राहत-बच्चों के लिए अब भारी स्कूल बैग की ‘नो टेंशन’, सरकार ने शुरू किया पायलट प्रोजेक्ट

राजस्थान में जानकारों की सलाह से किताबें कम करने का फैसला हुआ है. साल भर के सिलेबस को चार हिस्सों में बांट दिया गया है. स्कूल बैग के बढ़ते भार को कम करने के लिए आज से राज्य में एक पायलट योजना शुरू की गई है.

जयपुर: इन दिनों स्कूल बैग बच्चों के लिए बोझ बन गया है. दस-दस किलो के बोझ लेकर बच्चे स्कूल आते जाते हैं. ये समस्या पूरे देश की है. बच्चों के तबियत बिगड़ने की भी खबरें आती रहती हैं लेकिन स्कूल बैग के बढ़ते भार पर कभी कोई काम नहीं हुआ. मजबूरी में बच्चे कंधे पर किताब कॉपियां लाद कर स्कूल जाते रहे हैं. पहली बार राजस्थान सरकार ने इस समस्या से दो-दो हाथ करने का मन बनाया है.

 

अब एक पायलट योजना बुधवार से शुरू कर दी गई है. जानकारों से सलाह मशविरा के बाद किताबें कम करने का फैसला हुआ. ये पाया गया कि हर महीने बच्चे किसी विषय का एक दो चैप्टर ही पढ़ते हैं. इस हिसाब से तीन महीने में चार पांच चैप्टर की ही पढ़ाई हो पाती है. इस स्टडी के बाद एक फॉर्मूला बना. साल भर के सिलेबस को चार हिस्सों में बांट दिया गया. तीन तीन महीने का कोर्स तैयार किया गया. पीरामल फाउंडेशन की मदद से साल भर का सिलेबस बनाया गया.

 

पहली क्लास के तीन अलग अलग विषयों के कुछ चैप्टर को मिला कर एक किताब तैयार किया गया. अब बच्चे को स्कूल सिर्फ़ एक किताब लेकर ही जाना पड़ेगा. पहले बच्चे को तीन किताबें अपने बैग में रखने पड़ते थे. उसके स्कूल बैग का वजन दो तिहाई कम हो गया. तीन किताबों का भार एक किलो था. नए सिस्टम में 400 ग्राम की बस एक किताब ही ले जानी पड़ेगी.

 

इसी तरह से पांचवी कक्षा के लिए भी एक नया सिलेबस बनाया गया. यहां चार किताबें मिला कर एक बुक बनाई गई. एक तिमाही में एक विषय में जितना पढ़ना है, उसे अलग कर लिया गया. इसी तरह से चार विषयों के एक तिमाही के सिलेबस को मिला कर एक किताब बना ली गई. अब पांचवीं क्लास के बच्चे को चार किताबों के बदले सिर्फ एक ही किताब लेकर स्कूल जाना पड़ेगा. उसके बैग का वजन करीब डेढ़ किलो कम हो गया. यशपाल कमेटी ने 1993 में ही स्कूली शिक्षा में किताबों के बोझ को कम करने की सिफारिश की थी लेकिन किसी सरकार ने कभी भी इस पर ईमानदारी से काम नहीं किया.

 

प्रयोग के रूप में राजस्थान में गहलोत सरकार ने आज से ये योजना लागू कर दी है. शुरूआत में राज्य के सभी 33 जिलों में इसे शुरू किया गया है लेकिन जिले के सिर्फ़ एक स्कूल में. अगर बच्चों, उनके घरवालों और टीचरों को ये स्कीम पसंद आ गई तो फिर सभी स्कूलों में इसे लागू किया जा सकता है. शुरूआती दौर में पहली से पांचवीं क्लास के बच्चों के लिए ही ये सुविधा लागू की गई है. राजस्थान के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ने कहा, “मैं तो चाहूँगा कि बाकी राज्य सरकारें भी अपने यहां ये पहल शुरू करें.”

 

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