बठिंडा। बठिंडा शहर के 210 करोड़ के सौ फीसदी सीवरेज एंड पानी प्रोजेक्ट के तहत त्रिवेणी कंपनी की तरफ से हासिल किए टेंडर में सीवरेज बोर्ड की तरफ से तय शर्तों पालना नहीं की जिसमें टेंडर वर्क में फ्रंट नहीं देने पर आर्बिटेशन में तीन साल से केस चल रहा था। इस केस में सोमवार को आर्बिटेशन ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते सीवरेज बोर्ड को 37 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। यह राशि त्रिवेणी कंपनी को जारी करने की हिदायते देते साल 2022 से 18 फीसदी ब्याज देने के लिए भी कहा है। वही चेतावनी के साथ हिदायत दी है कि सीवरेज बोर्ड ने उक्त राशि जारी करने में जितनी देरी की उस पर भी उसे 9 फीसदी के हिसाब से ब्याज अदा करना पड़ेगा। पहले से आर्थिक तंगी से जूझ रहे सीवरेज बोर्ड के लिए यह आदेश नई मुश्बित लेकर आया है जबकि पिछले लंबे समय से नगर निगम व सीवरेज बोर्ड के निशाने पर रही त्रिवेणी ने बड़ी राहत महसूस की है। नगर निगम के अधीन शहर में काम कर रहे सीवरेज बोर्ड पर लगे जुर्माने के बाद भी मुशकिल कम होती नहीं दिखाई दे रही है क्योंकि आर्थिक तंगी से जूझ रहे नगर निगम पर कूड़े का प्रबंधन करने वाली जेआईटीएफ कंपनी ने भी 750 करोड़ रुपये के क्लेम का केस कर रखा है जिसमें अभी सुनवाई चल रही है।
सोमवार को आर्बिटेशन में दायर केस में फैसला काफी तल्ख रहा क्योंकि सीनरेज बोर्ड की तरफ से दिए गए सभी तर्कों को निरस्त कर दिया गया। नगर निगम अब तक त्रिवेणी कंपनी पर आरोप लगाता रहा कि वह तय एग्रीमेंट के अनुसार काम नहीं कर रही है व लोगों को परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। वही नगर निगम की बैठकों में पिछले पांच साल से जिस मुद्दे को लेकर जोर शोर से पार्षद विरोध जताते रहे हैं। वही मुद्दा अब नगर निगम के लिए गले की फांस बन गया। नगर निगम अधिकारी व शहरी विधायक आशंका जताते रहे कि नगर निगम ने सीवरेज व पानी की शत प्रतिशत व्यवस्था के लिए सरकार के माध्यम से जिस त्रिवेणी कंपनी को काम दे रखा है, उससे काम वापिस लेने की बजाय तय एग्रीमेंट के अनुसार काम करने के लिए बाध्य करे, लेकिन राजनीतिक कारणों से कंपनी के खिलाफ चले अभियान ने जनप्रतिनिधियों के दाव को उस समय उलटा कर दिया जब त्रिवेणी कंपनी ने नगर निगम व सीवरेज बोर्ड के खिलाफ साल 2022 में आर्बिटेशन में केस दायर कर दिया। इसमें कंपनी ने 125 करोड़ रुपेये का नुकसान होने की बात कर हर्जाना देने का दावा ठोका था। इसमें कंपनी ने मूल राशि पर हुए नुकसान की भऱपाई करने की मांग मांग थी। इसमें आर्बिटेशन ने 37 करोड़ रुपए निर्धारित किया है वही इसमें 18 फीसदी ब्याज जोड़ दिया जाए तो पिछले तीन साल में यह राशि 6 करोड़ 66 लाख रुपए हो जाएगी। इस तरह से सीवरेज बोर्ड को 43.66 करोड़ रुपए एक मुश्त भुगतान करना है।
दायर केस में कंपनी ने नगर निगम व सीवरेज बोर्ड पर आरोप लगाए थे कि उन्होंने त्रिवणी कंपनी को काम के लिए फ्रंट नहीं दिया है। यह बात कंपनी पिछले छह साल से लगातार दोहरा रही थी। जिसके चलते उसका पक्ष कोर्ट मे मजबूत रहा।
क्या है मामला-
बठिंडा शहर को सौ फीसदी सीवरेज-पानी की सुविधा देने के लिए पूर्व अकाली-भाजपा सरकार के समय में सीवरेज बोर्ड की तरफ से 210 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट त्रिवेणी इंजीनिरिंग कंपनी को सौंपा गया था। इसमें 150 करोड़ रुपये की लागत सीवरेज एंड वाटर सप्लाई की पाइप लाइन बिछाने के अलावा नए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट, वाटर स्टोरेज टैंक, पानी की टैंकी और नई राइजिंग मेन डालने का आनी थी। यह काम कंपनी की तरफ से 30 माह में पूरा करना था। शतप्रतिशत सीवरेज-पानी की सुविधा देने का ठेका हासिल करने वाली त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्री लिमिटेड ने नगर निगम बठिंडा की तरफ से पेमेंट जारी नहीं करने के कारण शहर में कई बार काम बंद कर दिया था। त्रिवेणी के पास 10 सालों के लिए शहर के पूरे सीवरेज सिस्टम और वाटर सप्लाई सिस्टम की मेटीनेंस करना का काम भी शामिल था। जिसपर कंपनी को 10 सालों में 60 करोड़ रुपये की आदयगी की जानी थी, लेकिन त्रिवेणी कंपनी ने तय एगीमेंट अनुसार सीवरेज बोर्ड की तरफ से उसे विभिन्न प्रोजेक्ट के लिए फ्रंट (जमीन) उपलब्ध नहीं करवाएं जाने के आरोप लगाते हुए आर्बिटेशन में केस दायर कर दिया था। यह प्रोजेक्ट सीवरेज बोर्ड के मार्फत शुरू किया गया था, लेकिन इस प्रोजेकट को फंड नगर निगम बठिंडा की तरफ से की जा रही थी। वही नगर निगम का खुद का सालिड वेस्ट प्लांट प्रोजेकट भी आर्बिटेशन में चल रहा है। जिसके चलते सालिड वेस्ट प्लांट को चलाने वाली जेआईटीएफ कंपनी ने आर्बिटेशन में निगम के खिलाफ 750 करोड़ रुपये के क्लेम का केस डाल रखा है। ऐसे में त्रिवेणी कंपनी का प्रोजेक्ट आर्बिटेशन में चले जाने से निगम पर दोहारी मार पड़ सकती है।
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