महाशिवरात्रि 11 मार्च से शुरू होगा हरिद्वार कुंभ; तैयारी ऐसी कि आस्था की डुबकी पर न लगे कोरोना का ग्रहण
जिन चार जगहों पर अमृत की बूंदें गिरीं, वहां कुंभ का आयोजन होता है। देवताओं और दानवों के बीच ये संघर्ष 12 दिन तक चला था। ऐसी मान्यता है कि देवताओं का एक दिन पृथ्वीवासियों के 1 साल के बराबर होता है। इसलिए हर 12 साल पर कुंभ मेला लगता है।
हरिद्वार। 11 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन हरिद्वार कुंभ का पहला शाही स्नान होगा। इसके साथ ही डेढ़ महीने से ज्यादा चलने वाले इस मेले की शुरुआत होगी। इस दौरान चार शाही स्नान होंगे। कोरोना के चलते इस बार के कुंभ में कई बदलाव दिखाई देंगे। अगर आप इस कुंभ में जाना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करना होगा। आइये जानते हैं ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन से कुंभ स्नान तक इस बार क्या अलग होगा और आपको क्या करना होगा?
कुंभ मेले में जाने के लिए सबसे पहले आपको रजिस्ट्रेशन करना होगा। इसके लिए आप www.haridwarkumbhmela2021.com और देहरादून स्मार्ट सिटी लिमिटेड की वेबसाइट पर जा सकते हैं। इनमें से किसी एक पर जाकर रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है। रजिस्ट्रेशन करते वक्त यात्रा की वजह और माध्यम बताना होगा। फिर यात्री की कैटेगरी बताना होगा। किस राज्य के किस शहर से आ रहे हैं, उत्तराखंड में कहां जाएंगे, वह भी बताना होगा। अपना पूरा नाम, पता, साथ के यात्रियों की संख्या, कोरोना टेस्ट की डिटेल बताने के साथ ही कोई एक पहचान पत्र भी अपलोड करना होगा।
कुंभ में कैसे जा सकते हैं?
भीड़ ज्यादा नहीं हो, इसलिए सरकार की ओर से कोई मेला स्पेशल बस या ट्रेन नहीं चलाई जा रही है। अगर कोई प्राइवेट ऑपरेटर मेला स्पेशल बस चलाता है तो उसे पहले उत्तराखंड सरकार से अनुमति लेनी होगी। अगर कोई अपने साधन या सामान्य तौर पर चलने वाली ट्रेन, बस आदि से हरिद्वार आता है और मेला क्षेत्र में जाना चाहता है तो उसके पास कोरोना के RT-PCR टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट होनी चाहिए। ये रिपोर्ट 72 घंटे से ज्यादा पुरानी नहीं होनी चाहिए।
विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को भी केंद्र सरकार की गाइडलाइन माननी होगी। जो श्रद्धालु अपना रजिस्ट्रेशन नहीं करवाएंगे, उन्हें मेला क्षेत्र में नहीं जाने दिया जाएगा। हर श्रद्धालु के मोबाइल में आरोग्य सेतु ऐप होना भी जरूरी है। हालांकि मेले में 65 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं, 10 साल से कम उम्र के बच्चों और गंभीर रूप से बीमार लोगों को मेले में नहीं जाने की सलाह दी गई है।
होटल दे रहे काढ़ा, प्राइवेट आरती जैसे ऑफर
कोरोना को देखते हुए हरिद्वार के कई होटल खास ऑफर दे रहे हैं। गंगा के किनारे बने होटलों ने स्नान के लिए प्राइवेट घाट और प्राइवेट आरती तक का इंतजाम किया है। होटल में रुकने वालों को पीने के लिए काढ़ा दिया जा रहा है। काढ़ा भी कई तरह के फ्लेवर में मौजूद है। एयरलाइंस कंपनी स्पाइसजेट की कंपनी स्पाइसहेल्थ कुंभ मेले में आने वालों का RT-PCR टेस्ट करा रही है। इसके लिए उत्तराखंड के बॉर्डर पर 5 जगह कैंप लगाए गए हैं। इसके लिए कंपनी ने हरिद्वार में भी कई जगह मोबाइल लैब लगाई है।
मेले में रहने के दौरान ई-पास जरूरी
कुंभ मेला क्षेत्र में रहने के दौरान आपके पास ई-पास होना जरूरी है। ये ई-पास आपको कुंभ में आने से पहले बनवाना होगा। इसके लिए अपना मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट राज्य सरकार की वेबसाइट पर अपलोड करना होगा। इसके बाद ही कुंभ के लिए ई-पास और ई-परमिट जारी किया जाएगा। मेले में कभी भी सरकारी अधिकारी ई-पास की जांच कर सकते हैं।
मेले में जिन स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स की ड्यूटी लगाई गई है, उन सभी को कोरोना वैक्सीन लगाई जा चुकी है। उत्तराखंड के चीफ सेक्रेटरी ओम प्रकाश कहते हैं कि इसके लिए केंद्र की ओर से वैक्सीन के 1 लाख से ज्यादा डोज मिले। ऐसे कर्मचारी जिन्हें कोई गंभीर बीमारी है, उन्हें ऐसी ड्यूटी पर नहीं लगाया जाएगा जिसमें वो पब्लिक के डायरेक्ट कॉन्टेक्ट में आएं। वहीं, मेले में आने वाले हर श्रद्धालु को अपना रजिस्ट्रेशन करना होगा।
कब-कब होंगे शाही स्नान?
पहला शाही स्नान 11 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन होगा। दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या के दिन है तो तीसरा 14 अप्रैल को मेष संक्रांति और बैसाखी के दिन है। चौथा और अंतिम शाही स्नान चैत्र पूर्णिमा के दिन 27 अप्रैल को होगा। किसी भी श्रद्धालु को पवित्र स्नान के लिए केवल 20 मिनट मिलेगा।
कब-कहां और किस स्थिति में होता है कुंभ?
हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज के संगम तट पर कुंभ मेला लगता है। चारों जगह 12 साल में एक बार ये मेला लगता है। मेला कब लगेगा, ये ज्योतिष की गणना से तय होता है।
- हरिद्वार में यह मेला तब आयोजित होता है, जब सूर्य मेष राशि में और गुरु कुंभ राशि में होता है।
- इलाहाबाद (प्रयाग) में यह मेला तब आयोजित होता है, जब सूर्य मकर राशि में और गुरु वृष राशि में होता है।
- नासिक में तब आयोजित होता है, जब गुरु सिंह राशि में प्रवेश करता है। इसके अलावा जब अमावस्या पर कर्क राशि में सूर्य और चन्द्रमा प्रवेश करते हैं, उस समय नासिक में सिंहस्थ का आयोजन होता है।
- उज्जैन में मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के आने पर सिंहस्थ का आयोजन किया जाता है। उज्जैन और नासिक के मेले के समय गुरु सिंह राशि में होता है, इसलिए इस मेले को सिंहस्थ कहा जाता है।
क्यों होता है कुंभ?
कुंभ मेले की मान्यता समुद्र मंथन से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया तो उसमें से अमृत के साथ ही विष भी निकला। सृष्टि के भले के लिए भगवान शिव ने विष पी लिया, लेकिन अमृत के लिए देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष शुरू हो गया। समुद्र से अमृत कलश लेकर निकले धन्वंतरि उसे लेकर आकाश मार्ग से भागे, ताकि दानव उनसे अमृत कलश ना छीन पाएं। इस दौरान प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में अमृत की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं।
जिन चार जगहों पर अमृत की बूंदें गिरीं, वहां कुंभ का आयोजन होता है। देवताओं और दानवों के बीच ये संघर्ष 12 दिन तक चला था। ऐसी मान्यता है कि देवताओं का एक दिन पृथ्वीवासियों के 1 साल के बराबर होता है। इसलिए हर 12 साल पर कुंभ मेला लगता है।
हरिद्वार कुंभ 2021 का पहला शाही स्नान गुरुवार, 11 मार्च को होगा। इस दिन महाशिवरात्रि रहेगी। भारत रत्न मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित श्री गंगा सभा के अनुसार उत्तराखंड सरकार ने सभी प्रमुख अखाड़ों से चर्चा के बाद हरिद्वार कुंभ 2021 के शाही स्नान और प्रमुख स्नान की तारीखें घोषित कर दी हैं।
शाही स्नान के दिन – गुरुवार, 11 मार्च 2021 महाशिवरात्रि, सोमवार, 12 अप्रैल सोमवती अमावस्या, बुधवार, 14 अप्रैल मेष संक्रांति और वैशाखी, मंगलवार, 27 अप्रैल चैत्र माह की पूर्णिमा।
प्रमुख स्नान के दिन – गुरुवार, 14 जनवरी 2021 मकर संक्रांति, गुरुवार, 11 फरवरी मौनी अमावस्या, मंगलवार, 16 फरवरी बसंत पंचमी, शनिवार, 27 फरवरी माघ पूर्णिमा, मंगलवार, 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (हिन्दी नववर्ष), बुधवार, 21 अप्रैल राम नवमी।
कुंभ से जुड़ी प्राचीन मान्यता
कुंभ के संबंध में समुद्र मंथन की कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक बार महर्षि दुर्वासा के शाप की वजह से स्वर्ग श्रीहीन यानी स्वर्ग से ऐश्वर्य, धन, वैभव खत्म हो गया था। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। विष्णुजी ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा, अमृत पान से सभी देवता अमर हो जाएंगे। देवताओं ने ये बात असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। इस मंथन में वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया था।
समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले थे। इन रत्नों में कालकूट विष, कामधेनु, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, महालक्ष्मी, वारुणी देवी, चंद्रमा, पारिजात वृक्ष, पांचजन्य शंख, भगवान धनवंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले थे।
जब अमृत कलश निकला तो सभी देवता और असुर उसका पान करना चाहते थे। अमृत के लिए देवताओं और दानवों में युद्ध होने लगा। इस दौरान कलश से अमृत की बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं। ये युद्ध 12 वर्षों तक चला था, इसलिए इन चारों स्थानों पर हर 12-12 वर्ष में एक बार कुंभ मेला लगता है। इस मेले में सभी अखाड़ों के साधु-संत और सभी श्रद्धालु यहां की पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।