क्या आज UN में रूस के खिलाफ वोट कर देगा भारत? नौ बार वोटिंग से रहा है दूर, ‘दोस्त’ के प्रस्ताव का भी नहीं दिया साथ

Russia vs USA For India : यूक्रेन युद्ध ने भारत को अजीब उलझन में डाल दिया है। रूस के साथ उसकी पारंपरिक मित्रता अग्निपरीक्षा से गुजर रही है। हालांकि भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति पर कदम बढ़ाते हुए...

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नई दिल्ली: क्या भारत आज यूक्रेन युद्ध पर गुटनिरपेक्षता की नीति त्याग देगा? संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में आज रूस के खिलाफ प्रस्ताव पर मतदान होना है। लिथुआनिया ने बिना उकसावे के यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए रूस को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) से बेदखल करने का प्रस्ताव पेश किया है। प्रस्ताव को अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त होगा, वहीं रूस ने कहा है कि वोटिंग से दूर रहने वाले देशों को भी वह अपना विरोधी ही समझेगा। उधर, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सलाहकार रहीं लिजा कर्टिस ने आशंका जताई है कि अगर भारत ने यूक्रेन मुद्दे पर रूस के प्रति अपना रुख नहीं बदला तो अमेरिका के साथ उसका रिश्ता प्रभावित हो सकता है। ऐसे में आज की अग्निपरीक्षा भारत कैसे पास करे? यह बहुत गंभीर सवाल है। ध्यान रहे कि भारत ने रूस के खिलाफ आए प्रस्तावों पर अब तक नौ बार वोटिंग से दूर रहा है। हालांकि, उसने रूस की तरफ से लाए गए एकमात्र प्रस्ताव का भी समर्थन नहीं किया। सवाल है कि क्या इस बार यूएन में अपनी खींची लकीर ही मिटाने को मजबूर होगा भारत?

Biden-Modi-Putin

विदेश मंत्री ने संसद में भी कही बड़ी बात

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को ही संसद में कहा कि इंसानी खून बहाकर कुछ हासिल नहीं हो सकता है। उन्होंने यूक्रेन की स्थिति पर लोकसभा में हुई चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि खून बहाकर और मासूमों की जान की कीमत पर कोई भी समस्या सुलझाई नहीं जा सकती है। बातचीत और कूटनीति ही हर विवाद का उचित समाधान है। यूक्रेन के शहर बूचा में आम नागरिकों की हत्या से दुनियाभर में पैदा हुए आक्रोश का भारत पर भी असर हुआ है। भारतीय संसद में इसकी चर्चा हुई तो सरकार ने अपने रुख से सदन को अवगत कराया। इसी क्रम में विदेश मंत्री ने क्षेत्रीय संप्रभुता का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मौजूदा वैश्विक व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सम्मान और राष्ट्रों की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता को महत्व देने वाले संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत बनाई गई है। उन्होंने कहा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसी चार्टर के अनुरूप काम किया है।

पहले दलीप सिंह और अब लिजा कर्टिस, भारत पर बनेगा दबाव?
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में भारत-अमेरिका के बीच पॉइंट पर्सन की भूमिका में रहीं टॉप ऑफिसर लिजा कर्टिस ने कहा है कि अमेरिका, रूस पर भारत की निर्भरता को समझता है, लेकिन यह समझ कब तक बनी रह पाएगी, इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि अमेरिका, रूस को लेकर भारत की मजबूरी को अब तक समझ रहा है, लेकिन भारत ने अगर आगे भी अपना रुख नहीं बदला तो अमेरिका के साथ उसके रक्षा एवं सुरक्षा साझेदारी प्रभावित हो सकती है। इससे पहले, मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा उप-सलाहकार दलीप सिंह (Deputy NSA Daleep Singh) ने अपने भारत दौरे पर यहां तक कह दिया कि चीन ने कभी भारत की सीमा का अतिक्रमण किया तो रूस दौड़कर भारत का पक्ष नहीं लेगा। उनके इस बयान को कूटनीति की दुनिया में अप्रत्याशित और गैर-जरूरी माना जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व राजदूत और मंझे हुए राजनयिक सैयद अकबरुद्दीन ने भी दलीप सिंह की भाषा पर आपत्ति जताई और यूक्रेन युद्ध पर भारत की स्थिति भी स्पष्ट की।

पूर्व राजनयिक ने समझा दिया- क्या है भारत का रुख
सैयद अकबरुद्दीन ने पहले तो ट्वीट के जरिए राष्ट्रपति बाइडेन के डिप्टी एनएस दलीप सिंह को जवाब दिया, फिर अंग्रेजी न्यूज चैनल इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति सिर्फ यूक्रेन युद्ध को लेकर नहीं है, बल्कि यह हमारा परंपरागत सिद्धांत रहा है। उन्होंने कहा, ‘हमने कई तरह से संकेत दिया है कि मौजूदा हालात स्वीकार्य नहीं हैं। हां, हमने निंदा नहीं की है क्योंकि हमारी ऐसी परंपरा नहीं रही है। हम किसी की निंदा करने से बचते हैं ताकि जब समाधान ढूंढने का मौका आए तो हम उसका हिस्सा बन सकें, ना कि बयानबाजियां करके समस्या को बढ़ा दें। हम मानते हैं कि निंदा किसी समस्या का समाधान नहीं है। सिर्फ कूटनीति और बातचीत से ही इस समस्या का समाधान निकलेगा।’

खुलकर नहीं बोलकर भी रूस को बहुत कुछ कह चुका है भारत
पूर्व भारतीय राजनयिक ने कहा कि यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण छाई अशांति के बीच दुनिया विभक्त हो गई है। ऐसे में हर देश अपना एक रुख तय करे, यह सामान्य बात है। उन्होंने कहा, ‘भारत ने हमेशा राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की अक्षुण्णता पर जोर दिया है। कोई भी समझ सकता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में किसकी संप्रभुता और अखंडता प्रभावित हुई है। इसलिए हमने बिना खुलकर बोले कई तरह से अपना रुख स्पष्ट कर दिया है कि हम युद्ध से पैदा हुई परिस्थितियों से खुश नहीं हैं।’ वो आगे कहते हैं, ‘एक और उदाहरण ले लीजिए- हम यूक्रेन को मानवीय सहायता पहुंचा रहे हैं। कोई भी उसे मानवीय सहायता नहीं देता है जिसके प्रति उसकी सहानुभूति नहीं हो। हमने यह भी कहा कि हमें खेद है कि बातचीत की जगह युद्ध शुरू हो गया है। हम सबको पता है कि युद्ध कैसे शुरू हुआ।’ उन्होंने भारत के रुख का संकेत समझाने के लिए एक और उदाहरण दिया। अकबरुद्दीन ने कहा, ‘यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ प्रस्तावों पर नौ बार वोटिंग हुई है। भारत ने एक बार भी मतदान में हिस्सा नहीं लिया। चीन ने चार बार रूस के पक्ष में मतदान किया।’

पाबंदियों की पेचीदगी और सुलह का रास्ता
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में लाए जा रहे रूस विरोधी प्रस्तावों के असर पर भी मंथन होना चाहिए। सैयद अकबरुद्दीन ने कहा, ‘हमने देखा है कि संयुक्त राष्ट्र में कई प्रस्ताव लाए गए, रूस की निंदा में बड़ी-बाड़ी बातें की गईं, लेकिन जमीन पर इसका असर क्या हुआ?’ उन्होंने कहा कि दुनिया की एक बड़ी अर्थव्यवस्था (रूस) पर पाबंदियां लगा दी जाएंगी तो उसका दूर-दूर तक असर होगा। उन्होंने कहा कि पहले ईरान और वेनेजुएला पर भी पाबंदियां लगाई गईं। लेकिन इस बार की पाबंदियां बहुत व्यापक हैं, इसलिए इनका असर भी बहुत ज्यादा होगा। वो कहते हैं, ‘पश्चिमी देशों की नजर में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का कोई महत्व नहीं है। वो पाबंदियों को अपने हित में इस्तेमाल करते हैं। अमेरिका और कुछ यूरोपीय देश यही कर रहे हैं। लेकिन भारत जैसे देश, जिन्हें किसी खेमे में नहीं रहना है, उसे अपना हित देखना होगा।’ अकबरुद्दीन ने अमेरिका के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह के भारत दौरे का स्वागत किया। उन्होंने कहा, ‘अमेरिका ने अपना स्टैंड समझाने के लिए अपना दूत भारत भेजा, यह अच्छी बात है। …पाबंदियों के असर को लेकर मित्र देशों के बीच बातचीत होती है, लेकिन हमने देखा कि अजीब तरह की कूटनीति का इस्तेमाल किया गया जिसकी अपेक्षा अमेरिका जैसे मित्र देश से नहीं की जाती है। डिप्टी एनएसए (दलीप सिंह) के बयान भारत-अमेरिका के पारंपरिक रिश्ते के अनुरूप नहीं हैं।’

भारत की अग्निपरीक्षा
ध्यान रहे कि भारत संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों पर मतदान प्रक्रिया में शामिल नहीं रहा बल्कि रूस की तरफ से लाए गए एकमात्र प्रस्ताव पर वोटिंग से भी दूर रहा है। इतना ही नहीं वक्त-वक्त पर ऐसे बयान दिए हैं जिनसे स्पष्ट संकेत जाते हैं कि वो यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों से खुश नहीं है। जैसा कि पूर्व राजनयिक सैयद अकबरुद्दीन ने कहा है कि भारतीय कूटनीति का पारंपरिक सिद्धांत किसी देश की निंदा करने से बचने की रही है, इसलिए वह रूस की निंदा भी नहीं कर रहा है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र से लेकर संसद में दिए बयानों से भारत के रुख का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। जहां तक बात अमेरिका के साथ रिश्ते की है तो ट्रंप की सलाहकार रहीं लिजा कर्टिस की आशंका कितनी सही साबित होगी, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि अमेरिका अगर भारत-रूस संबंधों की बारीकियां समझ रहा है तो भारत-अमेरिका संबंध में दरार आने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। हालांकि, पेचिदा परिस्थितियों से पैदा हुए दबाव के बीच भारत आज संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग को लेकर अपने अब तक के स्टैंड पर कायम रहेगा या नहीं, इसका ठीक-ठीक अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता, कयास ही लगाए जा सकते हैं।

 

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