भारतीय प्रवासियों का सफर:230 साल पहले चेन्नई से पहला शख्स अमेरिका पहुंचा था, आज उसी के इलाके की बेटी वहां की वाइस प्रेसिडेंट बनेगी

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वॉशिंगटन। धरती के हर कोने में भारत के प्रवासी अपनी धाक जमा रहे हैं। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, 210 देशों में लगभग 1.34 करोड़ NRI हैं। संयुक्त राष्ट्र यह संख्या पौने दो करोड़ बताता है। सीमाओं के परे नाम कमाने वालों में सबसे ताजा जिक्र कमला हैरिस का हो रहा है। वह आज अमेरिका की वाइस प्रेसिडेंट बन जाएंगी। भारतीय प्रवासियों का यह सफर कभी आसान नहीं रहा। इस स्टोरी में हम इसी सफर के बारे में बता रहे हैं।

230 साल पहले शुरू हुआ था यह सफर

मद्रास (अब चेन्नई) का रहने वाला एक शख्स सबसे पहले अमेरिका के तट पर पहुंचा था। साल था 1790। वह उसी इलाके से था, जहां श्यामला गोपालन का परिवार रहता है। श्यामला गोपालन यानी वाइस प्रेसिडेंट इलेक्ट कमला हैरिस की मां। इसके 230 साल बाद अब श्यामला गोपालन की बेटी वाइस प्रेसिडेंट बनने जा रही हैं। यह अमेरिका में भारतीयों के लिए एक लंबा सियासी सफर भी है।

इस दौरान उन्होंने बहिष्कार झेला, उन्हें नागरिकता देकर वापस ले ली गई, भेदभाव बर्दाश्त करना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने खुद के लिए अधिकार हासिल किए। लोकल काउंसिल से सरकार तक में चुने गए। वाइस प्रेसिडेंड चुने जाने से लेकर कई बड़ी कंपनियों के हेड बने। नोबेल पुरस्कार जीते और यूनिवर्सिटीज का नेतृत्व किया।

इस तरह से वे सबसे ज्यादा आमदनी और एजुकेशन हासिल करने वाला समुदाय बन गए। अब भारतीय प्रवासी अमेरिका की आबादी में एक प्रतिशत से थोड़ी ज्यादा हिस्सेदारी रखते हैं। यह समुदाय सबसे तेजी से तरक्की कर रहा है।

पिछली सदी की शुरुआत में पहली लहर अमेरिका पहुंची

अमेरिका जाने वाले भारतीयों की पहली लहर में ज्यादातर सिख शामिल थे। पिछली सदी की शुरुआत में वे कनाडा से होकर अमेरिका पहुंचे थे। वहां वे खेतों और लकड़ी की मिलों पर काम करने गए थे। दूसरे एशियाइयों की तरह उन्हें भी नस्लीय हमले झेलने पड़े। तब 1917 के इमिग्रेशन ऐक्ट के तहत एशियाइयों के आने पर रोक लगा दी गई थी।

  • 18वीं सदी के एक कानून ने उन्हें कुछ सीमाओं के साथ नागरिकता दी थी। 1910 के बाद कोर्ट ने कुछ भारतीयों को नागरिकता देने की इजाजत दी, क्योंकि उन्हें कोकेशियान समुदाय का सदस्य माना जाता था।
  • 1923 के आखिर में भगत सिंह थिंद की नागरिकता छीन ली गई। वह अमेरिकी सेना में रह चुके थे। यह फैसला सुनाया गया कि वे कोकेशियान हो सकते हैं, लेकिन भारतीयों को श्वेत नहीं माना जा सकता है। इस दौरान कई भारतीयों को दी गई नागरिकता रद्द कर दी गई। हालांकि, उन्हें देश में रहने दिया गया।
  • 1935 में भगत सिंह थिंद को दोबारा नागरिकता मिल गई। एक नए कानून ने जातीय पहचान की परवाह किए बिना सभी फॉर्मर सर्विस पर्सनल को नागरिकता दे दी। इस बीच कई भारतीय पढ़ाई, कारोबार और रिलीजस टीचर्स बनकर अमेरिका गए। उनमें से कुछ वहीं के हो गए। इनमें से एक दिलीप सिंह सौंड थे। वे बर्कले में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से PhD करने गए थे।
  • 1946 में एक कानून के जरिए 100 भारतीयों को एनुअल इमिग्रेशन कोटा मिल गया। इससे दिलीप सिंह अमेरिकी नागरिक बन गए। 1956 में उन्हें US हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के लिए चुना गया। ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय-अमेरिकी बने। बाद में भी उन्होंने दो बार चुनाव जीता।
  • 1960 में अमेरिका में सिविल राइट्स मूवमेंट चला। इसने अमेरिकी सिस्टम में शामिल नस्लवाद की ओर ध्यान दिलाया। 1965 में कानून बनाकर इमिग्रेशन मशीनरी को खत्म कर दिया गया। पड़ोसी देशों को छोड़कर सभी देशों के 20,000 इमिग्रेंट्स के लिए एनुअल कोटा कर दिया गया। इससे भारतीय प्रवासियों के लिए रास्ता खुल गया।
  • हायर एजुकेशन और कारोबार से जुड़े लोगों को इसमें तवज्जो मिली। हजारों प्रोफेशनल्स भारत से अमेरिका पहुंचने लगे। पढ़ाई के लिए जाने वालों को ग्रीन कार्ड या इमिग्रेशन वीजा मिला। उनके बाद हजारों रिश्तेदारों को सिस्टम के तहत अमेरिका आने इजाजत मिल गई।

90 के दशक में आई दूसरी लहर

भारतीयों की अगली बड़ी लहर 90 के दशक के आखिर में आई। तब Y2K बग को ठीक करने के लिए कंप्यूटर प्रोफेशनल्स की बहुत जरूरत पड़ी। Y2K एक वायरस था, जिसने नई सदी शुरू होने पर हजारों कंप्यूटर सिस्टम के लिए खतरा पैदा कर दिया था।

इनमें से अधिकतर के लिए H1-B अस्थायी वर्क वीजा रास्ता बना। टेक्नोलॉजी में अपनी साख बनाने के बाद कई और भारतीय इसी वीजा पर अमेरिका की ओर चल दिए। कई हजार लोगों को ग्रीन कार्ड मिल गए। आखिरकार कई एच 1-बी वीजाधारकों की जिंदगी अधर में लटक गई, क्योंकि इमिग्रेशन कोटा पर दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया।

कमाई और पढ़ाई में अमेरिकियों से दोगुना आगे

इस समय लगभग 31.80 लाख भारतीय मूल के लोग अमेरिकी नागरिक हैं। 32% अमेरिकियों की तुलना में 72 प्रतिशत भारतीय प्रवासियों के पास ग्रैजुएशन या इससे बड़ी डिग्री है। भारतीयों की एवरेज एनुअल इनकम 1,00,000 डॉलर यानी करीब 73 लाख रुपए है। यह अमेरिकी परिवारों के मुकाबले दोगुनी है।

तीन सेक्टरों में सिरमौर

तीन ऐसे सेक्टर हैं, जहां भारतीय-अमेरिकियों का सबसे ज्यादा असर है। इनमें मेडिकल, एजुकेशन और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री शामिल है।

मेडिकल : बतौर डॉक्टर, नर्स और एक्सपर्ट कोरोना से लड़ने में वे सबसे आगे हैं। सर्जन जनरल-नॉमिनी विवेक मूर्ति सीधे तौर पर इससे निपटने के लिए पॉलिसी, एनालिसिस और सॉल्यूशन डेवलप करने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

80,000 से ज्यादा भारतीय मूल के डॉक्टर अमेरिका में कुल डॉक्टरों का लगभग 8 प्रतिशत हैं। 40,000 भारतीय डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे हैं। अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडियन ओरिजिन (AAPI) के अध्यक्ष सुरेश रेड्डी के अनुसार देश में हर छठे मरीज में से एक का इलाज भारतीय डॉक्टर कर रहा है।

एजुकेशन : एक और फील्ड एकेडमिक्स की है। हायर एजुकेशन के लगभग हर इंस्टीट्यूट में भारतीय बतौर फैकल्टी मौजूद हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बिजनेस स्कूल में श्रीकांत दातार और नितिन नोहरिया डीन के तौर पर कामयाब रहे हैं। माधव राजन शिकागो यूनिवर्सिटी के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में डीन हैं। इवी लीग हार्वर्ड कॉलेज के हेड राकेश खुराना हैं।

अमेरिकी यूनिवर्सिटी में तीन भारतीय शिक्षाविदों ने नोबेल पुरस्कार जीता है। इनमें हरगोविंद खुराना ने मेडिकल में, फिजिक्स के लिए सुब्रह्मण्यन चंद्रशेखर और इकोनॉमिक्स में अभिजीत बनर्जी को यह पुरस्कार मिला है। मंजुल भार्गव और अक्षय वेंकटेश ने गणित के लिए फील्ड्स मेडल जीता है।

हॉस्पिटैलिटी : हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में भी भारतीयों का दबदबा है। अमेरिका के हर दो में से एक होटल का मालिक एशियन अमेरिकन होटल ओनर्स असोसिएशन का मेंबर है। यह संस्था इस सेक्टर में भारतीयों को रिप्रजेंट करती है। इसमें 19,500 से ज्यादा मेंबर्स हैं।

टेक्नोलॉजी वर्ल्ड में सबसे आगे

  • भारतीय-अमेरिकी सिलिकॉन वैली की ड्राइविंग फोर्स रहे हैं। यह जगह दुनिया का टेक्नोलॉजी इंजन है। तीन सबसे बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों को भारतीय-अमेरिकी लीड कर रहे हैं।
  • गूगल के बॉस सुंदर पिचाई, माइक्रोसॉफ्ट में सत्य नडेला और IBM में अरविंद कृष्ण हेड हैं।
  • टेक्नोलॉजी और दूसरे सेक्टर में भी भारतीय इंटरप्रेन्योर्स काम कर रहे हैं। टेक सेक्टर में विनोद खोसला बड़ा नाम हैं। वह सनमाइक्रो सिस्टम के फाउंडर हैं।
  • नेशनल फाउंडेशन फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक बिलियन डॉलर वैल्यूएशन वाली आधी से ज्यादा यूनिकॉर्न कंपनियों के फाउंडर मेंबर में भारतीय शामिल हैं।
  • एक अनुमान है कि सिलिकॉन वैली में 2,00,000 से ज्यादा भारतीय काम करते हैं।
  • सिलिकॉन वैली के टेक्नोलॉजी इनोवेशन का सेंटर बनने से पहले मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर अमर बोस ने हाई एंड ऑडियो सिस्टम डेवलप किया। 1960 के दशक में उन्होंने कंपनी बना ली थी।
  • हाई प्रोफाइल CEO में वेफेयर के नीरज शाह, पेप्सिको की इंदिरा नूई, मास्टरकार्ड के अजय बंगा, यूएस एयरवेज के राकेश गंगावल शामिल हैं।

पढ़ने-लिखने में भी धाक जमाई

भारतीय बच्चों का साइंस और स्पेलिंग बी कॉम्पटीशंस में लगभग दस साल तक दबदबा रहा है। पांच भारतीय-अमेरिकियों ने पुलित्जर पुरस्कार जीते हैं। इनमें गोबिंद बिहारी लाल और गीता आनंद को जर्नलिज्म के लिए, झुम्पा लाहिड़ी को फिक्शन के लिए, सिद्धार्थ मुखर्जी को नॉन फिक्शन और विजय शेषाद्रि को कविताओं के लिए पुरस्कार मिला है।

भारतीयों ने लॉ फील्ड में भी अपनी पहचान बनाई है। श्री श्रीनिवासन फेडरल कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर द डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया के चीफ जज हैं। यह सुप्रीम कोर्ट के बाद सबसे अहम कोर्ट है। उन्हें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जज का भी दावेदार माना जाता है।

सबसे ज्यादा दखल राजनीति में

  • वनिता गुप्ता को प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन ने एसोसिएट अटॉर्नी जनरल नामित किया है। बराक ओबामा के कार्यकाल में नील कात्याल ने बतौर एक्टिंग सॉलिसिटर जनरल काम किया।
  • निक्की हेली अमेरिकी कैबिनेट की मेंबर बनने वाली पहली भारतीय बनीं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उन्हें कैबिनेट रैंक के साथ संयुक्त राष्ट्र में परमानेंट रिप्रजेंटेटिव बनाया।
  • ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन में प्रभावशाली पदों पर रहे भारतीयों में सीमा वर्मा, अजीत पई, मनीषा सिंह, और राज शाह शामिल हैं।
  • अब बाइडेन और हैरिस ने कम से कम 21 भारतीय-अमेरिकियों को अहम पदों पर रखा है। इनमें नीरा टंडन, विनय रेड्डी, वेदांत पटेल, नेहा गुप्ता, रीमा शाह खास हैं।
  • पहले राष्ट्रपति रहे जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बिल क्लिंटन ने भी अपने एडमिनिस्ट्रेशन में अहम पदों पर भारतीयों को जगह दी गई।
  • दिलीप सिंह सौंड के चुनाव के बाद 2004 तक कोई भी हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव नहीं चुना गया। 2004 में बॉबी जिंदल इसके लिए चुने गए।
  • उनसे पहले कनक दत्ता ने 80 के दशक में न्यू जर्सी स्टेट असेंबली के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी के नामांकन के लिए अभियान शुरू किया था। इसमें वे नाकाम रही थीं।
  • कुमार बर्वे 1991 में मैरीलैंड और उपेंद्र चिवकुला 2001 में न्यू जर्सी स्टेट असेंबली के लिए चुने गए थे।
  • दो भारतीय बॉबी जिंदल लुइसियाना और निक्की हेली दक्षिण कैरोलिना में गवर्नर चुने गए।
  • तीन डेमोक्रेट अमी बेरा 2010 में, राजा कृष्णमूर्ति, प्रमिला जयपाल और रो खन्ना 2017 में हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव के लिए चुने गए।
  • हैरिस को 2017 में सीनेट के लिए चुना गया था। अब वह वाइस प्रेसिडेंट की जिम्मेदारी संभालेंगी।

संजॉय चक्रवर्ती, दिवेश कपूर और निर्विकार सिंह ने अपनी पुस्तक द अदर वन परसेंट में लिखा है कि सिलिकॉन वैली की कहानियां और गुजराती मोटल मालिकों को सब अच्छी तरह से जानते हैं। इनके अलावा भी भारतीय गैस स्टेशन के मालिक, टैक्सी ड्राइवर और बहुत कुछ हैं।

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