अमेरिकी संसद में 206 साल बाद हिंसा:बाइडेन की जीत पर आखिरकार मुहर लगी, हिंसा भड़काने का ट्रम्प का आखिरी दांव भी नाकाम

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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद जिस बात का डर था, वही हुआ। हिंसा की आशंका थी और ये हुई भी। 3 नवंबर को ही यह तय हो गया था कि जो बाइडेन दुनिया के सबसे ताकतवर देश के अगले राष्ट्रपति होंगे। जिद्दी डोनाल्ड ट्रम्प फिर भी हार मानने को तैयार नहीं थे। चुनाव में धांधली के आरोप लगाकर वे जनता के फैसले को नकारते रहे। हिंसा की धमकी देते रहे।

वोटिंग के 64 दिन बाद जब अमेरिकी संसद बाइडेन की जीत पर मुहर लगाने जुटी तो अमेरिकी लोकतंत्र शर्मसार हो गया। ट्रम्प के समर्थक दंगाइयों में तब्दील हो गए। यूएस कैपिटल में तोड़फोड़ और हिंसा की। यूएस कैपिटल वही बिल्डिंग है, जहां अमेरिकी संसद के दोनों सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट हैं। कुछ वक्त तक संसद की कार्यवाही रोक दी गई।

करीब 12 घंटे बाद दोनों सदनों ने जो बाइडेन की जीत पर आखिरकार मुहर लगा दी। एरिजोना और पेन्सिलवेनिया में बाइडेन की जीत के खिलाफ ट्रम्प की आपत्तियां खारिज कर दी गईं। इसके बाद ट्रम्प ने भी टकराव के तेवर छोड़ दिए। उन्होंने वादा किया कि 20 जनवरी को ‘व्यवस्थित तरीके से’ सत्ता बाइडेन को सौंप दी जाएगी।

206 साल बाद अमेरिकी संसद में ऐसी हिंसा हुई
यूएस कैपिटल हिस्टोरिकल सोसाइटी के डायरेक्टर सैम्युअल हॉलिडे ने सीएनएन को बताया कि 24 अगस्त 1814 में ब्रिटेन ने अमेरिका पर हमला कर दिया था। अमेरिकी सेना की हार के बाद ब्रिटिश सैनिकों ने यूएस कैपिटल में आग लगा दी थी। तब से अब तक पिछले 206 साल में अमेरिकी संसद पर ऐसा हमला नहीं हुआ था।

सवाल-जवाब से समझिए कि बुधवार को अमेरिका में क्या हुआ और क्यों हुआ…

आखिर विवाद क्या है?
3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव हुआ। बाइडेन को 306 और ट्रम्प को 232 वोट मिले। सबकुछ साफ था। इसके बावजूद ट्रम्प ने हार नहीं कबूली। उनका आरोप है कि वोटिंग और काउंटिंग में बड़े पैमाने पर धांधली हुई। ट्रम्प ने कई राज्यों में केस दर्ज कराए। ज्यादातर में ट्रम्प समर्थकों की अपील खारिज हो गई। दो मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने भी याचिकाएं खारिज कर दीं। ट्रम्प इशारों में हिंसा की धमकी देते रहे। बुधवार को हुई हिंसा ने साबित कर दिया कि सुरक्षा एजेंसियां ट्रम्प समर्थकों के प्लान को समझने में नाकाम रहीं।

हिंसा आज ही क्यों हुई?
20 जनवरी को नए राष्ट्रपति जो बाइडेन को शपथ लेनी है। इससे पहले उनकी जीत पर आखिरी मुहर लगनी थी। इसी के लिए अमेरिकी संसद का सत्र चल रहा था। बुधवार को यहां इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों की गिनती होनी थी। ट्रम्प के सांसदों ने कुछ जगहों पर आए नतीजों पर ऐतराज जताया था। इस पर चर्चा होनी थी। इस चर्चा के बाद बहुमत के साथ बाइडेन की जीत पर मुहर लगी थी। इस वजह से ट्रम्प समर्थकों ने हिंसा के लिए बुधवार का दिन चुना।

बुधवार को अमेरिकी संसद में जब ट्रम्प समर्थकों ने हंगामा और तोड़फोड़ शुरू की तो पुलिस ने मोर्चा संभाला। संसद में पुलिसकर्मी रिवॉल्वर ताने नजर आए।
बुधवार को अमेरिकी संसद में जब ट्रम्प समर्थकों ने हंगामा और तोड़फोड़ शुरू की तो पुलिस ने मोर्चा संभाला। संसद में पुलिसकर्मी रिवॉल्वर ताने नजर आए।

हिंसा कैसे भड़की?
यूएस कैपिटल के अंदर सांसद जुटे थे और बाहर ट्रम्प समर्थकों की भीड़ बढ़ रही थी। वॉशिंगटन के वक्त के मुताबिक, बुधवार दोपहर 1 बजे के बाद यूएस कैपिटल के बाहर लगे बैरिकैड्स को ट्रम्प समर्थकों ने तोड़ दिया। नेशनल गार्ड्स और पुलिस इन्हें समझा पाती, इसके पहले ही कुछ लोग अंदर घुस गए। दोपहर डेढ़ बजे कैपिटल के बाहरी हिस्से में बड़े पैमाने पर हिंसा होने लगी। इस दौरान गोली भी चली।

हिंसा कब थमी?
दोपहर 3 बजे तक ट्रम्प समर्थक संसद के अंदर घुस चुके थे। स्पेशल फोर्स के जवान उन पर बंदूक ताने नजर आ रहे थे। समर्थकों ने संसद के अंदर तोड़फोड़ की। कुछ दंगाई स्पीकर हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटि्व्स (HOR) की स्पीकर नैंसी पेलोसी की कुर्सी पर जा बैठे। खिड़कियों के शीशे तोड़ दिए। आर्ट वर्क को लूटकर ले गए। दोपहर डेढ़ बजे से शुरू हुई हिंसा 4 घंटे बाद शाम 5:30 बजे थमी जब स्पेशल फोर्स, मिलिट्री और पुलिस ने यूएस कैपिटल के दोनों फ्लोर से दंगाइयों को खदेड़ दिया।

संसद भवन के एक ऑफिस में ट्रम्प का समर्थक रिपब्लिकन पार्टी का झंडा लेकर घुसा और इस तरह एक कुर्सी पर बैठ गया।
संसद भवन के एक ऑफिस में ट्रम्प का समर्थक रिपब्लिकन पार्टी का झंडा लेकर घुसा और इस तरह एक कुर्सी पर बैठ गया।

कितने लोगों की मौत हुई?
अमेरिकी संसद के बाहर पुलिस की गोली लगने से एक महिला की मौत हुई। यह महिला अमेरिकी एयरफोर्स के रिटायर्ड सीनियर अफसर की पत्नी थी। एक और महिला और दो पुरुष गंभीर रूप से घायल थे। इन्होंने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।

ट्रम्प की आपत्तियों का क्या हुआ?
एरिजोना और पेन्सिलवेनिया में बाइडेन की जीत के खिलाफ आपत्तियां दर्ज कराई गईं, लेकिन यूएस कांग्रेस ने इन्हें खारिज कर दिया। एरिजोना को लेकर मामला ज्यादा फंसा। पहले सीनेट में यहां के नतीजों पर आपत्ति दर्ज कराई गई। जब यह खारिज हो गई तो मामला हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के पास पहुंचा। आखिरकार यहां भी ऑब्जेक्शन नकार दिया गया। सीनेट में तो ट्रम्प की पार्टी को मुंह की खानी पड़ी। प्रस्ताव के पक्ष में 6 और विरोध में 93 वोट पड़े। पेन्सिलवेनिया को लेकर रिपब्लिकन सांसद जो हैले ने पहले ही साफ कर दिया था कि वे आपत्ति दर्ज कराएंगे। उन्होंने ऐसा किया भी। लेकिन, उन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिला।

अपनों ने ट्रम्प से कैसे किनारा किया?
बुधवार को अमेरिकी संसद का जो सेशन बुलाया गया, उसकी अध्यक्षता उप राष्ट्रपति माइक पेंस ने की। पेंस रिपब्लिकन पार्टी के हैं। वे ट्रम्प समर्थकों की हरकतों से बेहद नाराज दिखे। कहा, ‘यह अमेरिकी इतिहास का सबसे काला दिन है। हिंसा से लोकतंत्र को दबाया या हराया नहीं जा सकता।’ ट्रम्प की ही रिपब्लिकन पार्टी की दो महिला सांसदों कैली लोफ्लेर और कैथी मैक्मॉरिस रोजर्स समेत 6 सांसदों ने उनका विरोध कर दिया।

अबकी बार ट्रम्प सरकार का नारा देने वाले मोदी क्या बोले?
सितंबर 2019 में प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका में गए थे। वहां उन्होंने ह्यूस्टन में ट्रम्प के साथ ‘हाउडी मोदी’ इवेंट में हिस्सा लिया था। भाषण के दौरान उन्होंने कहा था, ‘अबकी बार, ट्रम्प सरकार’। बुधवार को अमेरिका में भड़की हिंसा के बाद मोदी ने चिंता जाहिर की।

उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा- वॉशिंगटन डीसी में हुई हिंसा और दंगा-फसाद से चिंतित हूं। सत्ता हस्तांतरण शांतिपूर्ण और तय प्रक्रिया के मुताबिक होना चाहिए। लोकतांत्रिक तरीकों पर गैरकानूनी प्रदर्शनों का असर नहीं पड़ना चाहिए।

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