कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद बोले रमेश कुमार- ‘अगर मुझसे कोई गलती हुई हो तो…’

कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर केआर रमेश कुमार ने इस्तीफा देने के बाद कहा कि 'मेरे 14 महीनों के अध्यक्ष पद के कार्यकाल में सहयोग करने के लिए मैं सभी सदस्यों को धन्यवाद देता हूं.' अगर मेरे कार्यकाल के दौरान मुझसे कोई गलती हुई हो तो मुझे माफ़ कर देना.

बेंगलुरु : कर्नाटक विधानसभा में मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के विश्वासमत हासिल करने के ठीक बाद स्पीकर केआर रमेश कुमार ने इस्तीफा दे दिया. सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष चुने गए रमेश कुमार 14 महीनों तक पद पर रहे. इस्तीफा देने के बाद रमेश कुमार ने सदन में कहा, ‘मैं व्यक्तिगत कारणों से विधानसभा अध्यक्ष के सम्मानित पद से इस्तीफा दे रहा हूं. मेरे 14 महीनों के अध्यक्ष पद के कार्यकाल में सहयोग करने के लिए मैं सभी सदस्यों को धन्यवाद देता हूं.’

 

कोलार विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक ने कहा, ‘मैं व्यक्तिगत कारणों से राज्य विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में इस पद से इस्तीफा दे रहा हूं. मैं इस कुर्सी पर 14 महीने के लंबे कार्यकाल में मेरे साथ सहयोग करने के लिए सभी सदस्यों को धन्यवाद देता हूं.’ 70 वर्षीय स्पीकर ने सदन में कहा कि ‘अगर मुझसे कोई गलती हुई हो तो मुझे माफ़ कर देना. कृपया इसे व्यक्तिगत रूप से न लें.’ इसके बाद वह सदन से बाहर चले गए.

इस्तीफा देने से पहले उन्होंने विधानसभा में कार्यवाही की अध्यक्षता की, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा द्वारा विश्वास प्रस्ताव पेश करना, ध्वनि मत से उसे साबित करना और वित्त वर्ष 2019-20 के लिए राज्य के बजट का वित्त विधेयक पेश करना शामिल है. रमेश कुमार ने कहा, ‘मुझे कांग्रेस के दिग्गज नेता जयपाल रेड्डी के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए हैदराबाद जाना है, जिनका रविवार को निधन हो गया है.’

उन्होंने कहा, ‘जनता दल-सेकुलर (जद-एस) पार्टी के विधायक व विधानसभा उपाध्यक्ष कृष्णा रेड्डी को पद की जिम्मेदारी सौंप कर मैं सभी सदस्यों से सदन से जाने की अनुमति मांगता हूं.’ हालांकि दक्षिणी राज्य में आए राजनीतिक संकट के दौरान रमेश कुमार विधानसभा के अंदर और बाहर अपने आचरण के लिए पूरे महीने सुर्खियों में रहे. 25 जुलाई और 28 जुलाई को कांग्रेस और जद-एस के 17 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने के उनके फैसले ने उन्हें विवादास्पद बना दिया. बागी विधायकों और भाजपा ने उनके निर्णय की आलोचना करते हुए उनके निर्णय को एक-तरफा, नीति के खिलाफ और संविधान की भावना, विशेष रूप से 10वीं अनुसूची के प्रावधान और दल-बदल कानून के खिलाफ बताया.

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