- करगिल विजय दिवस के 20 साल पूरे होने के मौके पर युद्ध में शहीदों के परिजनों ने एबीपी न्यूज़ के साथ अपनी कहानी साझा की. इस दौरन परिजनों ने बताया कि कठिन दिनों में कैसे उन्होंने खुद को और अपने परिवार को संभाला.
नई दिल्लीः करगिल विजय के 20 साल पूरे होने पर एबीपी न्यूज ने शिखर सम्मेलन आयोजित किया. इस शिखर सम्मेलन में शहीदों के परिजनों ने भाग लिया. इस दौरान उन्होंने अपने अनुभव साझा किए. कार्यक्रम के दौरान बातचीत करते हुए शहीद लांस नायक बचन सिंह की पत्नी कमलेश बाला भी मौजूद थीं. उन्होंने अपने पति की कहानी भी बताई. कमलेश बाला जी ने बताया कि उनका बेटा भी फौज में है.
शहीद की पत्नी ने बताया, ”लांस नायक बचन सिंह की मौत के 2 साल बाद ही उनके मां की मौत हो गई थी. पिता की हालत यह हो गई थी कि वह बिस्तर से उठ नहीं पाते थे. मैं खुद परेशान रहती थी. लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारा. अपने बच्चों को पढ़ाया. उसके बाद बच्चों ने खुद संघर्ष किया मैं खुद उनके साथ मौजूद रही.”
पति को लेकर उन्होंने बताया, ”उस दिन मुझे फोन आया और बुलाया गया. जब उन्होंने पूछा कि कोई क्या बात है क्या तो सेना के अधिकारियों ने कुछ नहीं बताया. हालांकि उन्हें किसी अनहोनी का आभास हो गया था.”
शहीद बचन सिंह की पत्नी ने कहा, ”उनकी शहादत के दो दिन बाद मुझे उनकी लिखी चिट्ठी मिली. मुझे हिम्मत नहीं हुई कि मैं उनका खत पढ़ सकूं. मैंने अभी भी उस चिट्ठी को संभालकर रखा है.”
कमलेश बाला ने कहा कि 20 साल पहले की बात जब भी आंखों के सामने से गुजरती है तो उनकी आंखें भर आती है. उनकी पत्नी कामेश बाला कहती हैं कि इससे अधिक मुझे कुछ भी नहीं चाहिए कि मेरा बेटा आज सेना में है. जब मैं हितेश के युनिट में गई थी तो देखा कि वह कमांड दे रहा है. यह देखकर मुझे बहुत गर्व हुआ.
शहीद कैप्टन हनीफुद्दीन की कहानी, मां की जुबानी- शहादत परिवार को हिम्मत दे जाता है
करगिल विजय दिवस के 20 साल पूरा होने पर एबीपी न्यूज़ ने एक खास कार्यक्रम आयोजित किया. इस कार्यक्रम के जरिए शहीदों को याद किया गया. कार्यक्रम के दौरन परिजनों ने अपनी जिंदगी से जुड़ी यादों को साझा किया. यादों को साझा करने के दौरान भावुक हो गई. अपने पति को याद कर महिलाएं रोने भी लगीं इस दौरान वहां मौजूद कई लोगों की आंखें नम हो गई.
कैप्टन हनीफुद्दीन राजपूताना राइफल्स के हिस्सा थे. वह दिल्ली के रहने वाले थे. वह युद्ध के दौरान 6 जून को शहीद हुए थे. अपने बेटे को याद करते हुए कैप्टन हनीफुद्दीन की मां ने भी अपनी कहानी बताई.
परिवार की शहादत हिम्मत दे जाती है
उन्होंने कहा, ”कोई भी व्यक्ति जब चला जाए तो उसकी याद आती ही है. अगर कोई व्यक्ति घर का शहीद होता है तो परिवार को मोटिवेट कर जाए. मेरे बेटे के शहीद होने के बाद अंदर एक अलग तरह की हिम्मत आती है.”
सियाचीन में तैनाथ थे हनीफुद्दीन
अपने बेटे के बारे में बात करते हुए मां ने बताया, ”वो सियचीन में तैनाथ था. दो साल का टर्म खत्म होने वाला था. वह जल्द ही घर आने वाले थे. जब भी बात होती थी तो वह कहते थे कि फोन लाइन खाली रखना. मैं कहती थी आ जाओ घर कोई न कोई तो होगा ही. ऑपरेशन थंडर्वोल्ट की अगुवाई कर रहे थे. इस दौरान शहीद हो गए.” अपने बेटे के शहादत को लेकर उन्होंने बताया कि हमें सच को स्वीकार करना होगा. मौत की खबर कहीं न कहीं से तो मिल ही जाती है.
21 साल की उम्र में शहीद हुए थे सुमित रॉय, मां ने कहा- स्कूलों में दी जाए सेना की ट्रेनिंग
करगिल युद्ध के 20 साल पूरे हो चुके हैं. इस युद्ध में किसी ने बेटा खोया, किसी ने पत्नी तो किसी ने भाई. लेकिन देश भक्ति कम नहीं हुई. एबीपी न्यूज़ के खास कार्यक्रम ‘करगिल शिखर सम्मेलन’ में शहीद कैप्टन सुमित रॉय की मां स्वपना रॉय ने बेटे को खोने का दर्द साझा किए. साथ ही उन्होंने सरकार से मांग की कि स्कूल में बच्चों को सेना की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए.
स्वपना ने कहा कि आज बहुत मुश्किल दिन है. कामकाज की वजह साल तो निकल जाते हैं. लेकिन ये दिन नहीं निकलता है. इस दिन को लोग घर आते हैं. मीडिया वाले भी आते हैं. पुरानी बातें याद आ जाती है. मन भारी हो जाता है. लेकिन जनता को मॉटिवेट करना जरूरी है.
उन्होंने बताया कि आखिरी बार जब बात हुई तो उसने नहीं बताया कि मैं द्रास में हूं. स्वपन्ना ने कहा- ”26 जून को फोन पर सुमित से बात हुई थी. उसने बताया कि मैं अभी द्रास में हूं. 9 मई को घर से वापस गया था, उस समय कुपवाड़ा में था. द्रास जाने की बात पहले उसने नहीं बताई. उसने वहां की स्थिति नहीं बताई. वहां हमारे कई परिवार के लोग भी तैनात थे. उसने उस दिन घरेलू बात की. 26 जून के बाद बात नहीं हुई. मैं जाफरपुर कलां में नवोदय स्कूल में थी. उसी समय घर में कॉल आया था और उसने पापा से बात की. मैं घर पहुंची लेकिन बात नहीं हुई. उसके अगले दिन फोन आया कि सुमित शहीद हो चुके हैं.”
उन्होंने कहा, ”मेरे दोनों बेटे फौज में हैं. दोनों ने इंफेंट्री डिविजन को चुना. बच्चे जब फौज में चले गए हैं तो हम कैसे सोच सकते हैं कि वो पीछे देखेंगे. मैं भी जॉब में थी. करगिल के पांच साल बाद मेरे पति की मौत हो गई थी. डिप्रेशन में चले गए थे. सुमित बहुत छोटा था. कई बार कहते थे कि बहुत छोटा है, एनडीए के माध्यम से गया है. मैं तसल्ली देती थी. लेकिन उसकी मौत के बाद पति इस दर्द को नहीं सहन कर पाए. डिप्रेशन में चले गए. खोने का बहुत दर्द है. हम भूल नहीं सकते हैं. मैंने अपने आप को व्यस्त कर लिया. मैं एनजीओ के साथ काम कर रही हूं. मैं समाज के लिए काम करती हूं, बच्चों के लिए काम करती हूं. अपने लिए सोचने का वक्त नहीं मिलता है. सोच के सिर्फ सेहत खराब होता है, किसी की अच्छाई के लिए काम करेंगे तो खुशी मिलती है.”
स्वपना ने कहा कि हर एक बच्चे को स्कूल में सेना की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. एजुकेशन में इसे शामिल किया जाना चाहिए. एक बच्चे को जरूर ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. सभी से पांच साल की ड्यूटी कराया जाना चाहिए. सेना में जवानों की काफी कमी है, यह आसानी से पूरा होगा.
18 गढ़वाल राइफल्स के जवान सुमित रॉय हिमाचल प्रदेश के सोलन के रहने वाले थे. उन्होंने द्रास के प्वाइंट 4700 पर कब्जा किया. उसके बाद विस्फोटक की चपेट में आकर 21 साल की उम्र में 3 जुलाई 1999 को शहीद हुए. मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
सभार-एबीपी न्यूज/https://abpnews.abplive.in