US इलेक्शन आज : पॉपुलर वोट और इलेक्टोरल कॉलेज समेत अमेरिकी चुनाव से जुड़ी 5 बातें, जो आपको समझनी चाहिए

यह राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनने का पुराना तरीका है। इसे आयोवा कॉकस भी जाता है। अब सिर्फ 6 राज्यों में इसका इस्तेमाल होता है। कॉकस को बहुत आसान भाषा में समझें तो पहली चीज तो यह है कि इसका आयोजन सीधे पार्टियां करती हैं। राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होती। पार्टियां ही नियम और मतदाता तय करती हैं। यहां डेलिगेट चुनने के लिए बैलट का इस्तेमाल नहीं होता। पार्टी मेंबर्स कई उम्मीदवारों में से एक को हाथ उठाकर चुनते हैं।

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अमेरिका में 3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव है। भारतीय समयानुसार मंगलवार रात फाइनल वोटिंग शुरू होगी। रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेट पार्टी के जो बाइडेन मैदान में हैं। ट्रम्प जीतेंगे या बाइडेन बाजी मारेंगे? यह वक्त बताएगा। लेकिन, व्हाइट हाउस तक पहुंचने की इस यात्रा में कुछ अहम पड़ाव आते हैं। यहां हम आपको इन अहम पांच पड़ावों के बारे में बता रहे हैं।

प्राइमरी
इसे आप अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का पहला पायदान कह सकते हैं। संविधान इस पर मौन है। लिहाजा, पार्टियां और राज्य सरकारें इसे आयोजित करती हैं। एक तरह से देखें तो यह प्रक्रिया चुनाव से दो साल पहले ही शुरू हो जाती है। नेता अपनी पार्टी की तरफ से नॉमिनेशन करते हैं। फिर वहां की जनता इस पर मुहर लगाती है। कुछ राज्यों में सीक्रेट बैलट से कैंडिडेट तय होता है तो कुछ में ओपन बैलट से। फर्क यह है कि सीक्रेट बैलट में सिर्फ पार्टी मेंबर वोटिंग करते हैं और ओपन बैलट में जनता भी सीधे वोट डाल सकती है। दरअसल, ये लोग अपना एक प्रतिनिधि (डेलिगेट्स) चुनते हैं। ये डेलिगेट पार्टी कन्वेंशन (सम्मेलन) में प्रेसिडेंट कैंडिडेट नॉमिनेट करते हैं। अब 44 राज्यों में प्राइमरी इलेक्शन होते हैं। 2016 के बाद 10 राज्य कॉकस से प्राइमरीज पर शिफ्ट हुए।

कॉकस
यह राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनने का पुराना तरीका है। इसे आयोवा कॉकस भी जाता है। अब सिर्फ 6 राज्यों में इसका इस्तेमाल होता है। कॉकस को बहुत आसान भाषा में समझें तो पहली चीज तो यह है कि इसका आयोजन सीधे पार्टियां करती हैं। राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होती। पार्टियां ही नियम और मतदाता तय करती हैं। यहां डेलिगेट चुनने के लिए बैलट का इस्तेमाल नहीं होता। पार्टी मेंबर्स कई उम्मीदवारों में से एक को हाथ उठाकर चुनते हैं।

कन्वेंशन
आसान शब्दों में आप इसे पार्टी सम्मेलन कह सकते हैं। इसमें पार्टी प्रतिनिधि (डेलिगेट्स) हिस्सा लेते हैं। यानी वो लोग जो प्राइमरीज या कॉकस से चुनकर आए हैं। वे यहां मतदान के जरिए उस कैंडिडेट को चुनते हैं जो राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनेगा। राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार पार्टी सांसदों से सलाह करके उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करता है। हर राज्य से चुने गए डेलिगेट्स की संख्या अलग होती है। यह आबादी पर निर्भर करती है। कैलिफोर्निया में सबसे ज्यादा 415 डेलिगेट्स हैं।

पॉपुलर वोट
अमेरिका में मतदाता पहले इलेक्टर्स चुनते हैं। इनसे इलेक्टोरल कॉलेज बनता है। ये इलेक्टोरल कॉलेज राष्ट्रपति चुनता है। सवाल ये कि फिर पॉपुलर वोट क्या होता है? इसे सीधे तौर पर समझिए। दरअसल, जनता यानी मतदाता अपना प्रतिनिधि इलेक्टर चुनते हैं। फिर ये इलेक्टर राष्ट्रपति चुनता है। अब ये जरूरी नहीं कि जनता जिसे इलेक्टर चुन रही है, वो उसके पसंद के कैंडिडेट यानी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को ही वोट दे। मसलन, 2016 में ट्रम्प को 62,984,825 (46.4% वोट्स) और हिलेरी को 65,853,516 (48.5% वोट्स) मिले। जाहिर है, हिलेरी जनता की पहली पसंद थीं। लेकिन, इलेक्टोरल वोट ने ट्रम्प को जिता दिया।

इलेक्टोरल कॉलेज
इस पर काफी बहस होती है। कुछ लोग अब इसे गलत भी ठहराने लगे हैं। पॉपुलर वोट के जरिए 50 राज्यों में 538 इलेक्टर्स चुने जाते हैं। इनसे इलेक्टोरल कॉलेज बनता है। राष्ट्रपति बनने के लिए 270 इलेक्टरल कॉलेज वोट चाहिए। जिस राज्य की जितनी ज्यादा आबादी, उसके उतने ज्यादा इलेक्टोरल वोट। हर राज्य से दोनों सदनों के लिए जितने सांसद चुने जाते हैं, उतने ही उसके इलेक्टर्स होंगे। कैलिफोर्निया में 55 तो व्योमिंग में सिर्फ 3 इलेक्टर्स हैं। 2016 में ट्रम्प को 306 इलेक्टर्स का समर्थन मिला। हिलेरी के लिए आंकड़ा 232 पर सिमट गया। वे चुनाव हार गईं।

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