एक देश में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था लागू किए बगैर इस चुनौती से निपटना मुश्किल है

शिक्षा मंत्रालय ने बुधवार को राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण(एनएएस-2021)की जो रिपोर्ट जारी की उसके निष्कर्ष चौंकाने वाले भले ही न हों,पर चिंतित करने वाले जरूर हैं।

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कपूरथला (राजेश तलवाड़). कोविड-19 महामारी का जनजीवन पर जो असर पड़ा,वह अब महज अनुमान की बात नहीं रह गई।विभिन्न सर्वेक्षणों में इसके दूरगामी विपरीत प्रभावों को समझा जा रहा है। शिक्षा मंत्रालय ने बुधवार को राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एनएएस-2021) की जो रिपोर्ट जारी की उसके निष्कर्ष चौंकाने वाले भले ही न हों,पर चिंतित करने वाले जरूर हैं।
इससे पता चलता है कि लंबे लॉकडाउन के दौरान बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है।खासकर ग्रामीण इलाकों और गरीब बच्चों को तो यह काफी पीछे कर गया है।गरीब बच्चों की स्थिति महामारी के दौरान और बदतर हुई है।एनएसए सर्वेक्षण से पता चला कि करीब 78 फीसदी स्कूली बच्चों के लिए घर से ऑनलाइन पढ़ाई बोझ बन गई थी,जिनमें 24 फीसदी बच्चे ऐसे थे जिनके पास डिजिटल उपकरण ही नहीं थे।कुल मिलाकर स्कूली बच्चों के सीखने का स्तर तेजी से गिरा और जैसे-जैसे बच्चे ऊंची कक्षाओं में गए, सीखने का स्तर (उपलब्धि) कम होता गया।उदाहरण के लिए,सर्वे में राष्ट्रीय स्तर पर मानक स्कोर 500 के मुकाबले भाषा में कक्षा-3 के बच्चों का औसत स्कोर 323 था तो कक्षा 10 के बच्चों का 260। गणित में कक्षा-3 के बच्चों का स्कोर 306 जो कक्षा-5 में 284, कक्षा-8 में 255 और कक्षा-10 में 220 रह गया।लॉकडाउन के दौर में सबने देखा कि ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर ज्यादातर स्कूलों में महज खानापूर्ति की जाती रही।सारा ध्यान इस बात पर केंद्रित था कि बच्चों के साल बर्बाद न हों।साल भले ही बच गए,पर पढ़ाई चौपट हो गई।
सक्षम बच्चे फिर भी अलग से ट्यूशन करके नुकसान की भरपाई में लगे रहे,पर उन बच्चों का क्या हुआ होगा जो हर तरह से वंचित हैं और जिन्हें घर पर दो वक्त का भोजन भी मिलना मुश्किल है।सर्वेक्षण में पता चला कि 48 फीसदी बच्चे पैदल स्कूल जाते हैं।उन्हें स्कूल की ओर से या कोई अन्य परिवहन के साधन उपलब्ध नहीं हैं।
हालांकि 50 फीसदी बच्चों ने कहा कि उन्हें दिक्कत नहीं हुई, पर 80 फीसदी ने ऑनलाइन की बजाय स्कूल में ही बेहतर पढ़ाई की बात स्वीकार की।इस तरह के सर्वेक्षणों का लाभ तभी मिलेगा जब कमियों की भरपाई के लिए मजबूत कदम उठाए जाएंगे।पहले से ही कई तरह के वर्गभेद का सामने कर रहे हमारे समाज में कोरोना ने बढ़ते डिजिटल बंटवारे को एक नई समस्या के रूप में उजागर किया है।हमारे योजनाकारों को भविष्य के लिए मजबूत तैयारी करनी चाहिए।शिक्षा के आधारभूत ढांचे को न सिर्फ बदलना होगा बल्कि कोरोना जैसी किसी आपदा का सामना करने लायक बनाना होगा।एक देश में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था लागू किए बगैर इस चुनौती से निपटना मुश्किल है।

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