कोरोना वैक्सीन लॉन्चिंग की तैयारी:सीरम ने ऑक्सफोर्ड वैक्सीन का इमरजेंसी अप्रूवल मांगा; मोदी बोले- अब ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा

सीरम इंस्टीट्यूट ने कहा है कि सुरक्षा के लिहाज से देखें तो कोवीशील्ड के ट्रायल में कोई विपरीत असर सामने नहीं आया। लिहाजा वैक्सीन एक टार्गेटेड पॉपुलेशन को दी जा सकती है।

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फाइजर के बाद सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने भी कोवीशील्ड के इमरजेंसी यूज की अनुमति मांगी है। इसी के साथ सीरम इंस्टीट्यूट देश की पहली स्वदेशी कंपनी बन गई है, जो कोरोना वैक्सीन को मार्केट में लॉन्च करने को तैयार है। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को वैक्सीन में देरी न होने की बात दोहराई और तब तक लोगों से सावधानी बरतने की अपील की।

न्यूज एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से बताया कि सीरम ने रविवार को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) के पास इसके लिए आवेदन किया है। भारत में अब तक 96.73 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं।

पीएम बोले- वैक्सीन आने में देर नहीं
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मैं पिछले दिनों कई वैज्ञानिकों से मिला। मुझे महसूस हुआ कि कोरोना वैक्सीन के देश को अब ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। लेकिन हमें अभी भी बेफिक्र नहीं होना है। मास्क और दो गज की दूरी का ध्यान रखिए।

4 करोड़ डोज बना चुका है सीरम
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के मुताबिक, सीरम इंस्टीट्यूट ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका की कोवीशील्ड के 4 करोड़ डोज बना चुका है। सीरम ने अपने आवेदन में कहा है कि UK (दो क्लीनिकल टेस्ट), ब्राजील और भारत (एक-एक टेस्ट) में वैक्सीन में बीमारी से लड़ने के लिए अच्छी एफिकेसी (90%) पाई गई है। सुरक्षा के लिहाज से देखें तो कोवीशील्ड के ट्रायल में कोई विपरीत असर सामने नहीं आया। लिहाजा वैक्सीन एक टार्गेटेड पॉपुलेशन को दी जा सकती है।

सीरम दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी है। कंपनी ने कसौली स्थित सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेटरी (CDL) को टेस्टिंग के लिए वैक्सीन के 12 बैच सौंपे हैं।

फाइजर ने 4 दिसंबर को अप्रूवल मांगा था
4 दिसंबर को अमेरिकी कंपनी फाइजर ने भारतीय ड्रग कंट्रोलर से अपनी वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए अप्रूवल मांगा था। फाइजर की वैक्सीन लगाए जाने को UK और बहरीन ने मंजूरी दे दी है। भारत ने पहले ही साफ कर दिया है कि देश में कोई भी वैक्सीन तभी लाई जाएगी, जब वह यहां क्लीनिकल ट्रायल्स पूरे कर ले। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, फाइजर या उसकी सहयोगी कंपनी ने ऐसे किसी भी ट्रायल से इनकार किया था। हालांकि अफसरों का कहना है कि DCGI चाहे तो लोकल क्लिनिकल ट्रायल में छूट दे सकता है।

 

3 देशों ने अप्रूवल दिए
कोरोनावायरस के खिलाफ जंग में चीन ने 4, रूस ने 2 और UK ने 1 वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल दे दिए हैं। उधर, भारत प्री-ऑर्डर में वह सबसे आगे है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैक्सीन को लेकर बीते हफ्ते से काफी सक्रिय हैं। 28 नवंबर को मोदी ने अहमदाबाद, पुणे और हैदराबाद की कंपनियों में जाकर वैक्सीन की तैयारियों का जायजा लिया था। 30 नवंबर को उन्होंने कुछ कंपनियों के अधिकारियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की। 4 दिसंबर को उन्होंने वैक्सीन पर बात करने के लिए ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई थी।

वैक्सीन जरूरी:क्या कोरोना से ठीक हो चुके लोगों को भी वैक्सीन की जरूरत? जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?

अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में वैक्सीन अप्रूवल फेज में पहुंच चुकी है। फाइजर और मॉडर्ना की कोरोना वैक्सीन के प्रभावी नतीजे सामने आने के बाद अमेरिका के सीनेटर रैंड पॉल ने ट्वीट किया था। उनका दावा था कि वैक्सीन के प्रभावी नतीजे 90 और 94.5% हैं। लेकिन जो कोरोना से ठीक हो चुके हैं या जिनमें नेचुरल इम्युनिटी डेवलप हुई है। वह इसके मुकाबले में 99.80% बेहतर हैं।

सवाल यह है कि क्या कोरोना से ठीक हुए लोगों मे डेवलप हुई नेचुरल इम्युनिटी वायरस से लड़ने में सक्षम है? क्या कोरोना से ठीक हो चुके लोगों को वैक्सीन की जरूरत होगी या नहीं? इसको लेकर एक्सपर्ट की राय क्या है?

टोरंटो यूनिवर्सिटी के इम्यूनोलॉजिस्ट जेनिफर गोमरमेन का कहना है कि कोरोना के संक्रमण से कौन सुरक्षित रहेगा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। लेकिन वैक्सीन की जगह बीमारी का चुनाव करना एक गलत फैसला होगा।

उन्होंने कहा कि वैक्सीन का सबसे बड़ा फायदा है कि यह प्रिडिक्टेबल और सुरक्षित है। इसे इम्युन रिस्पॉन्स सिस्टम को इफेक्टिव बनाने के लिए विकसित किया है।

जानें एक्सपर्ट की राय-

  • एक्सपर्ट्स का मानना है कि वैक्सीन बीमारी को रोक सकती है। इसके नतीजे ट्रायल में देखने को मिले हैं और यह सुरक्षित है।
  • वैक्सीन पेथोजेनस है। जो हमारे शरीर को बीमारी से लड़ने में मदद करती है। जैसे न्यूमोकोकल नाम का बैक्टिरिया बेहतर इम्युनिटी बनाता है। जो वायरस से लड़ने में सक्षम होता है।
  • हाल ही में एक वॉलेंटियर को मॉडर्ना के डोज दिए गए। इस दौरान उसके ब्लड में कोरोना से ठीक हुए लोगों से ज्यादा एंटीबॉडी पाई गई।
  • वहीं एक अन्य केस में सामने आया कि नेचुरल इम्युनिटी वैक्सीन से ज्यादा ताकतवर है। मम्पस या गलसुआ की बीमारी में लोगों के अंदर लंबे समय के लिए इम्युनिटी डेवलप हो सकती है। यह ऐसी बीमारी होती है जो लार बनाने वाली ग्रंथियों को प्रभावित करती है। इससे पुरूषों में स्टरिलिटी की समस्या हो जाती है। इसके अलावा देखा गया कि वैक्सीन के एक दो डोज देने पर भी बीमारी ठीक नहीं हुई है।
  • इसी पर पॉल ने दावा किया है कि कोरोना होने के बाद शरीर में डेवलप हुई नेचुरल इम्युनिटी मजबूत है। संक्रमित लोगों ने एंटीबॉडी और इम्युन सेल प्रोड्यूस किए हैं। यह वायरस से लड़ने में मदद कर सकते हैं। इससे कई सालों तक शरीर को प्रोटेक्शन मिलता रहेगा और गंभीर बीमारियों से बचाव करेगा। हालांकि इनके डायनेमिक रेंज में 200 गुना तक का अंतर देखा गया है।
  • हॉवर्ड के टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में एपिडिमोलॉजिस्ट बिल हेनेज कहते हैं कि वैक्सीन इम्युन रिस्पांस बनाने में ज्यादा मददगार साबित होगी।

युवा अगर कोरोना के लो रिस्क पर हैं तो क्या उन्हें वैक्सीन की जरूरत है?

  • इस सवाल का सटीक जवाब एक्सपर्ट के पास नहीं है। हालांकि उनका कहना है कि कोरोना खतरनाक है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इम्यूनोलॉजिस्ट मेरियन पेपर का मानना है कि जिन्हें कोरोना से किसी तरह का खतरा नहीं है। उनकी बॉडी जल्दी रिकवर करती है। इस तरह के मामले में नेचुरल इंफेक्शन बड़ा खतरा बनकर सामने आया है।
  • वहीं जिनमें मोटापे और डायबिटीज की समस्या है। उनकी तुलना में युवाओं में कोरोना का खतरा कम है। डॉक्टर अब तक यह समझ नहीं पाए हैं कि जिन लोगों में कोई लक्षण नहीं है। उनमें बीमारी और उससे मृत्यु क्यों हो रही है? डॉ. गोमरमेन का कहना है कि ऐसे में मामलों में रिस्क फेक्टर का उम्र से कोई लेना-देना नहीं होता है।
  • 3 हजार लोगों पर एक स्टडी की गई। इसमें 18 से 34 साल के लोगों शामिल किया गया। यह सभी वह लोग थे जिन्हें कोरोना के बाद हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। इसमें 20% लोगों को तुरंत इलाज की जरूरत थी और 3 % की मृत्यु हो चुकी थी।
  • डॉ. यूवोने मेल्डडोनाडो का कहना है कि यह सच है कि कुछ लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती नहीं किया गया। ज्यादातर को इलाज नहीं मिला और उनकी मृत्यु हो गई। गंभीर बीमारी में इम्युनिटी बचाव नहीं कर सकती है। अगर आप हाई रिस्क पर नहीं हैं, तो आपके दोस्त और फैमिली मेंबर हो सकते हैं।
  • वहीं दूसरी तरफ जो तीन लोग कोरोना से ठीक हुए, उनमें थकावट और हार्टबीट तेज गति से चलने की शिकायत देखी गई। यह सभी 35 साल से कम उम्र लोग थे। इससे पहले किसी तरह की समस्या उनमें नहीं थी।
  • डॉ हेनेज कहते हैं कि वैक्सीन से कम रिस्क रहता है। वैक्सीन का ट्रायल हजारों लोगों पर किया गया है। इसके साइड इफेक्ट सामने नहीं आए हैं। वैक्सीनेशन से कोरोना के प्रसार को रोका जा सकता है। इसमें यह देखना है कि नेचुरल इम्युनिटी की तुलना में वैक्सीन प्रभावी है या नहीं।

जिन लोगों को कोरोना हो चुका है कि क्या वे वैक्सीन लगा सकते हैं?

  • एक्सपर्ट्स की मानें तो जिन्हें कोरोना हुआ है, अगर वह वैक्सीन लगाते हैं तो यह सुरक्षित और लाभदायक साबित होगी।
  • डॉ पेपर कहते हैं कि वैक्सीन से आपकी इम्युनिटी बूस्ट होगी। भले ही कोरोना होने से पहले आपकी इम्युनिटी किसी भी तरह की रही हो।

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