आखिर क्यों इस्तीफा ही मंजूर कराना चाहते हैं कर्नाटक के बागी विधायक?

बागी विधायकों का कहना है कि स्पीकर का असली मकसद तो किसी भी तरह घेरकर उन्हें अयोग्य ठहराना है. विधायकों का कहना है कि हमारी कुर्सी की आस भी खत्म करना चाहते हैं.

नई दिल्ली. कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के बागी विधायकों ने विधान सौदा से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पूरा जोर लगा दिया कि उनका इस्तीफा ही मंजूर हो. किसी भी कीमत पर उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जाए. जब सदस्यता दोनों ही स्थितियों में जानी है तो उन पर क्या फर्क पड़ रहा है. उन्होंने क्यों पूरी कोशिश की है कि स्पीकर उनका इस्तीफा ही मंजूर कर लें. सरकार के साथ-साथ स्पीकर भी इसी जुगत में लगे हैं कि अयोग्य ठहरा कर बात खत्म कर दी जाए.

दरअसल, विधायकों ने अब कानून की तलवार का सहारा लिया है तो स्पीकर ने भी नियमों की ढाल सामने कर रखी है. उनका कहना है कि संविधान की दसवीं अनुसूची में स्पीकर की शक्तियों, अधिकारों और मर्यादा के साथ-साथ कार्य करने की प्रक्रिया का पूरा विस्तार से जिक्र है. इसके मुताबिक कोई भी विधायक इस्तीफा दे तो उसे मंजूर करने से पहले स्पीकर को ये जानकर अपनी तसल्ली कर लेनी चाहिए कि इस्तीफा किसी दबाव, प्रभाव, लोभ लालच या सियासी सौदेबाजी के लिए तो नहीं दिया जा रहा. इस जांच पड़ताल में वक्त तो लगता ही है, लिहाजा कोर्ट की ओर से बताए गए समय में यह नहीं हो सकता, इसमें देर तो लगेगी.

बागी विधायकों का कहना है कि यह सब गलत है, स्पीकर का असली मकसद तो किसी भी तरह घेरकर अयोग्य ठहराना है. विधायकों का कहना है कि हमारी कुर्सी की आस भी खत्म करना चाहते हैं.

दरअसल, इस सियासी दांव के कानूनी पेंच की असलियत मंत्री पद है. सियासत के घामड़ ये बता रहे हैं कि दलबदल निरोधक कानून और विधानमंडल कार्यप्रक्रिया नियमावली के मुताबिक जिस दल के टिकट पर चुनाव जीत कर विधायक या सांसद माननीय बने हैं, उस दल के व्हिप और नियम सदन में मानने पड़ेंगे. दलबदल कानून के बावजूद कोई विधायक या सांसद बगावत कर इस्तीफा दे तो उसकी सदस्यता तो जाएगी ही. फिर चाहे वो दूसरी पार्टी ज्वॉइन करे या नहीं, विधायकी तो गई.

पेच तो अयोग्य घोषित करने पर ही फंसा है, क्योंकि दलबदल कानून के तहत विधायक को अयोग्य घोषित किया जाए तो फिर उसे चुनाव जीतकर ही दोबारा योग्यता सिद्ध करनी होगी. असली समस्या तो कुमारस्वामी की सरकार गिरने के बाद अगली सरकार में मंत्री पद को लेकर है. क्योंकि अगर विधायकी गई तो कोई बात नहीं अगली सरकार में मंत्री पद तो मिल ही जाएगा.

अयोग्य घोषित होने के बाद तो पहले चुनाव जीतकर आओ फिर मंत्री पद पाओ. वहीं इस्तीफा देकर विधायकी गंवाने के बाद तो मंत्री बनने में कोई अड़चन ही नहीं है. बगावत भी तो मंत्री पद के लिए ही की है, यहां एक पल का इंतजार बर्दाश्त नहीं उधर कानून है कि छह महीने या फिर चुनाव जीतने की बात कह रहा है. मंत्री बनने के बाद चुनाव जीतना आसान रहता है, लेकिन विधायकी गंवाकर उसी इलाके से फिर जनता के बीच जाना और विरोधियों के इस आरोप से पार पाना और भी दर्दनाक है.

सुप्रीम कोर्ट में तो मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने भी कह दिया कि इस्तीफा देने वालों में से कई पर तो भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं. ये तो इसलिए ही पाला बदल रहे हैं कि अपने खिलाफ चल रही जांच पर विराम लग जाए.

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