कोरोना के B.1.617 वैरिएंट से भारत में केस बढ़े, रीइन्फेक्ट भी कर रहा यह वैरिएंट; जानिए वैज्ञानिकों को अब तक इसके बारे में क्या पता चला है

पर जानवरों में हुई छोटी स्टडी कहती है कि यह वैरिएंट गंभीर लक्षण के लिए जिम्मेदार हो सकता है। 5 मई को NIV की वैज्ञानिक प्रज्ञा यादव की एक स्टडी प्री-प्रिंट हुई, जिसमें दावा किया गया है कि अन्य वैरिएंट्स के मुकाबले B.1.617 से इन्फेक्टेड हैमस्टर्स के फेफड़ों में गंभीर असर हुआ है।

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नई दिल्ली। भारत में फरवरी के बाद शुरू हुई दूसरी लहर थमने का नाम ही नहीं ले रही है। करीब दो हफ्ते तक नए केस कम होने के बाद गुरुवार को फिर बढ़ गए। साफ है कि अभी दूसरी लहर का पीक दूर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने पिछले साल अक्टूबर में महाराष्ट्र में सामने आए कोरोना वायरस यानी SARS-CoV-2 के नए वैरिएंट B.1.617 को वैरिएंट्स ऑफ कंसर्न की सूची में शामिल किया है। यानी यह 2019 में चीन के वुहान में मिले ओरिजिनल कोरोना वायरस के मुकाबले अधिक संक्रामक और घातक है।

भारत में पिछले तीन-चार हफ्ते से कोरोना वायरस के मामलों में जिस तरह बढ़ोतरी हुई है, उससे मौतों का आंकड़ा भी ढाई लाख को पार कर चुका है। 50 हजार मौतें तो महज 15 दिन में हो गईं। इसके लिए कोई जिम्मेदार है तो वह नया वैरिएंट ही है। इसे कई जगह इंडियन वैरिएंट भी लिखा और बोला जा रहा है। पर भारत सरकार को इस पर आपत्ति है। उसका कहना है कि WHO की रिपोर्ट में इस वैरिएंट को कोई नाम नहीं दिया गया है, इसे इंडियन वैरिएंट कहना गलत होगा। सच भी है, कोरोना का यह नया वैरिएंट B.1.617 सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के 44 देशों में मिला है। इसी वजह से WHO ने इसे वैरिएंट्स ऑफ इंटरेस्ट (VOI) की श्रेणी से हटाकर वैरिएंट्स ऑफ कंसर्न (VOC) घोषित किया है।

आइए, जानते हैं कि कोरोना के इस नए वैरिएंट के बारे में वैज्ञानिकों ने क्या जानकारी जुटाई है…

क्या कहा है WHO ने?
संगठन ने 11 मई को वीकली रिपोर्ट जारी की। इसमें कहा कि B.1.617 वैरिएंट अब दुनियाभर के लिए चिंता का विषय (वैरिएंट्स ऑफ कंसर्न या VOC) बन गया है। दरअसल, WHO ने वायरस में होने वाले बदलावों पर नजर रखने के लिए ग्लोबल डेटाबेस बनाया है- GISAID, जो सभी के लिए खुला है। इस डेटाबेस में 44 देशों से आए 4,500 जीनोम सीक्वेंस में B.1.617 की पुष्टि हुई है। 5 और देशों ने भी इसकी पहचान की है, पर अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
इस वैरिएंट को तीन सब-लाइनेज में बांटा गया है- B.1.617.1, B.1.617.2 और B.1.617.3, जिसमें शुरुआती दो सबसे खतरनाक हैं। WHO का कहना है कि कई देशों में हाल ही में केस बढ़े हैं तो उसकी वजह यह वैरिएंट्स ही हैं। शुरुआती नतीजे बताते हैं कि भारत में दो वैरिएंट्स B.1.617.1 और B.1.617.2 तेजी से फैल रहे हैं। तीसरे सब-लाइनेज की जीनोम सीक्वेंसिंग में संख्या बहुत कम मिली है।

अब तक वैज्ञानिकों को क्या पता चला है?
दो हफ्ते पहले तक भारत में कई वैरिएंट्स पॉजिटिव केस का कारण बन रहे थे। जीनोमिक डेटा बताता है कि यूके में सबसे पहले नजर आया B.1.1.7 वैरिएंट दिल्ली और पंजाब में सक्रिय था। वहीं, B.1.618 पश्चिम बंगाल में और B.1.617 महाराष्ट्र में केस बढ़ा रहा था।
बाद में B.1.617 ने पश्चिम बंगाल में B.1.618 को पीछे छोड़ दिया और ज्यादातर राज्यों में प्रभावी हो गया है। दिल्ली में भी यह तेजी से बढ़ा है। नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के डायरेक्टर सुजीत सिंह ने 5 मई को दिल्ली में पत्रकारों से कहा था कि केस 3-4 लाख तक पहुंचे तो उसके लिए B.1.617 ही जिम्मेदार है।
WHO के मुताबिक भारत में 0.1% पॉजिटिव सैम्पल की जीनोम सीक्वेंसिंग की गई। ताकि वैरिएंट्स का पता चल सके। अप्रैल 2021 के बाद भारत में सीक्वेंस किए गए सैम्पल्स में 21% केसेज B.1.617.1 के और 7% केसेस B.1.617.2 के थे। यानी केस में बढ़ोतरी के लिए यह जिम्मेदार है।
सोनीपत की अशोका यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट और भारतीय SARS-CoV-2 जीनोम सीक्वेंसिंग कंसोर्टिया (INSACOG) के प्रमुख शाहिद जमील का कहना है कि B.1.617 वैरिएंट्स तेजी से नए केस बढ़ा रहा है क्योंकि यह अन्य के मुकाबले ज्यादा फिट है। वहीं यूके के यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज के वायरोलॉजिस्ट रवींद्र गुप्ता भी कहते हैं कि इस वैरिएंट की ट्रांसमिशन क्षमता सबसे ज्यादा है।

WHO की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दूसरी लहर के लिए वैरिएंट्स के साथ-साथ राजनीतिक रैलियां और धार्मिक आयोजन भी जिम्मेदार हैं। उसका इशारा कुंभ मेले में उमड़ी भीड़ को लेकर था। WHO की रिपोर्ट आने के एक दिन बाद ही ईद से पहले दिल्ली के बाजारों में भीड़ उमड़ी। कई लोग बिना मास्क के या नाक के नीचे मास्क पहने नजर आ रहे हैं।
WHO की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दूसरी लहर के लिए वैरिएंट्स के साथ-साथ राजनीतिक रैलियां और धार्मिक आयोजन भी जिम्मेदार हैं। उसका इशारा कुंभ मेले में उमड़ी भीड़ को लेकर था। WHO की रिपोर्ट आने के एक दिन बाद ही ईद से पहले दिल्ली के बाजारों में भीड़ उमड़ी। कई लोग बिना मास्क के या नाक के नीचे मास्क पहने नजर आ रहे हैं।

सबसे पहले यह वैरिएंट किसे और कैसे मिला?
B.1.617 को भारतीय वैज्ञानिकों ने सबसे पहले महाराष्ट्र से अक्टूबर 2020 में लिए कुछ सैम्पल्स में पकड़ा था। INSACOG ने जनवरी में अपनी सक्रियता बढ़ाई और ध्यान में आया कि महाराष्ट्र में बढ़ते मामलों के पीछे B.1.617 ही जिम्मेदार है।
पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) की डायरेक्टर प्रिया अब्राहम के मुताबिक 15 फरवरी तक महाराष्ट्र में 60% केसेज के लिए B.1.617 ही जिम्मेदार था। इसके बाद इसके सब-लाइनेज सामने आते चले गए।
3 मई को एक स्टडी में NIV वैज्ञानिकों ने दावा किया कि इस वैरिएंट ने स्पाइक प्रोटीन, जिससे वायरस इंसान के शरीर के संपर्क में आता है, में 8 म्यूटेशन किए हैं। इसमें दो म्यूटेशंस यूके और दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट्स जैसे थे। वहीं, एक म्यूटेशन ब्राजील वैरिएंट जैसा था, जो इसे इम्युनिटी और एंटीबॉडी को चकमा देने में मदद करता है। अगले ही दिन जर्मनी की एक टीम ने भी अपनी स्टडी में इस दावे का समर्थन किया।

क्या यह वैरिएंट ही कोरोना के गंभीर लक्षणों के लिए जिम्मेदार है?
कुछ कह नहीं सकते। पर जानवरों में हुई छोटी स्टडी कहती है कि यह वैरिएंट गंभीर लक्षण के लिए जिम्मेदार हो सकता है। 5 मई को NIV की वैज्ञानिक प्रज्ञा यादव की एक स्टडी प्री-प्रिंट हुई, जिसमें दावा किया गया है कि अन्य वैरिएंट्स के मुकाबले B.1.617 से इन्फेक्टेड हैमस्टर्स के फेफड़ों में गंभीर असर हुआ है।
पर क्या यह स्टडी वास्तविक दुनिया में भी असर दिखा रही है, यह दावा करने के लिए और डेटा चाहिए। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट रवींद्र गुप्ता कहते हैं कि रिसर्च बताती है कि यह वैरिएंट गंभीर लक्षण पैदा कर सकता है। पर हैमस्टर्स से तुलना के आधार पर यह बताना सही नहीं होगा। इसके लिए और स्टडी की जरूरत है।

कानपुर के एक अस्पताल में गंभीर मरीज को स्ट्रेचर पर लेकर जाते स्वास्थ्यकर्मी। नए वैरिएंट पर हुई स्टडी इशारा करती है कि दूसरी लहर में गंभीर मरीजों की बढ़ी संख्या के लिए भी B.1.617 ही जिम्मेदार है।
कानपुर के एक अस्पताल में गंभीर मरीज को स्ट्रेचर पर लेकर जाते स्वास्थ्यकर्मी। नए वैरिएंट पर हुई स्टडी इशारा करती है कि दूसरी लहर में गंभीर मरीजों की बढ़ी संख्या के लिए भी B.1.617 ही जिम्मेदार है।

इस पर एंटीबॉडी या वैक्सीन कारगर है या नहीं?
पक्के तौर पर नहीं पता। WHO का कहना है कि B.1.617 पर वैक्सीन की इफेक्टिवनेस, इलाज में इस्तेमाल हो रही दवाएं कितना प्रभावी हैं या रीइन्फेक्शन का खतरा कितना है, पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। शुरुआती नतीजे कहते हैं कि कोविड-19 के ट्रीटमेंट में इस्तेमाल होने वाली एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की इफेक्टिवनेस कम हुई है।
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) के अधिकारियों का दावा है कि भारत बायोटेक की कोवैक्सिन इस वैरिएंट से इन्फेक्शन को रोकने में कारगर साबित हुई है। भारत में उपलब्ध अन्य वैक्सीन की इफेक्टिवनेस की अभी जांच की जा रही है।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में हुई स्टडी में भारत में मिला वैरिएंट फाइजर की वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी से बचने में कामयाब रहा है। एक अन्य स्टडी में दिल्ली में रीइन्फेक्ट हुए डॉक्टरों में यह वैरिएंट मिला है। इन डॉक्टरों ने तीन-चार महीने पहले कोवीशील्ड के डोज लिए थे।
इसका मतलब यह है कि अगर आपको पहले कोरोना इन्फेक्शन हुआ है तो नए वैरिएंट्स आपको रीइन्फेक्ट कर सकते हैं। वैक्सीन भी इन्फेक्शन रोक नहीं सकेगी। पर अच्छी बात यह है कि जिसे वैक्सीन लगी होगी, उसमें काफी हद तक गंभीर लक्षण नहीं होंगे।

ये वैरिएंट्स क्या हैं और इनसे क्या खतरा है?

देश की नामी वैक्सीन साइंटिस्ट और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर की प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कंग के मुताबिक वायरस में म्यूटेशन कोई नई बात नहीं है। यह स्पेलिंग मिस्टेक की तरह है। वायरस लंबे समय तक जीवित रहने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इन्फेक्ट करने के लिए जीनोम में बदलाव करते हैं। ऐसे ही बदलाव कोरोना वायरस में भी हो रहे हैं। महामारी विशेषज्ञ डॉ. चंद्रकांत लहारिया के मुताबिक वायरस जितना ज्यादा मल्टीप्लाई होता है, उसमें म्यूटेशन होते जाएंगे। जीनोम में होने वाले बदलावों को ही म्यूटेशन कहते हैं। इससे नए और बदले रूप में वायरस सामने आता है, जिसे वैरिएंट कहते हैं। WHO की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि वायरस जितने समय तक हमारे बीच रहेगा, उतना ही उसके गंभीर वैरिएंट्स सामने आने की आशंका बनी रहेगी। अगर इस वायरस ने जानवरों को इन्फेक्ट किया और ज्यादा खतरनाक वैरिएंट्स बनते चले गए तो इस महामारी को रोकना बहुत मुश्किल होने वाला है।

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