US में नई सरकार:मंत्री बनने के लिए चुनाव जीतना जरूरी नहीं; एक्सपर्ट बोले- भारत-अमेरिका के लिए चीन ही चुनौती

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प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति बन जाएंगे। अमेरिका में चुनाव और नई सरकार के गठन के बीच करीब 11 हफ्ते का अंतराल यानी गैप होता है। प्रेसिडेंट इलेक्ट की ट्रांजिशन टीम इस दौरान अपने हिसाब से एडमिनिस्ट्रेटिव स्ट्रक्चर तैयार करती है। मंत्रियों को यहां सेक्रेटरी कहा जाता है। 15 मुख्य विभाग है। इनके नाम भावी राष्ट्रपति तय करता है। इस बारे में विस्तार से चर्चा आगे करेंगे।

बाइडेन को लेकर भारत में एक सवाल हर कोई जानना चाहता है। और वो ये कि भारत को लेकर उनकी नीति क्या और कैसी होगी? वे ट्रम्प के रास्ते पर ही चलेंगे या कुछ बदलाव करेंगे। इस मुद्दे को हमारे एक्सपर्ट्स से समझेंगे। तो आइए अमेरिका के नई सरकार से जुड़े कुछ अहम मुद्दों पर जानकारी हासिल करते हैं।

 

मंत्रियों के नाम कैसे तय होते हैं?
अमेरिका में कैबिनेट का गठन भारत से थोड़ा अलग है। राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के अलावा 15 मंत्री होते हैं। ये सभी कैबिनेट मंत्री होते हैं। बाद में ये दूसरे अधिकारियों में काम का बंटवारा करते हैं यानी अपनी टीम बनाते हैं। एक रोचक तथ्य- अमेरिका में मिनिस्टर यानी सेक्रेटरी बनने के लिए जरूरी नहीं है कि वो शख्स सांसद हो या सियासत से जुड़ा हो। हो सकता है कोई किसी सब्जेक्ट का एक्सपर्ट हो। कई बार तो विरोधी दल के नेताओं को भी मंत्री बनाया गया है।

आसान भाषा में कहें, तो राष्ट्रपति उस व्यक्ति को मंत्री बना सकता है जो उसकी नजर में योग्य हो। 15 सेक्रेटरीज के अलावा कुछ और लोगों को कैबिनेट रैंक मिलती है। इनमें व्हाइट हाउस का चीफ ऑफ स्टाफ और यूएन में स्थाई राजदूत शामिल हैं। ऐसे 7 या 8 लोग हो सकते हैं।

सिर्फ मंत्रियों का नाम तय करना काफी नहीं
whitehouse.gov के मुताबिक, प्रेसिडेंट इलेक्ट कैबिनेट मेंबर्स के नाम तय करते हैं। शपथ लेने के बाद सीनेट इन नामों पर मुहर लगाती है। कुछ नामों को लेकर आपत्ति भी आ सकती है। सीनेट की कमेटियां संबंधित मंत्री के बारे में जानकारी जुटा सकती हैं। इसकी वजह यह है कि जो व्यक्ति मंत्री बनने जा रहा है, उसका रिकॉर्ड बेदाग रहे।

भारत की नजर तीन मंत्रियों पर ज्यादा

  • विदेश मंत्री: 58 साल के एंटनी ब्लिंकेन को बाइडेन ने विदेश मंत्री (Secretary of State) बनाया है। सुपरपावर अमेरिका में विदेश मंत्री बाहरी दुनिया के लिए सबसे अहम होता है। भारत के लिए भी ऐसा ही है। ब्लिंकन और बाइडेन का रिश्ता काफी पुराना और दोस्ताना है। ओबामा के दौर में जब बाइडेन उप राष्ट्रपति थे, तब ब्लिंकेन विदेश राज्य मंत्री और उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे। भारत के प्रति उनका रवैया नर्म रहा है।
  • रक्षा मंत्री : 67 साल के लॉयड जे ऑस्टिन नए रक्षा मंत्री (Secretary of Defense) होंगे। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, फोर-स्टार पूर्व जनरल ऑस्टिन अमेरिका के पहले अश्वेत रक्षा मंत्री होंगे। वे बराक ओबामा के साथ काम कर चुके हैं और इराक-अफगानिस्तान में मैदानी जंग के अनुभवी है। भारत और अमेरिकी सेनाओं के संयुक्त अभ्यास में भी हिस्सा ले चुके हैं। बहुत कम बोलने वाले ऑस्टिन को सख्त मिलिट्री अफसर माना जाता है।
  • जेक सुलिवान: 44 साल के सुलिवान अमेरिका के सबसे युवा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होंगे। वे बाइडेन के बेहद करीबी और पसंदीदा व्यक्ति माने जाते हैं। ओबामा और हिलेरी क्लिंटन के साथ काम कर चुके हैं। तेज तर्रार और मीडिया से दूरी बनाए रखने वाले एडमिनिस्ट्रेटर हैं। सुरक्षा मामलों पर बाइडेन उनसे ही सलाह लेते रहे हैं। 2012 में ईरान-अमेरिका न्यूक्लियर डील में उनका अहम रोल था। बाद में इस डील को ट्रम्प ने रद्द कर दिया था।

भारत से कैसे रिश्ते होंगे

विदेश और रक्षा मामलों के एक्सपर्ट हर्ष वी पंत बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन और भारत के रिश्तों पर विस्तार से बताते हैं। इन्हें तीन पॉइंट्स में समझते हैं..

1. सरकारें बदलने से अब विदेश नीति ज्यादा नहीं बदलती
पंत के मुताबिक, बाइडेन के आने से भारत और अमेरिका के रिश्तों में ज्यादा बदलाव नहीं आएगा। ओबामा, बुश और ट्रम्प। तीनों के दौर में भारत-अमेरिका रिश्ते मजबूत होते गए। ऐसा कोई कारण नहीं दिखता, जिससे लगे कि बाइडेन की भारत को लेकर नीति में कोई बड़ा बदलाव आएगा। आज के दौर में सरकारें बदलने से विदेश नीति नहीं बदलती। अटलजी और मनमोहन के दौर में दोनों देशों के रिश्तों में सुधार शुरू हुआ। यह अब भी जारी है। बाइडेन के दौर में भी यह कन्टीन्यूटी रहेगी। रिश्ते बेहतर ही होंगे।

2. कुछ टकराव भी संभव
पंत कहते हैं कि अमेरिका में इस वक्त मिडल क्लास परेशान है। भारत में मेक इन इंडिया पर फोकस काफी जोर दिया जा रहा है। इसलिए ट्रेड को लेकर कुछ शंकाएं हो सकती हैं। ये कई साल से चली आ रही हैं, नया कुछ नहीं है। डेमोक्रेट्स का एक हिस्सा मानवाधिकार पर ज्यादा फोकस करता है। CAA-NRC के मुद्दे पर हमने ये देखा भी है। रूस से हम S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीद रहे हैं। इसको लेकर अमेरिका को कुछ ऐतराज हैं। यानी कुछ मामले तो चलते रहेंगे।

3. चीन-पाकिस्तान बनाम भारत
पंत के मुताबिक, भारत और अमेरिका के लिए चीन साझा चुनौती है। इसलिए बाइडेन को भारत को साथ लेकर चलना ही होगा, क्योंकि हर लिहाज से भारत उभरती हुई शक्ति है। यहां याद रखिए कि कैम्पेन के दौरान बाइडेन साफ कर चुके हैं कि वे चीन को लेकर बहुत सख्त रवैया अपनाएंगे। जहां तक पाकिस्तान की बात है, तो बाइडेन जानते हैं और बोल भी चुके हैं कि वो डबल गेम खेल रहा है। अगर वो चीन की तरफ इसी तरह झुकता रहा, तो उसकी भी मुश्किलें बढ़ेंगी। हां, ये मुमकिन है कि अफगानिस्तान से निकलने की कोशिश में वे पाकिस्तान को कुछ संदेह का लाभ दे दें। लेकिन, चीन के मुद्दे पर वे समझौता कतई नहीं करेंगे।

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