अगले दलाई लामा को क्यों खुद चुनना चाहता है चीन, जानिए लामा बनने की पूरी प्रक्रिया

चीन का कहना है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का फैसला पूरी तरह से चीन के भीतर होना चाहिए. चीन ने धमकी भी दी है कि अगर इस प्रक्रिया में भारत दखल देगा तो इसका प्रभाव द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ेगा.

नई दिल्ली: दलाई लामा के चयन को लेकर एकबार फिर बहस जारी है. चीन ने एक बार फिर धौंस दिखाने की कोशिश की है. चीन ने कहा है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर कोई भी निर्णय चीन के भीतर होना चाहिए. साथ ही उसने इस बात पर भी जोर दिया है कि इस मुद्दे पर भारत के किसी प्रकार के दखल का असर द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ेगा. चीन की साम्यवादी सरकार का यह कहना है कि पुर्नजन्म के सिद्धांत पर दलाई लामा चुनना बिल्कुल ढकोसला और बकवास है. दलाई लामा वही होगा जिसे चीन की सरकार चुनेगी.

 

तिब्बत में चीन के अधिकारी वांग नेंग शेंग ने कहा- दलाई लामा का अवतार लेना एक ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनीतिक मुद्दा है. साथ ही, उनके उत्तराधिकारी का चयन 200 साल पुरानी ऐतिहासिक प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया को चीनी सरकार द्वारा स्वीकृति दी जानी चाहिए.” उन्होंने कहा- दलाई लामा के पुनर्जन्म का निर्णय किसी की निजी इच्छाओं या अन्य देशों में रह रहे कुछ लोगों के समूहों द्वारा नहीं लिया जाना चाहिए. वर्तमान दलाई लामा को चीन के द्वारा मान्यता दी गई थी और उनके उत्तराधिकारी को चीन के अंदर से ही खोजा जाना चाहिए.

 

वहीं बीजिंग में सरकार द्वारा संचालित प्रभावी थिंक टैंक ‘चाइना तिब्बतोलॉजी रिसर्च सेंटर’ के निदेशक झा ल्यू ने वांग के विचारों से सहमति जताते हुए कहा कि चीन के अंदर चुने गए अगले दलाई लामा को मान्यता नहीं देने के भारत के किसी भी प्रकार के इनकार का असर द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ेगा.

 

दरअसल तिब्बत संकट की शुरुआत 1951 से हुई. आजाद तिब्बत पर चीन ने हजारों सैनिकों को भेजकर कब्जा कर लिया था. चीनी कब्जे के बाद तेनजिन ग्यात्सो को 14वें दलाई लामा के तौर पर पद पर बैठाया गया. फिर तिब्बत के 14वें दलाई लामा 1959 में भागकर भारत आ गए थे. भारत ने उन्हें राजनीतिक शरण दी थी और तब से वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रह रहे हैं. अब वह 84 साल के हैं और उनके स्वास्थ्य मुद्दों को देखते हुए पिछले कुछ सालों से उनके उत्तराधिकारी के चयन का मुद्दा गरमाया हुआ है.

 

कैसे होता है दलाई लामा का चयन

 

तिब्बती समुदाय के अनुसार लामा, ‘गुरु’ शब्द का मूल रूप ही है. एक ऐसा गुरु जो सभी का मार्गदर्शन करता है. लेकिन यह गुरु कब और कैसे चुना जाएगा, इन नियमों का पालन आज भी किया जाता है. बता दें कि लामा चुने जाने की पूरी प्रक्रिया होती है.

 

दरअसल लामा गुरु अपने जीवनकाल के समाप्त होने से पहले कुछ ऐसे संकेत देते हैं जिनसे अगले लामा गुरु की खोज की जाती है. उनके शब्दों को समझते हुए उस नवजात की खोज की जाती है जिसे अगला लामा गुरु बनाया जाएगा. खोज की शुरुआत लामा के निधन के तुरंत बाद होती है.बौद्ध धर्म के अनुयायी मानते हैं कि वर्तमान दलाई लामा पहले के दलाई लामाओं के ही अवतार हैं यानी कि उनका ही पुनर्जन्म होते हैं.

 

नए दलाई लामा को चुने जाने के लिए उन बच्चों की खोज की जाती है जिनका जन्म पिछले लामा के देहांत के आसपास हुआ होता है. यह खोज कई बार दिनों में खत्म होने की बजाय सालों तक भी चलती है. तब तक किसी स्थाई विद्वान को लामा गुरु का काम संभालना होता है. कई बार कई बच्चों की कठिन शारीरिक और मानसिक परीक्षाएं ली जाती हैं, जिसमें पूर्वलामा की व्यक्तिगत वस्तुओं की पहचान शामिल है.

 

इससे पहले मौजूदा दलाई लामा ऐसी इच्छा जता चुके हैं कि वह परंपरा को तोड़ते हुए अपना उत्तधराधिकारी अपनी मौत से पहले ही या तिब्बत के बाहर निर्वासितों में से चुनेंगे. उन्होंने चुनाव के जरिए दलाई लामा चुनने का विकल्प भी खुला रखा है. अगर वर्तमान दलाई लामा खुद अपना उत्तराधिकारी चुनते हैं तो यह प्रथा से अलग होगा.

 

कैसे चुने गए थे 14वें दलाई लामा

 

शीर्ष धर्मगुरुओं के एक समूह ने पिछले दलाई लामा की मौत के समय ही जन्मे एक बच्चे की खोज में ग्रामीण तिब्बत की काफ़ी ख़ाक छानी थी और तब जा कर वर्तमान दलाई लामा को ढूंढ़ा था. एक बच्चे के रूप मे उन्होंने पिछले दलाई लामा की तसबीह और अवशेषों को सफलता पूर्वक पहचान लिया था. असल में चीनी हस्तक्षेप से बचने के लिए ही दलाई लामा ने इस तरह के क़दम के बारे में सोचा है. जब उन्होंने तिब्बती धर्म में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति पंचम लामा के लिए छह वर्ष के बच्चे को चुना था तो चीन ने उसे क़ैद कर लिया और फिर उसके बदले तिब्बत में चीनी सत्ता के समर्थक व्यक्ति को चुन लिया था. दलाई लामा कई बार कह चुके हैं कि अगर उनका पुनर्जन्म होता है तो वह चीन शासित प्रदेश या किसी ऐसी जगह पर नहीं होगा जो स्वतंत्र नहीं है.

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