उतराखंड: नैनीताल में एक ट्रॉली में नदी पार करने वाले दानीजेला गांव के स्कूली बच्चे। यहां मानसून के दौरान, जल स्तर बढ़ जाता है और पानी का बहाव बहुत तेज होता है। हम ट्रॉली में नदी पार करते हैं लोग। स्थानीय लोगों ने पक्का पुल बनाने के लिए सरकार से कई बार अनुरोध किया लेकिन इसकी तरफ आज तक ध्यान नहीं दिया गया है। डीएम का कहना है, “सरकार द्वारा स्वीकृत किए नए पुलों को बनाने के लिए फंड प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं व सरकार को मामले से अवगत करवाया गया है। समस्या का जल्द हल निकाल दिया जाएगा।
U'khand: Locals of Danijela village in Nainital cross river in a trolley, set up by themselves. Say "During monsoon, water level rises¤t is very swift. We cross river in trolley. Request govt for bridge." DM(pic 4)says, "Efforts on to get new bridges approved by govt"(20.7) pic.twitter.com/eVR10YLUFa
— ANI (@ANI) July 21, 2019
पटना। बिहार में बाढ़ की स्थिती लगातार विकराल होती जा रही है. बाढ़ के तांडव में राज्यभर में अब तक 177 लोगों की मौत हो गई हैं और मौत का यह आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. हालांकि आधिकारिक आंकड़े जस के तस बने हुए हैं. आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक बाढ़ से मरने वालों की संख्या 97 हो गई है.
वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को बाढ़ की स्थिती का जायजा लिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ग्रस्त इलाकों का हवाई सर्वेक्षण किया. नीतीश कुमार, हवाई दौरे के चौथे दिन रविवार को सीतामढ़ी और दरभंगा जिले में बाढ़ की विभीषिका का जायजा लिया.
मुख्यमंत्री बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में चल रहे राहत सामग्री वितरण का भी लगातार मॉनिटरिंग कर रहे हैं. इस आपदा के समय में जल संसाधन मंत्री संजय झा अपने क्षेत्र दरभंगा-मधुबनी में कैंप कर रहे हैं. मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों विधानसभा में आश्वस्त करते हुए कहा था कि बाढ़ प्रभावित लोगों को परेशानियों से निजात दिलाएंगे. इसी क्रम में मुख्यमंत्री लगातार बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के हवाई दौरे पर हैं. यहां बता दें कि राज्य के 12 जिले के 1123 पंचायत बाढ़ग्रस्त हैं, जबकि 69 लाख से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हैं.
बाढ़ से पूर्वी चंपारण में सबसे ज्यादा अब तक 46 लोगों की मौत हुई है, जबकि सीतामढ़ी में इससे 30 और मधुबनी में 18 लोगों की जान गई है. अररिया, पूर्णिया और कटिहार इन तीनों जगहों पर बाढ़ से 14-14 लोग मरे हैं जबकि शिवहर में 11 लोगों के मरने की खबर है.
#Assam: Indian Army Unit of Red Horns Division along with the representatives from Veterinary Field Hospital, District Veterinary & Health Services organised a veterinary & Medical Camp in flood-affected Helacha village, in Nalbari district, today. pic.twitter.com/8NxseEbLOP
— ANI (@ANI) July 21, 2019
बिहार का पूर्वी चंपारण जिला बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित है. इसके अलावा शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, अररिया, किशनगंज, सुपौल, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, सहरसा, कटिहार और पूर्णिया में भी बाढ़ की स्थिती भयावह ही बनी हुई है.
Gurugram: Severe water-logging near IFFCO Chowk, following heavy rainfall in the city. pic.twitter.com/NdR7zrnYFq
— ANI (@ANI) July 21, 2019
असल में बाढ़ की समस्या वैसे तो सभी क्षेत्रों में है लेकिन मुख्य समस्या गंगा के उत्तरी किनारे वाले क्षेत्र में है। गंगा बेसिन के इलाके में गंगा के अलावा यमुना, घाघरा, गंडक, कोसी, सोन और महानंदा आदि प्रमुख नदियां हैं जो मुख्यतः उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार सहित मध्य एवं दक्षिणी बंगाल में फैली हैं। इनके किनारे घनी आबादी वाले शहर बसे हैं। इस सारे इलाके की आबादी अब 40 करोड़ से भी ऊपर पहुंच गई है और यहां की आबादी का घनत्व 500 व्यक्ति प्रति किमी का आंकड़ा पार कर चुका है।
Manipur: National Disaster Response Force have recovered bodies of two children who drowned in a river around Mahabali Temple area in Imphal yesterday. pic.twitter.com/DNKX3t7LrS
— ANI (@ANI) July 21, 2019
उसका परिणाम है कि आज नदियों के प्रवाह क्षेत्र पर दबाव बेतहाशा बढ़ रहा है, उसके ‘बाढ़ पथ’ पर रिहायशी कॉलोनियों का जाल बिछता जा रहा है, नदी किनारे एक्सप्रेस वे व दिल्ली में यमुना किनारे खेलगांव का निर्माण इसका सबूत है कि सरकारें भी इस दिशा में कितनी संवेदनशील हैं। इसमें दोराय नहीं कि हिमालय से निकलने वाली वह चाहे गंगा हो, सिंध हो, ब्रह्मपुत्र हो या उसकी सहायक नदी, उनके उद्गम क्षेत्रों की पहाड़ी ढलानों की मिट्टी को बांधकर रखने वाले जंगल विकास के नाम पर जिस तेजी से काटे गए, वहां बहुमंजिली इमारतें रूपी कंक्रीट के जंगल, कारखाने और सड़कों के जाल बिछा दिए गए, विकास का यह रथ वहां आज भी निर्बाध गति से जारी है।
Delhi: Rain lashes parts of the city; #Visuals from ITO. #DelhiRains pic.twitter.com/RFjui1N4OM
— ANI (@ANI) July 21, 2019
नतीजतन, इन ढलानों पर बरसने वाला पानी बारहमासी झरनों के माध्यम से जहां बारह महीनों इन नदियों में बहता था, अब वह ढलानों की मिट्टी और अन्य मलबे आदि को लेकर मिनटों में ही बह जाता है और अपने साथ वहां बसायी बस्तियों को खेतों के साथ बहा ले जाता है। दरअसल इससे नदी घाटियों की ढलानें नंगी हो जाती है। उसके दुष्परिणाम स्वरूप भूस्खलन, भूक्षरण, बाढ़ आती है और बांधों में साद का जमाव दिन-ब-दिन बढ़ता जाता है।
#WATCH Parts of Pobitora Wildlife Sanctuary in Morigaon flooded, animals affected. #Assam pic.twitter.com/0PPS4OF2N8
— ANI (@ANI) July 21, 2019
जंगलों के कटान के बाद बची झाड़ियां और घास-फूस चारे और जलावन के लिए काट ली जाती है। इसके बाद ढलानों को काट-काट कर बस्तियों, सड़कों का निर्माण व खेती के लिए जमीन को समतल किया जाता है। इससे झरने सूखे, नदियों का प्रवाह घटा और बाढ़ का खतरा बढ़ता चला गया। हर साल दिन-ब-दिन बढ़ता बाढ़ का प्रकोप इसी असंतुलन का नतीजा है।