गणेश चतुर्थी (Ganesha Chaturthi) हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इसे विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता श्री गणेश का जन्म हुआ था. इस पर्व को देश भर में खास तौर से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में हर्षोल्लास, उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है.
यह त्योहार पूरे 10 दिनों तक मनाया जाता है. श्री गणेश के जन्म का यह उत्सव गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है. गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के दिन भक्त प्यारे बप्पा (Ganpati Bappa) की मूर्ति को घर लाकर उनका सत्कार करते हैं. फिर 10वें दिन यानी कि अनंत चतर्दशी (Ananta Chaturdashi) को विसर्जन के साथ मंगलमूर्ति भगवान गणेश को विदाई जाती है. साथ ही उनसे अगले बरस जल्दी आने का वादा भी लिया जाता है.
गणेश चतुर्थी कब मनाई जाती है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद यानी कि भादो माह की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था. उनके जन्मदिवस को ही गणेश चतुर्थी कहा जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में आता है. इस बार गणेश चतुर्थी 02 सितंबर को है.
गणेश चतुर्थी को दिन में अपराह्न 3 बजकर 15 मिनट से पहले गणेश विग्रह की विधिवत स्थापना कर लें. इसके उपरांत भद्रा लग जाएगी. भद्रा रात्रि 1 बजकर 53 मिनट तक रहेगी.
दोपहर में अभिजित मुहूर्त गणेश पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ है. इसका समय 11 बजकर 5 मिनट से दोपहर 1 बजकर 36 मिनट तक है. सपरिवार भगवान विनायक के विग्रह का षोडशोपचार से पूजन करें. मोदकों का भोग लगाएं. पट्टी-पुस्तक का पूजन करें. तत्पश्चात् सौभाग्यवती माताएं हरितालिका व्रत और गणेश चतुर्थी के व्रत को पूर्ण करें.
विनायक चतुर्थी भोर में 4 बजकर 56 मिनट पर आरंभ होकर रात्रि 1 बजकर 53 मिनट तक रहेगी. जो व्रती प्रत्येक विनायक और संकष्टी चतुर्थी के व्रत रखते हैं, वे गणेश चतुर्थी का व्रत अगले दिन पूर्ण कर सकते हैं. चंद्रदर्शन और पूजन इस दिन निषिद्ध रहता है. ऐसे में वे व्रत को दोपहर की पूजा के बाद भी पूर्ण कर सकते हैं.
यह एकमात्र ऐसी चतुर्थी होती है जिसमें चंद्रमा को अर्घ्य देने और दर्शन करने से बचा जाता है. गणेश चतुर्थी को चंद्रदर्शन अकारण के आरोप और आक्षेप लगने का कारक माना जाता है. जानबूझकर चंद्रदर्शन से बचें. भूलवश देख लें तो एक छोटी सी कंकरी उठाकर दूर फेंक दें. इससे दोष का परिहार हो जाएगा.
सबसे कठिन व्रतों में से एक हरितालिका व्रत के अगले दिन गणेश चौथ आती है. श्रेष्ठ संतान और परिवार के सुख के लिए माताएं हरितालिका व्रत में निराहार निर्जला रहती हैं. रात्रि में जागरण और पार्वती-महादेव की पूजा करती हैं. ब्रह्म मुहूर्त में शिव-गौरी की आरती पूजन और विसर्जन कर गणेश पूजन की तैयारी करती हैं.
गणेश चतुर्थी की तिथि और स्थापना का शुभ मुहूर्त
गणेश चतुर्थी की तिथि: 02 सितंबर 2019
गणेश चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 02 सितंबर 2019 को सुबह 4 बजकर 57 मिनट से.
गणेश चतुर्थी तिथि समाप्त: 03 सितंबर 2019 की रात 01 बजकर 54 मिनट तक.
गणपति की स्थापना और पूजा का समय: 02 सितंबर की सुबह 11 बजकर 05 मिनट से दोपहर 01 बजकर 36 मिनट तक.
अवधि: 2 घंटे 31 मिनट
02 सितंबर को चंद्रमा नहीं देखने का समय: सुबह 08 बजकर 55 मिनट से रात 09 बजकर 05 मिनट तक
अवधि: 12 घंटे 10 मिनट.
कैसे करें गणपति की स्थापना?
गणपति की स्थापना गणेश चतुर्थी के दिन मध्याह्न में की जाती है. मान्यता है कि गणपति का जन्म मध्याह्न काल में हुआ था. साथ ही इस दिन चंद्रमा देखना वर्जित है. गणपति की स्थापना की विधि इस प्रकार है:
– आप चाहे तो बाजार से खरीदकर या अपने हाथ से बनी गणपति बप्पा की मूर्ति स्थापित कर सकते हैं.
– गणपति की स्थापना करने से पहले स्नान करने के बाद नए या साफ धुले हुए बिना कटे-फटे वस्त्र पहनने चाहिए.
– इसके बाद अपने माथे पर तिलक लगाएं और पूर्व दिशा की ओर मुख कर आसन पर बैठ जाएं.
– आसन कटा-फटा नहीं होना चाहिए. साथ ही पत्थर के आसन का इस्तेमाल न करें.
– इसके बाद गणेश जी की प्रतिमा को किसी लकड़ी के पटरे या गेहूं, मूंग, ज्वार के ऊपर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें.
– गणपति की प्रतिमा के दाएं-बाएं रिद्धि-सिद्धि के प्रतीक स्वरूप एक-एक सुपारी रखें.
गणेश चतुर्थी की पूजन विधि
गणपति की स्थापना के बाद इस तरह पूजन करें:
– सबसे पहले घी का दीपक जलाएं. इसके बाद पूजा का संकल्प लें.
– फिर गणेश जी का ध्यान करने के बाद उनका आह्वन करें.
– इसके बाद गणेश को स्नान कराएं. सबसे पहले जल से, फिर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) और पुन: शुद्ध जल से स्नान कराएं.
– अब गणेश जी को वस्त्र चढ़ाएं. अगर वस्त्र नहीं हैं तो आप उन्हें एक नाड़ा भी अर्पित कर सकते हैं.
– इसके बाद गणपति की प्रतिमा पर सिंदूर, चंदन, फूल और फूलों की माला अर्पित करें.
– अब बप्पा को मनमोहक सुगंध वाली धूप दिखाएं.
– अब एक दूसरा दीपक जलाकर गणपति की प्रतिमा को दिखाकर हाथ धो लें. हाथ पोंछने के लिए नए कपड़े का इस्तेमाल करें.
– अब नैवेद्य चढ़ाएं. नैवेद्य में मोदक, मिठाई, गुड़ और फल शामिल हैं.
– इसके बाद गणपति को नारियल और दक्षिण प्रदान करें.
– अब अपने परिवार के साथ गणपति की आरती करें. गणेश जी की आरती कपूर के साथ घी में डूबी हुई एक या तीन या इससे अधिक बत्तियां बनाकर की जाती है.
– इसके बाद हाथों में फूल लेकर गणपति के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करें.
– अब गणपति की परिक्रमा करें. ध्यान रहे कि गणपति की परिक्रमा एक बार ही की जाती है.
– इसके बाद गणपति से किसी भी तरह की भूल-चूक के लिए माफी मांगें.
– पूजा के अंत में साष्टांग प्रणाम करें.
भगवान गणेश की जन्म कथा
भगवान गणेश के जन्म को लेकर कथा प्रचलित है कि देवी पार्वती ने एक बार शिव के गण नंदी के द्वारा उनकी आज्ञा पालन में त्रुटि के कारण अपने शरीर के मैल और उबटन से एक बालक का निर्माण कर उसमें प्राण डाल दिए और कहा, “तुम मेरे पुत्र हो. तुम मेरी ही आज्ञा का पालन करना और किसी की नहीं. हे पुत्र! मैं स्नान के लिए भोगावती नदी जा रही हूं. कोई भी अंदर न आने पाए.” कुछ देर बाद वहां भगवान शंकर आए और पार्वती के भवन में जाने लगे. यह देखकर उस बालक ने उन्हें रोकना चाहा, बालक हठ देख कर भगवान शंकर क्रोधित हो गए. इसे उन्होंने अपना अपमान समझा और अपने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर भीतर चले गए.
स्वामी की नाराजगी का कारण पार्वती समझ नहीं पाईं. उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर भगवान शिव को आमंत्रित किया. तब दूसरी थाली देख शिव ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “यह किसके लिए है?” पार्वती बोलीं, “यह मेरे पुत्र गणेश के लिए है जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है. क्या आपने आते वक्त उसे नहीं देखा?”
कहते तो यह भी हैं कि भगवान शंकर के कहने पर विष्णु जी एक हाथी (गज) का सिर काट कर लाए थे और वह सिर उन्होंने उस बालक के धड़ पर रख कर उसे जीवित किया था. भगवान शंकर व अन्य देवताओं ने उस गजमुख बालक को अनेक आशीर्वाद दिए. देवताओं ने गणेश, गणपति, विनायक, विघ्नहरता, प्रथम पूज्य आदि कई नामों से उस बालक की स्तुति की.
इस प्रकार भगवान गणेश का प्राकट्य हुआ. ब्रह्मवैवर्तपुराण में इस होनी के पीछे का कारण बताया गया है. पुराण के अनुसार शिव-पार्वती को पुत्र प्राप्ति की खबर सुनकर शनिदेव उनके घर आए. वहां उन्होंने अपना सिर नीचे की ओर झुका रखा था. यह देखकर पार्वती जी ने उनसे सवाल किया, “क्यों आप मेरे बालक को नहीं देख रहे हो?”
यह सुनकर शनिदेव बोले, “माते! मैं आपके सामने कुछ कहने लायक नहीं हूं लेकिन यह सब कर्मों के कारण है. मैं बचपन से ही श्री कृष्ण का भक्त था. मेरे पिता चित्ररथ ने मेरा विवाह कर दिया, वह सती-साध्वी नारी छाया बहुत तेजस्विनी, हमेशा तपस्या में लीन रहने वाली थी. एक दिन वह ऋतु स्नान के बाद मेरे पास आई. उस समय मैं ध्यान कर रहा था. मुझे ब्रह्मज्ञान नहीं था. उसने अपना ऋतुकाल असफल जानकर मुझे शाप दे दिया. तुम अब जिसकी तरफ दृष्टि करोगे वह नष्ट हो जाएगा इसलिए मैं हिंसा और अनिष्ट के डर से आपके और बालक की तरफ नहीं देख रहा हूं.”
यह सुनकर माता पार्वती के मन में कौतूहल हुआ. उन्होंने शनिदेव से कहा, “आप मेरे बालक की तरफ देखिए. वैसे भी कर्मफल के भोग को कौन बदल सकता है? तब शनि ने बालक के सुंदर मुख की तरफ देखा और उसी शनिदृष्टि से उस बालक का मस्तक आगे जाकर उसके शरीर से अलग हो गया. माता पार्वती विलाप करने लगीं. यह देखकर वहां उपस्थित सभी देवता, देवियां, गंधर्व और शिव आश्चर्यचकित रह गए.
देवताओं की प्रार्थना पर श्रीहरि गरुड़ पर सवार होकर उत्तर दिशा की ओर गए और वहां से एक हाथी (गज) का सिर लेकर आए. सिर बालक के धड़ पर रखकर उसे जोड़ दिया. तब से भगवान गणेश गजमुख हो गए.
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार एक बार नारद जी ने श्री नारायण से पूछा कि प्रभु आप बहुत विद्वान हैं और सभी वेदों को जानने वाले हैं. मैं आप से यह जानना चाहता हूं कि जो भगवान शंकर सभी परेशानियों को दूर करने वाले माने जाते हैं उन्होंने क्यों अपने पुत्र गणेश के मस्तक को काट दिया. पार्वती के अंश से उत्पन्न हुए पुत्र का सिर्फ एक ग्रह की दृष्टि के कारण मस्तक कट जाना बहुत आश्चर्य की बात है.
श्री नारायण ने कहा, “नारद एक समय की बात है. भगवान शंकर ने माली और सुमाली को मारने वाले सूर्य पर त्रिशूल से प्रहार किया. सूर्य भी शिव के समान तेजस्वी और शक्तिशाली थे इसलिए त्रिशूल की चोट से सूर्य की चेतना नष्ट हुई. जब कश्यप जी ने देखा कि मेरा पुत्र मरने की अवस्था में है. तब वह उसे छाती से लगाकर फूट-फूट कर विलाप करने लगे. देवताओं में हाहाकार मच गया. वे सभी भयभीत होकर जोर-जोर से रुदन करने लगे. सारे जगत में अंधेरा हो गया. तब ब्रह्मा के पौत्र तपस्वी कश्यप जी ने शिव जी को शाप दिया, “जैसा आज तुम्हारे प्रहार के कारण मेरे पुत्र का हाल हो रहा है, ठीक वैसे ही तुम्हारे पुत्र पर भी होगा. तुम्हारे पुत्र का मस्तक कट जाएगा.”
तब तक भोलेनाथ का क्रोध शांत हो चुका था. उन्होंने सूर्य को फिर से जीवित कर दिया. सूर्य कश्यप जी के सामने खड़े हो गए. जब उन्हें कश्यप जी के शाप के बारे में पता चला तो उन्होंने सभी का त्याग करने का निर्णय लिया. भगवान ब्रह्मा सूर्य के पास पहुंचे और उन्हें उनके काम पर नियुक्त किया. ब्रह्मा, शिव और कश्यप आनंद से सूर्य को आशीर्वाद देकर अपने-अपने भवन चले गए. इधर, सूर्य भी अपनी राशि पर आरूढ़ हुए. इसके बाद माली और सुमाली को सफेद कोढ़ हो गया जिससे उनका प्रभाव नष्ट हो गया. तब ब्रह्मा ने उन्हें कहा, “सूर्य के कोप से तुम दोनों का तेज खत्म हो गया है. तुम्हारा शरीर खराब हो गया है. तुम सूर्य की आराधना करो.” उन दोनों ने सूर्य की आराधना शुरू की और फिर से निरोगी हो गए.