क्या है वो सुगौली संधि, जिसे सीमा विवाद में भारत और नेपाल दोनों आधार बनाते हैं

नेपाल ने नया राजनीतिक नक्शा बनाकर भारत के सीमा विवाद को बड़ा तूल दे दिया है. दोनों ही देश सुगौली संधि की बात करते हैं. जिसके चलते नेपाल को भारत की उसकी जमीन वापस करनी पड़ी थी. लेकिन इस संधि की कई ऐसी बातें जो आज भी स्पष्ट नहीं हुई हैं. जानें क्या है ये संधि

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भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद अचानक गहरा गया है. भारत ने करीब 10 दिन पहले लिपुलेख दर्रे तक एक सड़क का निर्माण किया था, उसके बाद से नेपाल में इसका विरोध होने लगा. नेपाल ने तुरत-फुरत एक राजनीतिक नक्शा जारी कर दिया, जिसमें उसने दावा किया कि सुगौली संधि के आधार पर उत्तराखंड में आने वाले तीन इलाके उसके हैं, जिस पर भारत का कब्जा है. हालांकि भारत-नेपाल के बीच 54 इलाकों को विवादित बताया जाता है.

Nepal Demands Return of Darjeeling From India Lost via Sugauli Treaty

  • सुगौली संधि, ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच हुई एक संधि है, जिसे 1814-16 के दौरान ब्रिटेन और नेपाल के बीच हुए युद्ध के बाद हरकत में लाया गया था. इस पर 02 दिसम्बर 1815 को हस्ताक्ष्रर किये गये. 4 मार्च 1816 का इस पर मुहर लग गई. नेपाल की ओर से इस पर राज गुरु गजराज मिश्र और कंपनी ओर से लेफ्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रेडशॉ ने हस्ताक्षर किए.
  • इस संधि के अनुसार नेपाल के कुछ हिस्सों को ब्रिटिश भारत में शामिल करने, काठमांडू में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि की नियुक्ति और ब्रिटेन की सैन्य सेवा में गोरखाओं को भर्ती करने की अनुमति दी गई. संधि में ये साफ था कि नेपाल अब अपनी किसी भी सेवा में किसी अमेरिकी या यूरोपीय कर्मचारी को नियुक्त नहीं कर सकता.

उस संधि में नेपाल ने अपने नियंत्रण वाले भूभाग का लगभग एक तिहाई हिस्सा गंवा दिया. जिसमे नेपाल के राजा द्वारा कई इलाके थे. जिसमें सिक्किम, कुमाऊं और गढ़वाल राजशाही और तराई के बहुत से क्षेत्र शामिल थे. बाद में तराई भूमि का कुछ हिस्सा 1816 में नेपाल को लौटा दिया गया. इसके बाद 1860 में तराई भूमि का एक और बड़ा हिस्सा नेपाल को 1857 के भारतीय विद्रोह को दबाने में ब्रिटेन की मदद करने के बदले लौटा दिया गया.

Original copies of both Sugauli Treaty and Nepal-India Friendship ...

1950 में नई संधि पर हस्ताक्षर हुए
दिसम्बर 1923 में सुगौली संधि को शांति और मैत्री की संधि में बदल दिया गया. जब भारत आजाद हुआ तो 1950 में भारत और नेपाल के राणा शाही परिवार ने नई संधि पर हस्ताक्षर किए.

मिथिला का एक हिस्सा नेपाल में चला गया
दरअसल 1805 में नेपाल ने भारतीय रियासतों से कई इलाके हड़पकर विस्तार किया था, जिससे नेपाल की पश्चिमी सीमा कांगड़ा के निकट सतलुज नदी तक पहुंच गई थी. सुगौली संधि से भारत को अपने ये इलाके वापस मिल गए. इस संधि के चलते मिथिला क्षेत्र का एक हिस्सा भारत से अलग होकर नेपाल के पास चलाई गया, जिसे नेपाल में पूर्वी तराई या मिथिला कहा जाता है. इस संधि के तहत ही जो इलाके अब भारत में हैं, वो उसके पास आ गए, जिस पर नेपाल अपना दावा जता रहा है.
सुगौली संधि और नेपाल-भारत के बीच ...
क्या थीं संधि की शर्तें
1. ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच हमेशा शांति और मित्रता रहेगी.
2. नेपाल के राजा उस सारी भूमि के दावों को छोड़ देंगे, जो युद्ध से पहले दोनो राष्ट्रों के मध्य विवाद का विषय थे. उन भूमियों की संप्रभुता पर कंपनी के अधिकार को स्वीकार करेंगे.
3- नेपाल के राजा निम्न प्रदेशों को ईस्ट इंडिया कंपनी को दे देंगे. अगर इस संधि के अनुसार देखें तो साफ लगता है कि नेपाल अब जिन इलाकों को विवाद का विषय बना रहा है, वो कभी उसके थे ही नहीं. वो पहले भारत में ही थे, जिस पर नेपाल के राजा ने जब हड़पा तो विवाद पैदा हो गया. उसी के चलते युद्ध हुआ और इसमें नेपाल के राजा को हार का मुंह देखना पड़ा.

संधि में ये तय हुआ
संधि के अनुसार भारत को सौंपे जाने वाले प्रदेश ये थे
– काली और राप्ती नदियों के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र. (ये इलाका अब विवाद का विषय बना हुआ है)
– बुटवाल को छोडकर राप्ती और गंडकी के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र.
– गंडकी और कोशी के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र जिस पर ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अधिकार स्थापित किया गया है.
– मेची और तीस्ता नदियों के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र।
– मेची नदी के पूर्व के भीतर प्रदेशों का सम्पूर्ण पहाड़ी क्षेत्र. साथ ही पूर्वोक्त क्षेत्र गोरखा सैनिकों द्वारा इस तिथि से 40 दिनों के भीतर खाली किया जाएगा.
– नेपाल के उन भरदारों और प्रमुखों, जिनके हित पूर्वगामी अनुच्छेद के अनुसार उक्त भूमि हस्तांतरण द्वारा प्रभावित होते हैं, की क्षतिपूर्ति के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी, 2 लाख रुपये की कुल राशि पेंशन प्रतिवर्ष के रूप में देने को तैयार है जिसका निर्णय नेपाल के राजा द्वारा लिया जा सकता है.
– नेपाल के राजा, उनके वारिस और उत्तराधिकारी काली नदी के पश्चिम में स्थित सभी देशों पर अपने दावों का परित्याग करेंगे और उन देशों या उनके निवासियों से संबंधित किसी मामले में स्वयं को सम्मिलित नहीं करेंगे.
नेपाल के राजा, सिक्किम के राजा को उनके द्वारा शासित प्रदेशों के कब्जे के संबंध में कभी परेशान करने या सताने की किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे. यदि नेपाल और सिक्किम के बीच कोई विवाद होता है तो उसकी मध्यस्था ईस्ट इंडिया कंपनी करेगी.

1814-16 में ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल राजशाही के बीच हुआ युद्ध

– ब्रिटिश सरकार की सहमति के बिना किसी भी ब्रिटिश, अमेरिकी या यूरोपीय नागरिक को अपनी किसी भी सेवा में ना तो नियुक्त करेंगे ना ही उसकी सेवाओं को बनाये रखेंगे.

संधि के बाद क्या हुआ
दिसम्बर 1816 में नेपाल को मेची नदी के पूर्व और महाकाली नदी के पश्चिम के बीच का तराई क्षेत्र वापस लौटा दिया गया. एक भूमि सर्वेक्षण के द्वारा दोनों राष्ट्रों के बीच की सीमा को तय करने का प्रस्ताव स्वीकार किया गया था. (हालांकि इसको लेकर दोनों देशों के बीच आजादी के बाद से ही स्पष्टता नहीं बन सकी है. हालांकि इन इलाकों पर भारत का कब्जा बना हुआ है)

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क्यों जारी है सीमा विवाद
इस संधि में राष्ट्रीय परिसीमन को स्पष्ट नहीं किया गया, जिसके चलते आज भी इस पर विवाद होता रहता है, नेपाल और भारत दोनों कुछ इलाकों पर अपना हक जताते हैं.
1. संधि ये बताने में विफल रही कि कुछ स्थानों पर एक स्पष्ट वास्तविक सीमा रेखा कहां से गुजरेगी. विवादित स्थानों का क्षेत्रफल लगभग 60,000 हेक्टेयर है.
2. नेपाल-भारत की सीमा रेखा के 54 स्थानों पर अतिक्रमण और विवादों के आरोप हैं.

कौन से हैं वो तीन सीमाई इलाके, जो भारत और नेपाल के बीच बडे़ विवाद की वजह बने
इन दिनों नेपाल के साथ भारत के साथ सीमा विवाद की खबरें सुखिर्यों में हैं. नेपाल के अखबार बहुत आक्रामक तरीके से इस विवाद पर खबरें छाप रहे हैं. नेपाल ने तुरत-फुरत में एक पॉलिटिकल मैप जारी करके तीन इलाकों को अपना बताया है, जो भारत के नक्शे में शामिल है. केवल यही नहीं नेपाल ने इन तीन इलाकों में करीब 500 चौकियां बनाकर सैनिक तैनात करना भी शुरू कर दिया है.
पहली बार नेपाल इस मामले पर इतना उग्र नजर आ रहा है. इससे पहले भारत और नेपाल के बीच ये सारी बातें बातचीत के जरिए सुलझा ली जाती थीं. लेकिन अब दोनों देशों के रिश्ते तल्ख नजर आ रहे हैं.
दो इलाकों लिपुलेख और कालापानी को लेकर विवाद की बातें पिछले दिनों भी सामने आईं थीं लेकिन नेपाल ने अपने राजनीतिक नक्शे में जो तीसरा स्थान शामिल किया है,वो लिम्पियाधुरा है. जानते हैं कि ये तीनों इलाके कहां हैं और दस्तावेज इन स्थानों के बारे में क्या कहते हैं.क्या है लिम्पियाधुरा इलाकाये इलाका भी उत्तराखंड में है जो नेपाल की सीमा से छूता हुआ है. यहां पर महाकाली नदी का उदगम है. दरअसल विवाद की वजह भी महाकाली नदी के उदगम से शुरू हुई है. नेपाल का कहना है कि नदी का उद्गम लिपुलेख के पास लिम्पियाधुरा से है. ये दक्षिण पश्चिम की तरफ बहती है.
वहीं भारत दावा करता रहा है कि महाकाली नदी कालापानी नदी से निकलती है और दक्षिण और पूर्व की तरफ बहती है. 1816 में नेपाल और ब्रिटिश इंडिया के बीच की गई सुगौली संधि के मुताबिक महाकाली नदी भारत और नेपाल दोनों की ही सीमाओं को छूती है. पूर्व की तरफ नेपाल को और पश्चिम की तरफ भारत को.

लिम्पियाधुरा भारत-नेपाल सीमा पर वो जगह है, जो फिलहाल उत्तराखंड में है, जहां महाकाली नदी का उदगम है. इसे नेपाल ने अपने नए राजनीतिक नक्शे में शामिल किया है

नेपाल की कैबिनेट का दावा है कि महाकाली (शारदा) नदी का स्रोत दरअसल लिम्पियाधुरा ही है जो फ़िलहाल भारत के उत्तराखंड का हिस्सा है, वो उसका हिस्सा है.

लिपुलेख कहां है और सामरिक लिहाज से कितना खास है
भारत ने करीब 10 दिनों पहले लिपुलेख (Lipulekh Pass) तक 80 किलोमीटर लंबा एक सड़क मार्ग तैयार किया था. नेपाल के साथ भारत का सीमा विवाद दरअसल इसी के साथ गर्म हुआ. इसे ना केवल नेपाल की संसद में उठाया गया बल्कि काठमांडू में भारतीय दूतावास के सामने इसके विरोध में जमकर प्रदर्शन भी हुआ.
कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रियों को 80 किलोमीटर की यह सड़क बनने के बाद लंबे रास्‍ते की कठिनाई से राहत मिलेगी और गाड़ियां चीन की सीमा तक जा सकेंगी. धारचुला-लिपुलेख रोड, पिथौरागढ़-तवाघाट-घाटियाबागढ़ रूट का विस्‍तार है. ये सड़क घाटियाबागढ़ से शुरू होकर लिपुलेख दर्रे पर ख़त्म होती है जो कैलाश मानसरोवर का प्रवेश द्वार है.

लिपुलेख दर्रे का प्राचीन काल से काफी महत्व रहा है, यही वो रास्ता है, जहां से होकर भारत और तिब्बत के बीच व्यापार होता था और तीर्थ यात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाते थे

भारत ने कई साल की मेहनत के बाद लिपुलेख दर्र तक नया सड़क मार्ग तैयार किया है, जिसे लेकर नेपाल से विवाद खड़ा होने के बाद ही उसने तुरत-फुरत अपना नया राजनीतिक नक्शा जारी कर दिया है.

भारत के लिए क्यों अहम 
लिपुलेख ला या लिपुलेख दर्रा या लिपुलेख भञ्ज्याङ हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है जो एक विवादित क्षेत्र है.ये 5,334 मीटर (17,500 फीट) की ऊंचाई पर है. प्राचीन काल में तो इसका बहुत महत्व था, क्योंकि भारत-तिब्बत के बीच आने-जाने के लिए इसी रास्ते का इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन मानसून में भूस्खलन तथा ठंड में बर्फ से ढंका होने के कारण इस दर्रे से आना-जाना बहुत मुश्किल हो जाता है. चूंकि ये इलाका भी नेपाल के साथ चीनी सीमा को छूता है, लिहाजा सामरिक लिहाज से भारत के लिए बहुत खास और जरूरी है.
नेपाल का दावा करता है कि 1816 की सुगौली संधि के जरिए इस इलाके पर उसका हक बनता है. सुगौली संधि भारत के साथ उसकी पश्चिमी सीमा का निर्धारण करती है.

कालापानी को लेकर विवाद की वजह क्या है
पिछले साल भारत ने कालापानी को अपने नक्शे में दिखाया जिसे लेकर भी नेपाल ने विरोध जताया था. कालापानी उत्तराखंड के पिथौड़ागढ़ ज़िले में 35 वर्ग किलोमीटर ज़मीन है. यहां इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस के जवान तैनात हैं. भारतीय राज्य उत्तराखंड की नेपाल से 80.5 किलोमीटर की सीमा लगती है और 344 किलोमीटर चीन से.

भारत के लिए सामरिक दृष्टि से कालापानी का इलाका बहुत अहम है. जब 1962 में भारत और चीन का युद्ध हुआ था, तब चीन की सेनाएं तमाम कोशिश के बाद यहां तक पहुंच नहीं पाईं थीं

काली नदी का उद्गम स्थल कालापानी ही है. भारत ने इस नदी को भी नए नक्शे में शामिल किया है. भारत का दावा है कि 1816 में ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के बीच हुई सुगौली संधि के जरिए ही ये उसके पास है.

कालापानी पर नेपाल का क्या दावा है
नेपाल का दावा है कि 1961 में यानी भारत-चीन युद्ध से पहले नेपाल ने यहां जनगणना करवाई थी और तब भारत ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी. नेपाल का कहना है कि कालापानी में भारत की मौजूदगी सुगौली संधि का उल्लंघन है.

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