कोलकाता। पश्चिम तमिलनाडु पारंपरिक रूप से AIADMK का गढ़ रहा है। 2016 के विधानसभा चुनावों में भी औद्योगिक केंद्र इरोड की सभी 8 तो तिरुपुर की 8 में से 6 सीटें अन्नाद्रमुक की झोली में गईं, लेकिन तब से अब तक कावेरी में काफी पानी बह चुका है। पहले नोटबंदी और फिर GST के चलते इस इलाके के कारोबार पर बड़ा प्रभाव पड़ा। अन्नाद्रमुक सरकार का इससे कोई सीधा लेना देना नहीं है, लेकिन भाजपा से गठबंधन के कारण लोग इसे भी इसका जिम्मेदार मान रहे हैं, जिसका नुकसान अन्नाद्रमुक को हो रहा है।
इसके अलावा जयललिता जैसा करिश्माई चेहरा न होना भी पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर रहा है। इसके अलावा इलाके के दो मजबूत प्रत्याशियों की बगावत ने भी AIADMK के सामने मुसीबत खड़ी कर दी है। कभी इस इलाके में क्लीन स्वीप करने वाली अन्नाद्रमुक को इरोड और तिरुपुर की 16 में से 10 सीट भी मिलती नजर नहीं आ रही हैं।
तमिलनाडु की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले पत्रकार दिलीप जैन कहते हैं कि AIADMK के मौजूदा नेतृत्व के पास न तो अम्मा जैसा करिश्मा है और न ही वैसा मजबूत कैडर। ऐसे में पार्टी बागियों को कैसे रोक पाएगी। अन्नाद्रमुक प्रत्याशी पेट्रोल, डीजल, महंगाई, जीएसटी और हिंदी के साथ भाजपा से जुड़े तीखे सवालों से बचने के लिए मीडिया से दूर भागते हैं।’ उनके साथ खड़े नरेश कहते हैं कि ‘आप खुद मिलने की कोशिश करके देख लीजिए।’
इरोड-तिरुपुर में 400 से ज्यादा ब्लीचिंग, डाइंग फैक्ट्रियों का जहरीला पानी कावेरी में मिलता है। बढ़ते कैंसर और प्रदूषण से भी मतदाता नाराज हैं। इरोड में देश की सबसे बड़ी हल्दी मंडी भी है और टेक्सटाइल हब भी। यहीं से सटा हुआ तिरुपुर होजरी का सबसे बड़ा हब है। दोनों ही जगह के उद्योग-धंधों पर उत्तर भारतीयों का ही कब्जा है। GST यहां बड़ा मुद्दा है। तिरुपुर के तेजपाल शर्मा कहते हैं कि ‘जीएसटी से तीन चार सौ छोटी इकाइयां बंद हो गईं। जिससे बेरोजगारी बढ़ी है। लोग सड़क पर आ गए, पर किससे कहें? अब EVM ही सहारा बचता है।’
शहरी क्षेत्रों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण
इरोड पूर्व शहरी क्षेत्र में उत्तर भारतीयों के 10 हजार वोट हैं। इनमें से ज्यादातर मोदी समर्थक हैं। लगभग 17% मुस्लिम और ईसाई आबादी वाले इस शहर में संघ की 12 शाखाएं लगती हैं। 10 हजार स्वयंसेवक भी हैं। एक बार यहां भाजपा का विधायक भी रह चुका है, लेकिन इस बार तिरुपुर और इरोड में BJP की इकलौती डॉक्टर प्रत्याशी को पार्टी का नहीं बल्कि खुद की व्यक्तिगत छवि का सहारा है।
स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार शब्बीर कहते हैं कि ‘यहां हिंदू का विरोध तो नहीं, लेकिन हिंदी का तगड़ा विरोध जरूर है और हिंदी को BJP के साथ चस्पा कर दिया गया है। अन्नाद्रमुक को BJP की वजह से नुकसान उठाना पड़ रहा है। कुल मिलाकर DMK के लिए रास्ते खुलते दिख रहे हैं।’
पार्टियों की अवैध वसूली का गढ़
अन्नाद्रमुक के एक स्थानीय नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि AIADMK की सबसे ज्यादा वसूली इरोड से ही होती है। अम्मा और चिन्नम्मा (शशिकला) के जाने के बाद अब पैसा निचले कैडर तक नहीं पहुंचता। इससे यहां ही नहीं पूरे तमिलनाडु पार्टी कैडर में नाराजगी है। यह भी हार का कारण बनेगा।’
गाड़ी नंबर से पार्टी का पता
इस इलाके में राजनीतिक दादागिरी कुछ ऐसी है कि गाड़ी नंबर से ही पार्टी का पता चल जाता है। मसलन गाड़ी कोई भी हो, ‘2345’ नंबर सिर्फ DMK कैडर के पास ही होगी। सभी नंबर का जोड़ यदि ‘8’ है तो वह AIADMK की है।
कभी एक ही पार्टी में, अब आमने-सामने
इरोड ‘फादर ऑफ तमिलनाडु’ रामास्वामी पेरियार की कर्मभूमि भी है। मौजूदा दोनों प्रमुख पार्टियां DMK और AIADMK उन्हीं के द्रविड़ आंदोलन की पैदाइश हैं। पेरियार के पड़पोते कांग्रेस से चुनाव मैदान में हैं। यह महान गणितज्ञ सीवी रामानुजम की जन्मस्थली भी है। हालांकि, रामानुजम जिस स्कूल में पढ़े थे, बैंक उसे नीलाम कर चुका है।
इरोड की 2 सीटों पर AIADMK तो दो पर कांग्रेसी रहे नेता ही आमने-सामने हैं। अन्नाद्रमुक में दो ऐसे नेता भी हैं जो 45 साल से लगभग हर बार जीत रहे। इस बार भी संभावना अच्छी है। कभी कांग्रेस सरकार में जहाजरानी मंत्री रहे तमिल मनीला कांग्रेस (टीएमसी) जीके वासन यहां से करियर का पहला चुनाव लड़ रहे हैं। एक दिलचस्प मुकाबला पेरियार के पड़पोते, कांग्रेस के राम इलांगोवन और बर्खास्त पूर्व युवा कांग्रेस अध्यक्ष युवराज के बीच है। द्रविड़ पार्टियों के बजाय कांग्रेस से लड़ने के सवाल पर युवा इलांगोवन कहते हैं कि वे इनके मुकाबले कांग्रेस को दादा की सोच के ज्यादा नजदीक पाते हैं।