Krishna Janmashtami 2019: दो दिन है जन्माष्टमी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और श्रीकृष्ण जन्म कथा
जन्माष्टमी (Janmashtami) भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कि आठवें दिन मनाई जाती है.
नई दिल्ली: जन्माष्टमी (Janmashtami) हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार नटखट नंदलाल यानी कि श्रीकृष्ण के जन्मदिन को श्रीकृष्ण जयंती (Shri Krishna Jayanti) या जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है. हालांकि इस बार कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) की तारीख को लेकर लोगों में काफी असमंजस में हैं.
लोग उलझन में हैं कि जन्माष्टमी 23 अगस्त या फिर 24 अगस्त को मनाई जाए. दरअसल, मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. अगर अष्टमी तिथि के हिसाब से देखें तो 23 अगस्त को जन्माष्टमी होनी चाहिए, लेकिन अगर रोहिणी नक्षत्र को मानें तो फिर 24 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी होनी चाहिए. आपको बता दें कि कुछ लोगों के लिए अष्टमी तिथि का महत्व सबसे ज्यादा है वहीं कुछ लोग रोहिणी नक्षत्र होने पर ही जन्माष्टमी का पर्व मनाते हैं.
जन्माष्टमी कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कि आठवें दिन मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक कृष्ण जन्माष्टमी हर साल अगस्त या सितंबर महीने में आती है. तिथि के हिसाब से जन्माष्टमी 23 अगस्त को मनाई जाएगी. वहीं, रोहिणी नक्षत्र को प्रधानता देने वाले लोग 24 अगस्त को जन्माष्टमी मना सकते हैं.
जन्माष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
जन्माष्टमी की तिथि: 23 अगस्त और 24 अगस्त.
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 23 अगस्त 2019 को सुबह 08 बजकर 09 मिनट से.
अष्टमी तिथि समाप्त: 24 अगस्त 2019 को सुबह 08 बजकर 32 मिनट तक.
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 24 अगस्त 2019 की सुबह 03 बजकर 48 मिनट से.
रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 25 अगस्त 2019 को सुबह 04 बजकर 17 मिनट तक.
व्रत का पारण: जानकारों के मुताबिक जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने वालों को अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के खत्म होने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए. अगर दोनों का संयोग नहीं हो पा रहा है तो अष्टमी या रोहिणी नक्षत्र उतरने के बाद व्रत का पारण करें.
जन्माष्टमी का महत्व
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्व है. यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था. देश के सभी राज्य अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं. इस दिन क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी अपने आराध्य के जन्म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं. दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं. वहीं, मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं और स्कूलों में श्रीकृष्ण लीला का मंचन होता है.
जन्माष्टमी का व्रत कैसे रखें?
जन्माष्टमी का त्योहार पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दिन लोग दिन भर व्रत रखते हैं और अपने आराध्य श्री कृष्ण का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. सिर्फ बड़े ही नहीं बल्कि घर के बच्चे और बूढ़े भी पूरी श्रद्धा से इस व्रत को रखते हैं. जन्माष्टमी का व्रत कुछ इस तरह रखने का विधान है:
– जो भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए.
– जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोला जाता है.
जन्माष्टमी की पूजा विधि
जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण की पूजा का विधान है. अगर आप अपने घर में कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मना रहे हैं तो इस तरह भगवान की पूजा करें:
– स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
– अब घर के मंदिर में कृष्ण जी या लड्डू गोपाल की मूर्ति को सबसे पहले गंगा जल से स्नान कराएं.
– इसके बाद मूर्ति को दूध, दही, घी, शक्कर, शहद और केसर के घोल से स्नान कराएं.
– अब शुद्ध जल से स्नान कराएं.
– इसके बाद लड्डू गोपाल को सुंदर वस्त्र पहनाएं और उनका श्रृंगार करें.
– रात 12 बजे भोग लगाकर लड्डू गोपाल की पूजन करें और फिर आरती करें.
– अब घर के सभी सदस्यों में प्रसाद का वितरण करें.
– अगर आप व्रत कर रहे हैं तो दूसरे दिन नवमी को व्रत का पारण करें.
श्रीकृष्ण की आरती
आरती युगलकिशोर की कीजै, राधे धन न्यौछावर कीजै।
रवि शशि कोटि बदन की शोभा, ताहि निरिख मेरो मन लोभा।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
गौरश्याम मुख निरखत रीझै, प्रभु को रुप नयन भर पीजै।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
कंचन थार कपूर की बाती . हरी आए निर्मल भई छाती।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
फूलन की सेज फूलन की माला . रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
मोर मुकुट कर मुरली सोहै,नटवर वेष देख मन मोहै।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
ओढे नील पीट पट सारी . कुंजबिहारी गिरिवर धारी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
श्री पुरषोत्तम गिरिवरधारी. आरती करत सकल ब्रजनारी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
नन्द -नंदन ब्रजभान किशोरी . परमानन्द स्वामी अविचल जोरी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
श्रीकृष्ण के जन्म की कथा
त्रेता युग के अंत और द्वापर के प्रारंभ काल में अत्यंत पापी कंस उत्पन्न हुआ. द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था. उसके बेटे कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा. कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था. एक बार कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था. रास्ते में अचानक आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है. इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा.’
आकशवाणी सुनकर कंस अपने बहनोई वसुदेव को जान से मारने के लिए उठ खड़ा हुआ. तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी. बहनोई को मारने से क्या लाभ है?’ कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया. उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया. काल कोठरी में ही देवकी के गर्भ से सात बच्चे हुए लेकिन कंस ने उन्हें पैदा होते ही मार डाला. अब आठवां बच्चा होने वाला था. कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए. उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था.
जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी. जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए. दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े. तब भगवान ने उनसे कहा- ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं. तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंद के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो. इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है. फिर भी तुम चिंता न करो. जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी.’
उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंद के घर पहुंचे. वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए. कारागृह के फाटक पहले की तरह बंद हो गए. तभी कंस ने बंदीगृह जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, लेकिन वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है. वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा. मेरा नाम वैष्णवी है और मैं उसी जगद्गुरु विष्णु की माया हूं.’ इतना कहकर वह अंतर्ध्यान हो गई.
अपने मृत्यु की बात से घबराकर कंस ने पूतना को बुलाकर उसे कृष्ण को मारने का आदेश दिया. कंस की आज्ञा पाकर पूतना ने एक अत्यंत सुंदर स्त्री का रूप धारण किया और नंद बाबा के घर पहुंच गई. उसने मौका देखकर कृष्ण को उठा लिया और अपना दूध पिलाने लगी. स्तनपान करते हुए कृष्ण ने उसके प्राण भी हर लिए. पूतना के मृत्यु की खबर सुनने के बाद कंस और भी चिंतित हो गया. इस बार उसने केशी नामक अश्व दैत्य को कृष्ण को मारने के लिये भेजा. कृष्ण ने उसके ऊपर चढ़कर उसे यमलोक पहुंचा दिया. फिर कंस ने अरिष्ट नामक दैत्य को बैल के रूप में भेजा. कृष्ण अपने बाल रूप में क्रीडा कर रहे थे. खेलते-खेलते ही उन्होंने उस दैत्य रूपी बैल के सीगों को क्षण भर में तोड़ कर उसे मार डाला. फिर दानव कंस ने काल नामक दैत्य को कौवे के रूप में भेजा. वह जैसे ही कृष्ण को मारने के लिए उनके पास पहुंचा. श्रीकृष्ण ने कौवे को पकड़कर उसके गले को दबोचकर मसल दिया और उसके पंखों को अपने हाथों से उखाड़ दिया जिससे काल नामक असुर मारा गया.
एक दिन श्रीकृष्ण यमुना नदी के तट पर खेल रहे थे तभी उनसे गेंद नदी में जा गिरी और वे गेंद लाने के लिए नदी में कूद पड़े. इधर, यशोदा को जैसे ही खबर मिली वह भागती हुई यमुना नदी के तट पर पहुंची और विलाप करने लगी. श्री कृष्ण जब नीचे पहुंचे तो नागराज की पत्नी ने कहा- ‘हे भद्र! यहां पर किस स्थान से और किस प्रयोजन से आए हो? यदि मेरे पति नागराज कालिया जग गए तो वे तुम्हें भक्षण कर जायेंगे.’ तब कृष्ण ने कहा, ‘मैं कालिया नाग का काल हूं और उसे मार कर इस यमुना नदी को पवित्र करने के लिए यहां आया हूं.’ ऐसा सुनते हीं कालिया नाग सोते से उठा और श्रीकृष्ण से युद्ध करने लगा. जब कालिया नाग पूरी तरह मरनासन्न हो गया तभी उसकी पत्नी वहां पर आई और अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिये कृष्ण की स्तुति करने लगी, ‘हे भगवन! मैं आप भुवनेश्वर कृष्ण को नहीं पहचान पाई. हे जनाद! मैं मंत्रों से रहित, क्रियाओं से रहित और भक्ति भाव से रहित हूं. मेरी रक्षा करना. हे देव! हे हरे! प्रसाद रूप में मेरे स्वामी को मुझे दे दो अर्थात् मेरे पति की रक्षा करो.’ तब श्री कृष्ण ने कहा कि तुम अपने पूरे बंधु-बांधवों के साथ इस यमुना नदी को छोड़ कर कहीं और चले जाओ. इसके बाद कालिया नाग ने कृष्ण को प्रणाम कर यमुना नदी को छोड़ कर कहीं और चला गया. कृष्ण भी अपनी गेंद लेकर यमुना नदी से बाहर आ गए.
इधर, कंस को जब कोई उपाय नहीं सूझा तब उसने अक्रूर को बुला कर कहा कि नंदगांव जाकर कृष्ण और बलराम को मथुरा बुला लाओ. मथुरा आने पर कंस के पहलवान चाणुर और मुष्टिक के साथ मल्ल युद्ध की घोषणा की. अखाड़े के द्वार पर हीं कंस ने कुवलय नामक हाथी को रख छोड़ा था, ताकि वो कृष्ण को कुचल सके. लेकिन श्रीकृष्ण ने उस हाथी को भी मार डाला. उसके बाद श्रीकृष्ण ने चाणुर के गले में अपना पैर फंसा कर युद्ध में उसे मार डाला और बलदेव ने मुष्टिक को मार गिराया. इसके बाद कंस के भाई केशी को भी केशव ने मार डाला. बलदेव ने मूसल और हल से और कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से दैत्यों को माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मार डाला. श्री कृष्ण ने कहा- ‘हे दुष्ट कंस! उठो, मैं इसी स्थल पर तुम्हें मारकर इस पृथ्वी को तुम्हारे भार से मुक्त करूंगा.’ यह कहते हुए कृष्ण ने कंस के बालों को पकड़ा और घुमाकर पृथ्वी पर पटक दिया जिससे वह मार गया. कंस के मरने पर देवताओं ने आकाश से कृष्ण और बलदेव पर पुष्प की वर्षा की. फिर कृष्ण ने माता देवकी और वसुदेव को कारागृह से मुक्त कराया और उग्रसेन को मथुरा की गद्दी सौंप दी.
॥ बोलो श्रीकृष्ण भगवान की जय ॥