जवाब तो देना पड़ेगा-आखिर हिंसा की आग में झुलसी दिल्ली, कहां से आया ‘मौत का सामान’?

इराक या सीरिया के तबाह हुए इलाकों से दिल्ली के दंगा प्रभावित इलाकों का फर्क करना मुश्किल हो रहा है. यकीन नहीं होता कि तबाही की तस्वीरें दिल्ली की हैं. देश की राजधानी दिल्ली की.

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  • पुलिस ने दंगाईयों की धरपकड़ के लिए चलाया अभियान
  • दिल्ली एनसीआर के कई इलाकों में पुलिस के छापे

नई दिल्ली। दिल्ली के दंगों से एक चौंकाने वाली खबर आई है. और ये खबर अस्पताल से बाहर निकली है. अस्पातल ने दंगे में मारे गए और दंगे में घायल हुए लोगों की सूची जारी की है. इस लिस्ट में नाम के साथ-साथ ये भी लिखा है कि कौन कैसे मरा या कैसे जख्मी हुआ? इस लिस्ट के मुताबिक दंगे में मारे गए 35 लोगों में से एक बड़ी तादाद उनकी है, जिनकी गोली लगने से मौत हुई. अब सवाल ये है कि इस इलाके में इतने हथियार कहां से आए. क्या दंगे की तैयारी पहले से थी?

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सन्नाटे की गहरी छांव, खामोशी से जलते पांव
ये शहर बमों से झुलसे हुए,ये ख़ाली रास्ते सहमे हुए
ये मातम करता सारा समां, ये जलते घर ये काला धुआं

इराक या सीरिया के तबाह हुए इलाकों से दिल्ली के दंगा प्रभावित इलाकों का फर्क करना मुश्किल हो रहा है. यकीन नहीं होता कि तबाही की तस्वीरें दिल्ली की हैं. देश की राजधानी दिल्ली की. अंदाज़ा भी नहीं था कि कभी दिल्ली में इराक और सीरिया की तस्वीरें देखने को मिलेंगी. पर ये सच है. कीमत चुकाई है. इस शहर में रहने की इन सबने, इस रस्ते ने, चौराहे ने, रोड ने, स्कूल ने, बाज़ार ने, घर ने, व्यापार ने, सब ने कीमत चुकाई है. क्योंकि इस हंसते खलते शहर को नज़र लग गई अपनों की. एक वो जो देखते ही देखते दंगाई बन गए. और दूसरे वो जो सोचते ही सोचते हिंदू और मुसलमान बन गए. दोनों ही खुद के जिस्म को चाकुओं की नोक से कुरेदने लगे. देखिए इस दिल्ली को. क्या कोई यकीन करेगा कि ये कभी ऐसी भी थी.

उत्तर पूर्वी दिल्ली में अभी झांकना ज़रूरी है. क्योंकि यही सही वक़्त है. अब न यहां दंगाइयों का शोर है. न गोलियों की तड़तड़ाहट है. न हाथों में पत्थर हैं. न जलते शोले हैं. अगर कुछ है तो ये मुर्दा सन्नाटा. और ज़ख्मी दरो-दीवार. जी हां, ये वही शहर है जो देखते ही देखते उदास, उजड़े खंडहर में तब्दील हो चुका है. पहली नजर में ऐसा लगता है मानो इस शहर में कोई ज़लज़ला आया था. ज़लज़ला तो आया था. पर कुदरत का नहीं बल्कि इंसान से जानवर बन गए हैवानों का.

ये उजड़ी बस्तियां अब तक 35 लाशें देख चुकी हैं. पर सितम देखिए कि खुद इन बस्तियों ने अभी तक एक भी जनाज़ा या अर्थी उठते नहीं देखा. देखें भी तो कैसे मरने वाले भी इसी बस्ती के थे और मारने वाले भी. इस पूरे इलाके में इंसान ही बसते थे. हमारे और आप जैसे इंसान. नौकरीपेशा इंसान. मज़दूर इंसान. कारोबारी इंसान. पारिवारिक इंसान. ये बस्तियां आतंकवादियों का गढ़ कभी नहीं रहीं. मिडिल क्लास और गरीब परिवार के लोग ही यहां बसते रहे.

मगर दंगे की भेंट चढ़ी 35 लोगों की लाशें अब अचानक ये सवाल पूछ रही हैं कि दिल्ली के इस इलाके में अचानक इतने सारे हथियार कहां से आए? कौन लाया? कैसे लाया? पुलिस और खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक क्यों नहीं लगी? इस बेहद गंभीर सवाल को समझने के लिए दंगे में मारे गए लोगों और उनके मरने की वजह को समझना ज़रूरी है. ज़रा इस लिस्ट पर गौर फरमाइये-

  1.  मुबारक हुसैन, 28 साल, बाबरपुर, गोली लगने से मौत
  2.  शाहिद खान अल्वी, 22 साल, भजनपुरा, गोली लगने से मौत
  3.  राहुल सोलंकी, 28 साल, बाबूनगर, गोली लगने से मौत
  4.  मुदस्सिर खान, 35 साल, करदमपुरी, गोली लगने से मौत
  5.  नज़ीम खान, 35 साल, गोली लगने से मौत
  6.  मोहम्मद फुरकान, 30 साल, भजनपुरा, गोली लगने से मौत
  7.  महताब, 22 साल, ब्रिजपुरी, जलने से मौत
  8.  रतनलाल, 42 साल, हेड कांस्टेबल, गोली लगने से मौत
  9.  अंकित शर्मा, 26 साल, खजूरी खास, पिटाई से मौत
  10.  विनोद कुमार, 45 साल, ब्रह्मपुरी, पिटाई से मौत
  11.  वीरभान सिंह, 48 साल, गोली लगने से मौत
  12.  अश्फाक़ हुसैन, 24 साल, मुस्तफाबाद, गोली लगने से मौत
  13.  दीपक, 34 साल, मंडोली, चाकू से मौत
  14.  इशाक खान, 24 साल, कबीरनगर, गोली लगने से मौत
  15.  शान मोहम्मद, 34 साल, गोली लगने से मौत
  16.  प्रवेश, 48 साल, मौजपुर, गोली लगने से मौत
  17.  ज़ाकिर, 24 साल, मुस्तफाबाद, चाकू से मौत
  18.  दिलबर, चमनपार, जलने से मौत
  19.  राहुल ठाकुर, 23 साल, ब्रिजपुरी, चाकू से मौत

फिलहाल 35 में से 19 लोगों की ये लिस्ट है. जिनमे से 12 की मौत गोली लगने से हुई. अब सवाल ये है कि इस इलाके में हथियार कहां से आए? आमतौर पर दंगे के दौरान लाठी, डंडे, तेज़धार हथियार, ईंट-पत्थर, और पेट्रोल बम, इन्हीं चीज़ों का ज़्यादा इस्तेमाल होता है. मगर इतनी बड़ी तादाद में गोलियों से हुई मौत ये सवाल खड़े करती है कि दंगा अचानक हुआ या फिर इसकी साज़िश पहले से रची जा रही थी. उसी मकसद के लिए हथियार जमा किए जा रहे थे. अगर ऐसा है तो फिर सवाल दिल्ली पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को लेकर भी खड़े होते हैं कि उन्हें वक्त रहते इसकी भनक क्यों नहीं लगी ? 35 मौत के अलावा करीब 100 लोग अलग अलग अस्पतालों में ज़ख्मी पड़े हैं. इन ज़ख्मियों में से भी 9 को गोली लगी है. जबकि बाकि ज़ख्मी जलाने, पत्थर मारने, पिटाई करने, या फिर तेज़ धार हथियार के शिकार हुए..

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