बठिंडा में एक माह में आक्सीजन की मांग पांच गुणा बढ़ी, सप्लाई हुई दुरुस्त पर कोविड मरीजों के लिए रखा वेंल्टीनेंटर चलाने वाले डाक्टर व माहिर नहीं

सरकारी अस्पताल में पांच से बढ़कर मांग हुई 25 तो प्राइवेट अस्पतालों में प्रतिदिन 200 सिलेंडरों की खपत -गोबिंदगढ़ में लगे प्लाट से होगा मांग के अनुरुप सप्लाई, सरकार ने किया समझौता

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बठिंडा. कोरोना पोजटिव केसों की बढ़ती संख्या के बाद सेहत सुविधाओं को लेकर भी सेहत विभाग की चिंता को बढ़ा दिया है। वर्तमान में सबसे ज्यादा समस्या आक्सीजन सिलेंडरों को लेकर आ रही है। 20 अगस्त से लेकर सितंबर में अब तक कोरोना मरीजों की तादाद पांच हजार के नजदीक पहुंचने वाली है। इस स्थिति में जहां पहले प्रतिदिन सिविल अस्पताल में पांच बड़े सिलेंडरों की खपत थी वही अब यह बढ़कर प्रतिदिन 25 पहुंच गई है। यही स्थिति प्राइवेट अस्पतालों की है जिसमें 50 से बढ़कर सिलेंडरों की तादाद 200 सिलेंडर प्रतिदिन पहुंच गई है।

वही छोटे सिलेंडरों की खपत में अभी किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं हुई है। फिलहाल राज्य सरकार ने इस बाबत निरंतर बढ़ रही आक्सीजन सिलेंडरों की मांग के मद्देनजर गोबिंदगढ़ में हाल ही में शुरू हुए गैस प्लाट से समजौता कर सप्लाई को दुरुस्त करने का दावा किया है जहां से प्रतिदिन 200 सिलेंडरों की सप्लाई मिलने की उम्मीद है। इसमें राहत वाली बात यह है कि उक्त सिलेंडरों की कीमत बाजार में वर्तमान मूल्य पर ही मिलेगी। इससे आक्सीजन को लेकर काला बाजारी पर भी पूरी तरह से रोक लगने की उम्मीद है।
जिले में वर्तमान समय में कोरोना मरीजों के पहले तीन लेबल में उपचार व देखरेख की समुचित व्यवस्था है लेकिन चौथे लेबल जिसमें मरीज को सास लेने में सर्वाधिक दिक्कत का सामना करना पड़ता है व फेफड़ों को आक्सीजन के साथ वेंटीलेंटर की जरूरत पड़ती है की स्थिति में परिजनों को प्राइवेट अस्पताल या फिर शहर से बाहर की तरफ रुख करना पड़ रहा है। सिविल अस्पताल में एक वेंलटीलेंटर की व्यवस्था कर रखी है लेकिन इसे चलाने के लिए सिविल प्रशासन के पास स्टाफ की कमी है। इस तरह से लाखों रुपए की मशीन सिर्फ सफेद हाथी बनकर रह गई है।

साल 2005 में भी अस्पताल में वेंल्टीलेटर की व्यवस्था थी लेकिन इसे चलाने के लिए डाक्टर व स्टाफ नहीं होने से वह कुछ साल बाद कबाड़ में तबदील हो गया था व अब फिर से वही स्थिति फिर से पैदा हो रही है। कोविड काल में मरीजो के लिए संजीवनी का काम करने वाली उक्त मशीन को संचालित करने की तरफ न तो जिला व न ही सेहत प्रशासन ने आज तक दिलचस्पी दिखाई है बल्कि कागजी कारर्वाई के तहत समय-समय पर सेहत निगम को पत्र व्यवहार कर कर्मी देने की बात जरूर की जा रही है।
वही दूसरी तरफ सरकार एक तरफ राज्य में आक्सीजन की प्रार्याप्त मात्रा होने का दावा कर रही है वही दूसरी तरफ सरकार ने इसकी मांग बढ़ने व काला बाजारी को रोकने के लिए सख्त हिदायते जारी कर आक्सीजन बचाने के लिए टिप्स पर गौर करने व इसे सभी सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में सख्ती से लागू करने के आदेश पिछले दिनों दिए थे। सरकार का ध्यान गैस की बर्बादी को रोकने पर है।

आम तौर पर रिपोर्ट मिल रही थी कि सरकारी अस्पतालों में आक्सीजन प्लाटों व सप्लाई लाइनों में आए दिन फाल्ट व लीकेज के कारण भारी तादाद में आक्सीजन की बर्बादी हो रही है वही कई डाक्टरों को व उनके साथ जुड़े सहायकों को आक्सीजन देने संबंधी स्पष्ट हिदायते नहीं थी जिससे एक मरीज को जरूरत से ज्यादा आक्सीजन दी जा रही थी। ज्यादा आक्सीजन देने का नुकसान तो कई नहीं है लेकिन इसमें बर्बादी ज्यादा हो रही थी। सरकार का मानना है कि अगर गाइडलाइन को सख्ती से लागू करे जहां एक जिले में प्रतिदिन 300 सिलेंडर की खप्त है वह कम होकर दो सौ तक पहुंच सकती है व आक्सीजन की कमी के साथ काला बाजारी को रोका जा सकता है। फिलहाल राज्य सरकार ने विभिन्न स्थानों में आए दिन बढ़ रहे कोरोना पोजटिव केसों के चलते आक्सीजन की सप्लाई को लेकर नई गाइडलाइन जारी की है।

इसमें जहां आक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए हिदायते दी गई है वही दावा किया गया है कि राज्य में आक्सीजन सिलेंडरों की किसी तरह की कमी नहीं है बल्कि जिन स्थानों में बढ़ते मरीजों की ताताद के अनुसार जरूरत बढ़ती है तो तीन सदस्यों की कमेटी इस बाबत सप्लाई को दुरुस्त करने का काम करेगी। इस कमेटी में सरकारी मेडिकल कालेज पटियाला के डा. हरदीप बराड़, सरकारी मेडिकल कालेज फरीदकोट के डा. गुरकिरण कौर, सरकारी मेडिकल कालेज अमृतसर के गगनदीप कौर को शामिल किया गया है। इस कमेटी की तरफ से सबी सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों को आक्सीजन के इस्तेमाल को लेकर भी हिदायतें जारी की गई है।

इन हिदायतों के तहत कोविड-19 के ऐसे मरीज जो कमरे की हवा पर 94 फीसदी से अधिक आक्सीजन हासिल कर रहा है तो उन्हें चिकित्सक की सलाह पर आक्सीजन देने की जरूरत नहीं बल्कि एंटीवाय़रल उपचार ही दिया जाए। वही जिन मरीजों का लेबल 90 से 94 के बीच कम व बढ़ रहा है तो उन्हें केवल पांच मिनट तक नाक से आक्सीजन दे तो आक्सीजन की 40 फीसदी एफआई02 की बचत की जा सकती है। आक्सीजन के प्रेसर में पांच एल प्रति मिनट के दौरान बढ़ोतरी नही करे।

90 फीसदी से कम वाले केस में नाक से आक्सीजन देते एफआईएल-2 को 60 फीसदी तक प्राप्त करने के लिए 6एल प्रति मिनट और प्रवाह दर 10 एल प्रति मिनट तक बढ़ाया जा सकता है। इस तरह प्रवाह दर में वृद्धि 10एल प्रति मिनट तक न करे। वेंचुरी मास्क का उपयोग न करें क्योंकि इसके लिए अधिक ऑक्सीजन प्रवाह दर की आवश्यकता होती है। फिलहाल कमेटी ने आक्सीजन की बर्बादी को रोकने के लिए इस्तेमाल नहीं करने पर रेगुलेटर से पूरी तरह बंद कर लाक करने, समय-समय पर आक्सीजन की पाइपों की जांच करवाने ताकि आक्सीजन की बर्बादी न हो सके जैसी हिदायतों की सख्ती से पालना करने के लिए कहा गया है.
इसके पीछे बड़ा कारण यह भी है कि विभिन्न शहर में लगातार कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। शहर में रोजाना औसतन 120 से 150 नए कोरोना संक्रमित मरीज सामने आ रहे हैं। वर्तमान में जिले के अंदर 4820 पॉजिटिव केस आ चुके हैं। इसमें 1115 एक्टिव केस है। इसमें 40 से 50 मरीज 65 साल से अधिक उम्र वाले मरीज आ रहे है, जिन्हें आक्सीजन की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ रही हैं। ऐसे में कोरोना के मरीज बढ़ने से शहर के सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में 50 फीसदी आक्सीजन सिलेंडरों की मांग बढ़ गई है। कोरोना काल में पॉजिटिव मिल रहे हैं और इस वायरस का असर फेफड़ों पर ही सबसे ज्यादा पड़ता है। लिहाजा सांस की तकलीफ होने पर ऑक्सीजन की जरूरत सबसे ज्यादा पड़ती है। अब हालात ये हैं कि पहले जिले के विभिन्न अस्पतालों में हर रोज आक्सीजन की 100 सिलेंडर की खपत थी, जोकि अब बढ़कर 300 तक पहुंच गई है। यह डिमांड पिछले दो माह में से बढ़ी है, चूकिं कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ रही है। एक दम आक्सीजन की डिमांड बढ़ने से इसकी बिक्री करने वाले व्यापारियों के पास आर्डर की डिमांड बढ़ गई हैं, वहीं डिमांड अनुसार इसकी सप्लाई नहीं मिलने के कारण इसके रेटों में दोगुणा इजाफा हो गया हैं।

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