असम एनआरसी: बीजेपी ने कहा- नाखुश हैं, हम आखिरी लिस्ट पर भरोसा नहीं करते

एनआरसी की अंतिम सूची पर असम बीजेपी ने कहा है कि हम इस एनआरसी पर भरोसा नहीं करते हैं. हम बहुत नाखुश हैं. वहीं ऑल असम स्टुडेंट्स यूनियन (आसू) ने कहा है कि इसमें सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे.

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नई दिल्ली: असम में सत्तारूढ़ बीजेपी ने अंतिम राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) को लेकर नाराजगी जताई है. बीजेपी ने कहा है कि हम इस एनआरसी पर भरोसा नहीं करते हैं. असम बीजेपी के अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने कहा कि एनआरसी की अंतिम सूची में आधिकारिक तौर पर पहले बताये गये आंकड़ों की तुलना में बाहर किये गये लोगों की बहुत छोटी संख्या बताई गई है.

उन्होंने कहा, ‘‘हम इस एनआरसी पर भरोसा नहीं करते हैं. हम बहुत नाखुश हैं….हम केंद्र और राज्य सरकारों से राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी तैयार किये जाने की अपील करेंगे.’’ दास ने कहा कि पार्टी बाहर किये गये लोगों द्वारा विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) में अपील किये जाने की प्रक्रिया और मामलों के फैसलों पर करीबी नजर रखेगी.

 

उन्होंने कहा, ‘‘यदि एफटी वास्तविक भारतीयों के खिलाफ आदेश देते हैं तो हम पूरे 19 लाख मामलों के निस्तारण की प्रतीक्षा नहीं करेंगे. हम कानून लायेंगे और उन्हें सुरक्षित बनाने के लिए काम करेंगे.’’

वहीं असम के वित्त मंत्री और बीजेपी नेता हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि राज्य और केंद्र सरकारों के पहले किए अनुरोध के अनुसार सुप्रीम कोर्ट को सीमावर्ती जिलों में कम से कम 20 प्रतिशत और शेष असम में 10 प्रतिशत पुन: सत्यापन की अनुमति देनी चाहिए.

 

हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा, ”संख्या थोड़ी अधिक होनी चाहिए क्योंकि हमारे पास लिगेसी डेटा हेरफेर के सबूत थे. हमने सोचा कि री वेरिफिकेशन का आदेश दिया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.” उन्होंने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपने मामले को आगे बढ़ाना जारी रखेंगे कि सीमावर्ती जिले में 20% री वेरिफिकेशन का आदेश दिया जाए और शेष असम में 10% री वेरिफिकेशन का आदेश दिया जाए. क्योंकि हमने डेटा में हेरफेर देखा है, हमारे पास स्पष्ट सबूत हैं.

लिस्ट में नहीं है 19 लाख लोगों का नाम
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस माह की शुरुआत में कड़े शब्दों में कहा था कि निश्चित पैमानों के आधार पर एनआरसी की पूरी प्रक्रिया पुन: शुरू नहीं की जा सकती. एनआरसी की अंतिम सूची आज ऑनलाइन जारी की गई. एनआरसी में शामिल होने के लिए 3,30,27,661 लोगों ने आवेदन दिया था. इनमें से 3,11,21,004 लोगों को शामिल किया गया है और 19,06,657 लोगों को बाहर कर दिया गया है.

 

कांग्रेस ने क्या कहा?
एनआरसी की अंतिम सूची आने के बाद कांग्रेस ने शनिवार को कहा कि एनआरसी की मौजूदा स्थिति से राज्य का हर वर्ग नाराज है और देश के वास्तविक नागरिकों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए. एनआरसी की अंतिम सूची आने के बाद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर इस मुद्दे को लेकर बैठक हुई जिसमें पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ नेता शामिल हुए.

 

बैठक के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि देश के वास्तविक नागरिकों के हितों की रक्षा होनी चाहिए. असम से कांग्रेस के लोकसभा सदस्य गौरव गोगोई ने कहा, ” असम का हर वर्ग एनआरसी की स्थिति से नाराज है. बीजेपी के मंत्री शिकायत कर रहे हैं. लापरवाही से क्रियान्वयन के कारण भारत के बहुत सारे वास्तविक नागरिकों को भी अदालतों का सामना करना होगा. कांग्रेस सबकी मदद करेगी. राजनीति से ऊपर देश हमारा लक्ष्य है.’

 

तीन बार मुख्यमंत्री रहे गोगोई ने कहा, ‘‘मैं एनआरसी के प्रकाशित होने के तरीके से भी खुश नहीं हूं जिसमें वास्तविक भारतीय नागरिकों के नाम छूट गये और विदेशी शामिल कर लिये गये.’’

 

पूर्वोत्तर से ताल्लुक रखने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता मुकुल संगमा ने कहा, ”जैसा कि आप सभी जानते हैं कि एनआरसी असम करार के तहत किया जा रहा काम है. हमारी पार्टी का रुख एकदम स्पष्ट है कि वास्तविक भारतीय नागरिकों के हितों की रक्षा होनी चाहिए.”

 

आसू जाएगा सुप्रीम कोर्ट
ऑल असम स्टुडेंट्स यूनियन (आसू) एनआरसी से बाहर रखे गये नामों के आंकड़े से खुश नहीं है और इसमें सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करने का निर्णय किया है. साल 1985 में हुए असम समझौते में आसू एक पक्षकार है जिसमें असम में रह रहे अवैध विदेशियों को पहचानने, हटाने और निकालने का प्रावधान है. असम में एनआरसी का काम सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में किया जा रहा है ताकि केवल वास्तविक भारतीयों को ही शामिल किया जाए.

आसू के महासचिव ल्यूरिनज्योति गोगोई ने कहा, ‘‘हम इससे बिल्कुल खुश नहीं हैं. ऐसा लगता है कि प्रक्रिया में कुछ खामियां हैं. हम मानते हैं कि एनआरसी अपूर्ण है. हम एनआरसी की खामियों को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील करेंगे.’’

 

आसू के अध्यक्ष दीपांकर कुमार नाथ ने दावा किया कि केंद्र और राज्य सरकार के पास अवैध अप्रवासियों का पता लगाने की पर्याप्त गुंजाइश थी लेकिन वह अपनी निष्क्रियता की वजह से असफल रही. नाथ ने दावा करते हुए कहा,‘‘ हमने एनआरसी में नाम दर्ज कराने के लिए केवल 10 दस्तावेजों को ही वैध मानने की मांग की थी लेकिन सरकार ने 15 दस्तावेजों की अनुमति दी. सरकार ने एनआरसी प्रक्रिया में शामिल संदिग्ध अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों को लेकर भी आपत्ति नहीं जताई जिससे उन्हें प्रक्रिया से बाहर किया जा सकता था.’’

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