वाशिंगटन. अफगानिस्तान के मूल निवासी कुछ सिख अमेरिका में रहते हैं। इन्होंने भारत सरकार से गुहार लगाई है कि अफगानिस्तान में रहने वाले सिखों को भारत में बसाया जाए। हाल ही में भारत ने नागरिकता कानून में संशोधन को मंजूरी दी थी। इसके मुताबिक, पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को सशर्त नागरिकता दी जा सकती है।
हिंसा से पीड़ित सिख परिवार
अफगानिस्तान के तीन जिलों काबुल, जलालाबाद और गाजी में रहने वाले सिख अल्पसंख्यक अपनी जान बचाने के लिए भारत में शरण चाहते हैं। ऐसे करीब 650 परिवार हैं। इनके खिलाफ आए दिन हिंसा होती है। पिछले दिनों काबुल के एक गुरुद्वारे पर हमले में 25 सिखों की मौत भी हो गई थी। नागरिकता संशोधन कानून पास होने से सिख उत्साहित हैं। अमेरिका में रहने वालों सिखों ने इसी आधार पर भारत सरकार से अफगानिस्तान के हिंदुओं और सिखों को शरण देने की अपील की है।
सिर्फ भारत सुरक्षित
अमेरिका में रहने वाले सिख समुदाय के नेताओं ने कहा है कि अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक गंभीर स्थिति में हैं। वे भारत को इस क्षेत्र में एकमात्र सुरक्षित देश के रूप में देख रहे हैं। ग्लोबल सिख कम्युनिटी के अफगानिस्तान कमेटी के चेयरमैन परमजीत सिंह बेदी ने न्यूज एजेंसी से कहा, “अभी पूरी दुनिया कोरोनावायरस से लड़ रही है। भारत में भी लॉकडाउन है। हम भारत की चिंता समझते हैं। लेकिन, फिर भी मोदी सरकार अपील करते हैं कि वो हमारी मांगों पर जल्द एक्शन ले। हमें अफगानिस्तान में रहने वाले सिखों की सुरक्षा का डर है। हम मोदी सरकार से काबुल के लिए एक विशेष उड़ान की भी मांग करते हैं। हम चाहते हैं कि भारत जल्द से जल्द इस मामले में हस्तक्षेप करे, क्योंकि पहले ही काफी देर हो चुकी है।”
काबुल गुरुद्वारे पर हमला
बेदी ने 25 मार्च को काबुल के गुरुद्वारे पर हुए आतंकी हमले पर भी चिंता जताई। इस हमले में 25 सिखों की मौत हो गई थी। उन्होंने कहा कि मरने वालों में महिलाएं, बुजुर्ग और चार साल की बच्ची भी शामिल थी। सभी लोग कोरोनावायरस से पीड़ित लोगों के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करने के लिए इकट्ठा हुए थे। लेकिन, वो लोग आतंकवाद का शिकार हो गए।
अमेरिका में भारतीय राजदूत ने दिलाया भरोसा
अमेरिका में भारत के राजदूत तरणजीत सिंह संधु ने अफगानिस्तान के सिख समुदाय के साथ एकजुटता दिखाई है। उन्होंने शुक्रवार को ट्वीट किया। कहा, ‘‘भारत हमेशा से अफगानिस्तान में सिख और हिंदू समुदाय के साथ एकजुटता दिखाता रहा है और कठिन परिस्थितियों में मदद भी की है।’’
Hari Dutt Joshi/ Chief Editor
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