टेट यज़ीदी समुदाय को उम्मेयद राजवंश के शासक कौन हैं यज़ीद से जोड़कर देखती है. यज़ीद खुद ही मुसलमानों का खलीफा बन बैठा था. यज़ीद, माविया का बेटा था. माविया वो था जिसने सुन्नियों के पहले खलीफा और शिया के पहले इमाम यानी मुहम्मद साहब के दामाद ‘अली’ को मारकर सत्ता हथिया ली थी. यज़ीद ने बाद में इराक स्थित कर्बला में अली के बेटे इमाम हुसैन को मरवा दिया था. इसी वजह से इस्लामिक स्टेट यज़ीदी समुदाय को मिटा देना चाहता है हालांकि यज़ीदी समुदाय का इस सब से कुछ भी लेना देना नहीं है. यज़ीदी समुदाय आज विश्व भर में इस्लामिक स्टेट के नरसंहार का सामना कर रहा है. उनकी जनसंख्या में 2014 के बाद से तीव्र गति से कम हुई है.
तकरीबन एक दशक पहले एक महिला की तस्वीर लोगों के बीच कौतूहल बन गई. इस चौंकानेवाली तस्वीर में यज़ीदियों के सबसे पवित्र स्थल लालिश की भीतरी दीवार पर एक महिला दीपक जला रही है. दरअसल ये एक पेन्टिंग है, जो यज़ीदियों के सबसे पवित्र मंदिर के दीवार पर बनाई गई है. इस पेन्टिंग में दीपक से ज्यादा खास है उस महिला का भारतीय वेशभूषा.
महिला की शक्ल किसी दक्षिण भारतीय महिला से मेल खाती है. उसकी साड़ी हरी है. ब्लाउज़ नारंगी. जब ये तस्वीर सामने आई तो दावा किया जाने लगा कि यज़ीदी हिंदू धर्म की ही एक शाखा है. हालांकि ये एक विवादित विषय है. इसके बाद यज़ीदी महिलाओं की दूसरी तस्वीर भी चार साल पहले ख़ूब वायरल हुई थी, जिसमें उन्हें दिवाली मनाते हुए देखा गया.
यज़ीदी धर्म अपने आप में बेहद खास और रहस्यमय हैं. मुख्य रूप से यजीदी उत्तर-पश्चिमी इराक, उत्तर-पश्चिमी सीरिया और दक्षिण-पूर्वी तुर्की में अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में रहते हैं. यजीदी धर्म विश्व की सबसे पुरानी धार्मिक परंपराओं में से एक है. यजीदियों की धार्मिक किताबों की माने तो ये परंपरा छह हज़ार साल पुरानी है. यजीदी का शाब्दिक अर्थ ईश्वर को पूजने वाला होता है. ये शब्द मूल रूप से पर्शियन भाषा से है. यजीदी अपने ईश्वर को यजदान कहते हैं.
यजीदियों की धार्मिक किताबों के मुताबिक यजदान के सात अवतार हैं. जिनमें मयूर देवता हैं जिन्हें मलक ताउस कहा जाता है. मयूर देवता को बाक़ी सभी अवतारों से की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली माना जाता है. यजीदी ईश्वर को इतना पवित्र मानते हैं कि उनकी सीधे तौर पर उनकी पूजा तक नहीं करते.. उनके मुताबिक यजदान पूरे मानव सृष्टि का रचयिता हैं, लेकिन सृष्टि की रखवाली वो नहीं करते बल्कि ये काम उनके अवतार के द्वारा किया जाता है जिनमें मोर देवता प्रमुख हैं. यज़ीदी मोर देवता के साथ-साथ उनके मोरपंख को भी पूजते हैं. इस देवता को भारत में दो भगवानों से जोड़कर देखा जाता है. भगवान श्री कृष्ण और दक्षिण भारत के प्रसिद्ध देवता मुरुगन.
यजीदियों में जल का महत्व है. धार्मिक परंपराओं में जल से अभिषेक किए जाने की परंपरा है. यजीदी भी हिंदुओं की तरह ही पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं. यजीदी दिन में पांच बार ईश्वर की प्रार्थना करते हैं. सूर्योदय और सूर्यास्त में सूर्य की ओर मुंह करके प्रार्थना करते हैं. प्राथना के तुरंत बाद वो दीप जला कर आरती करते हैं.
हिंदु धर्म की तरह ही वो कर्मों के हिसाब से स्वर्ग और नरक में जाने की पद्धति को मानते हैं. हिंदुओं की तरह ही धार्मिक संस्कार जैसे मुंडन, निराहार व्रत, मंदिर में विवाह जैसी परंपरा है. यजीदियों में धार्मिक मेलों और उत्सव मनाने की परंपरा भी है. यजीदी मंदिर में इश्वर के अवतारों की तस्वीर के सामने उनकी पूजा करते हैं. (चित्र में ये आर्मेनिया में बना यजीदियों का खूबसूरत मंदिर है, जो बिल्कुल हिंदू धर्म के मंदिरों से मेल खाता है).
मृत्यु के बाद यजीदियों में मृतक की समाधि बनाने की परंपरा है. यजीदियों की धार्मिक भाषा कुरमांजी है. जो प्राचीन इरानी भाषा की एक शाखा है. पृथ्वी, जल व अग्नि में थूकने को पाप समझते हैं. यजीदी धर्म परिवर्तन नहीं करते. यजीदी के लिए धर्म निकाला सबसे दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है, क्योंकि ऐसा होने पर उसकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता.
इनकी मौजूदा आबादी लगभग पांच लाख है. ISIS के आतंक का शिकार हो रहे यजीदी समुदाय के लोग लगातार सीरिया और इराक़ से पलायन कर रहे हैं. इस्लामिक स्टेट के द्वारा पिछले दशक में हुए नरसंहार की वजह से यजीदियों की आबादी में भारी गिरावट दर्ज़ की गई है.
यजीदी एक ऐसा धर्म हैं जिनमें धर्मांतरण मान्य नहीं है. इस समुदाय का कोई इंसान धर्मांतरण के जरिए ना तो ये धर्म छोड़ सकता है और न ही यजीदी धर्म का हिस्सा बन सकता है. जिसने इस धर्म में जन्म लिया है वो आजीवन इस धर्म का हिस्सा रहेगा. जिसने इस धर्म में जन्म नहीं लिया वह किसी भी रूप में यजीदी नहीं बन सकता.
हिंदुओं की तरह ही यजीदियों की भी मान्यता है कि आत्मा कभी मरती नहीं. वो सिर्फ़ एक शरीर से दूसरे शरीर में दाखिल होती है. इसलिए यजीदी पुनर्जन्म की अवधारणा पर यकीन रखते हैं. यजीदी धर्म को मुख्य रूप से 12वीं सदी में स्थापित किया गया. अदी इब्न मुसाफिरने इसे स्थापित किया. नए धार्मिक नियम कायदे बनाए गए. वो एक धार्मिक गुरु थे.
हिंदुओं की तरह ही पुजारी के हाथों जल छिड़क कर बच्चों का धर्मिक संस्कार बप्तिस्मा करते हैं. ये संस्कार बिल्कुल मुंडन की तरह की होता है. विवाह के दौरान यजीदी धर्म में रोटी को दो टुकड़ों में बांटकर पति-पत्नी को खिलाया जाता है. हिन्दू धर्म की तरह विवाह के समय स्त्रियां लाल जोड़ा पहनती हैं और मंदिर में जाती हैं. दिसंबर माह में यजीदियों का दीपक त्योहार मनाया जाता है जिसमें लोग तीन दिन का उपवास रखते हैं.
यजीदी भी किसी पैगम्बर में यकीन नहीं करते बिल्कुल हिंदुओं की तरह. हिंदुओं की तरह ही वे भी प्रकृति के उपासक हैं. बहुत सारे कर्मकाण्ड बिल्कुल आदिम काल के पुरातन धर्मों की तरह ही उनमें भी पूरे किए जाते हैं जो आज तक सनातन हैं. यज़ीदियों के मंदिरों में दीपक जलाने और हवनकुण्ड के रूप में अग्नि पूजा करने का रिवाज भी हिंदु धर्म के जैसा ही है.
मोसुल के उत्तर में बसे शहर लालेश में यजीदियों का सबसे बड़ा धार्मिकस्थल मौजूद है. जहां उनके सबसे बड़े धार्मिक गूरू आदी की समाधि है. उसी समाधि पर एक बड़ा सा मंदिर बना हुआ है. ये मंदिर नदी के ठीक बगल में स्थित है. हर साल 15-20 सितंबर के बीच यहां यजीदियों का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव मनाया जाता है. इस त्योहार में यजीदी एकठ्ठे होकर नदी में पहले नहाते हैं फिर मंदिर जाकर पूजा करते हैं.