नई दिल्ली। फाइजर की कोरोना वैक्सीन को अब तक अमेरिका, ब्रिटेन समेत करीब 5 से ज्यादा देशों में इमरजेंसी अप्रूवल मिल चुका है। कई देशों में हेल्थवर्कर्स और हाई-ग्रुप को वैक्सीनेट करने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। पर भारत में उसके लिए इमरजेंसी अप्रूवल आसानी से नहीं मिलने वाला। इमरजेंसी अप्रूवल की सिफारिश करने वाली ड्रग रेगुलेटर की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी उससे भारत में ट्रायल्स के लिए कह सकती है।
मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक फाइजर ने जो ट्रायल डेटा पेश किया है, उसमें भारतीय एथनिसिटी से जुड़े वॉलंटियर्स से जुड़ा ट्रायल डेटा पर्याप्त नहीं है। वैक्सीन की रेगुलेटरी प्रोसेस से जुड़े एक रिसर्चर ने कहा कि आपको किसी भी वैक्सीन के लिए स्थानीय आबादी पर हुए ट्रायल्स का डेटा देना होता है। अगर फाइजर के ग्लोबल ट्रायल्स में भारतीय आबादी पर हुए ट्रायल्स का कुछ डेटा होता तो उसे क्लीनिकल ट्रायल्स की अनिवार्यता से छूट दी जा सकती थी। पर लगता है कि उसका डेटा पर्याप्त नहीं है। क्लिनिकल ट्रायल की छूट देने की संभावना इस समय काफी कम लग रहा है।
इससे पहले देश की टॉप वैक्सीन साइंटिस्ट और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कंग ने भी संभावना जताई थी कि भारत का ड्रग रेगुलेटर इमरजेंसी अप्रूवल के लिए आवेदन करने पर विदेशी वैक्सीन को भारत में ट्रायल्स के लिए कह सकता है। हो सकता है कि यह ट्रायल्स 100 भारतीयों पर करने को कहा जाए। यह सब दुनियाभर में किए ट्रायल्स के डेटा पर तय होता है।
क्या जरूरत है लोकल ट्रायल्स की?
- ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया वीजी सोमानी और सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ने अगर फाइजर की वैक्सीन को मंजूरी दी तो यह हमारे यहां बिल्कुल ही नई टेक्नोलॉजी होगी। दरअसल, फाइजर की वैक्सीन मैसेंजर-RNA या mRNA टेक्नोलॉजी से बनी है, जिसके ट्रायल्स भारत में नहीं हुए हैं। ऐसे में सिर्फ ग्लोबल ट्रायल डेटा के आधार पर इमरजेंसी अप्रूवल देना जोखिम से भरा हो सकता है।
- फाइजर के ग्लोबल फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल में 37,000 वॉलंटियर्स शामिल हुए थे। इसमें सिर्फ 4.3% लोग ही एशियाई मूल के थे। भले ही वैक्सीन की ओवरऑल इफेक्टिवनेस 95% रही हो, एशियाई मूल के लोगों पर इसकी सफलता की दर 74.4% ही थी। कोरोना वैक्सीन के लिए 50% को कट-ऑफ माना जा रहा है, ऐसे में 74.4% भी अच्छा आंकड़ा माना जा सकता है। पर इससे यह भी साफ है कि सैम्पल साइज पर्याप्त नहीं था।
क्या इससे पहले विदेशी वैक्सीन को अप्रूवल नहीं दिया?
- सरकारी संगठन से जुड़े एक वैक्सीनोलॉजिस्ट का कहना है कि फाइजर को स्थानीय स्तर पर क्लिनिकल ट्रायल्स के बिना इमरजेंसी अप्रूवल देना अभूतपूर्व होगा। अब तक भारत में जितने भी वैक्सीन बने या इम्पोर्ट किए, उनके लिए लोकल क्लिनिकल ट्रायल्स अनिवार्य था। इसकी एक बड़ी वजह है भारत की विविधतापूर्ण डेमोग्राफी और सामाजिक-आर्थिक विविधता। इसका वैक्सीन की सेफ्टी और इफेक्टिवनेस पर बहुत असर पड़ता है।
- सैनफोर्ड ब्रेन्सटीन की इंडिया हेल्थकेयर एनालिस्ट नित्या बालाकृष्णन ने एक रिपोर्ट में कहा है कि सैम्पल साइज पर्याप्त नहीं है। क्लिनिकल ट्रायल्स की छूट देने पर विचार करने की मजबूरी हम समझ सकते हैं पर हेल्थ वॉलंटियर्स को डोज देने से पहले सावधानी के साथ फैसला लेना होगा। ट्रायल की छूट देने के लिए पर्याप्त आधार भी नहीं है।
बाकी वैक्सीन को लेकर क्या स्टेटस है?
- इस समय फाइजर के साथ ही सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) और भारत बायोटेक ने भी अपनी-अपनी वैक्सीन के लिए इमरजेंसी अप्रूवल का आवेदन दिया है। SII ने ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका की विकसित की हुई कोवीशील्ड वैक्सीन के लिए अप्रूवल मांगा है, जिसके फेज-3 ट्रायल्स इस समय पूरे देश में चल रहे हैं। इसी तरह भारत बायोटेक की पहली स्वदेशी कोरोना वैक्सीन-कोवैक्सिन के फेज-3 ट्रायल्स भी देश के कई अस्पतालों में ट्रायल्स चल रहे हैं।
भारतीयों के लिए सस्ती होगी फाइजर की वैक्सीन
- फाइजर ने कहा है कि उसकी वैक्सीन BNT162b2 की कीमत इस तरह रखी जाएगी कि लोगों को कम या नहीं के बराबर खर्च करना पड़े। इसमें वह भारत सरकार के साथ काम करने को भी तैयार है। अमेरिका में कंपनी ने अपनी वैक्सीन के एक डोज की कीमत $19.5 (1,440 रुपए) तय की है। पर भारत में यह दर कम हो सकती है।
- फाइजर की वैक्सीन को लेकर एक और समस्या उसे -70 डिग्री सेल्सियस पर रखने की है, जिसके लिए कंपनी ने खास तापमान-नियंत्रित थर्मल शिपर्स बनाए हैं, जिनका इस्तेमाल टेम्पररी स्टोरेज यूनिट के तौर पर हो सकता है। फाइजर के मुकाबले SII की वैक्सीन- कोवीशील्ड $3 डॉलर यानी करीब 221 रुपए की रहने वाली है। इसी तरह रूसी वैक्सीन स्पुतनिक V भी फाइजर से सस्ती पड़ेगी और उसके एक डोज की कीमत $10 डॉलर (735 रुपए) रहेगी। स्वदेशी वैक्सीन कंपनियों भारत बायोटेक और जायडस कैडिला की वैक्सीन $3-$6 के बीच रहने वाली है यानी 220 से 500 रुपए के बीच।