अफगानिस्तान में US एयरफोर्स की दिलेरी:महिलाओं की मिन्नतों के बाद 183 बच्चों को साथ ले गए अमेरिकी सैनिक, 640 की क्षमता वाले एयरक्राफ्ट में 823 को बैठाया
काबुल. अफगानिस्तान से अचानक सैनिक वापस बुलाने पर एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की हर तरफ आलोचना हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान में इंसानियत के लिए नियम-कानून तोड़ने वाले अमेरिकी एयरफोर्स के जवानों की दुनियाभर में तारीफ हो रही है।
US एयरफोर्स के इन सैनिकों ने CNN को बताया कि प्लेन की कैपेसिटी 640 लोगों को रेस्क्यू करने की थी, लेकिन वहां लोगों की हालत देखकर उन्होंने 823 लोगों को साथ ले जाने का फैसला किया। लेफ्टिनेंट कर्नल एरिक कुट ने बताया कि उस समय उन्हें सिर्फ लोगों की जान बचाने की परवाह थी। महिलाएं बच्चों को साथ ले जाने की मिन्नतें कर रही थीं, इसलिए उनहें कुछ और नहीं सूझा।
एरिक ने कहा कि उनकी इच्छा कागजात चेक करने से ज्यादा अफगानियों की जान बचाना थी, इसलिए उन्होंने फौरन क्षमता से ज्यादा लोगों को एयरपोर्ट रेस्क्यू करने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि जब आपके आसपास महिलाएं और बच्चों का जीवन दांव पर लगा हो तो आप यह नहीं देखते कि नियम क्या हैं और आपकी क्षमता कितनी है।
एयरक्राफ्ट उड़ने से पहले तक चिंतित थे शरणार्थी
उन्होंने बताया कि एयरक्राफ्ट के उड़ने से पहले तक शरणार्थी बेहद चिंतित थे, लेकिन जैसे ही एयरक्राफ्ट उड़ा वे खुश हो गए। हम भी उन्हें अपने साथ ले जाकर खुश थे। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वे अफगानिस्तान छोड़ चुके हैं।
C-17 ग्लोबमास्टर से चलाया था रेस्क्यू ऑपरेशन
अमेरिकी एयरफोर्स ने काबुल से पिछले रविवार को 823 लोगों को C-17 ग्लोबमास्टर एयरक्राफ्ट के जरिए रेस्क्यू किया था। जितने लोगों को रेस्क्यू किया जाना था, ये उससे 183 ज्यादा थे। पहले रिपोर्ट सामने आई थी कि अफगानिस्तान से एयरक्राफ्ट में 640 लोगों को रेस्क्यू किया गया है, लेकिन बाद में जानकारी मिली कि 823 लोगों को अफगानिस्तान से बाहर निकाला गया है। 183 बच्चों की उस समय गिनती नहीं की गई थी, जिन्हें अमेरिकी एयरफोर्स के जवान साथ ले आए थे।
पहली बार एक साथ इतने लोगों का रेस्क्यू
ऐसा पहली बार हुआ, जब C-17 ग्लोबमास्टर के जरिए इतने लोगों को रेस्क्यू किया गया। इस रेस्क्यू ऑपरेशन से अमेरिकी सैनिकों ने उन देशों के सामने मिसाल पेश की, जो C-17 ग्लोबमास्टर से 100-200 लोगों को ही रेस्क्यू कर रहे थे। हजारों लोग अब भी इस इंतजार में हैं कि उन्हें भी किसी देश में शरण मिल सके, लेकिन बिना वीजा और पासपोर्ट के कोई भी देश इन्हें ले जाने को तैयार नहीं है।