वैज्ञानिकों को उम्मीद- तय वक्त में तैयार हो जाएगी वैक्सीन, लेकिन वितरण की चुनौती रहेगी; ट्रम्प सरकार ने शुरू किया ऑपरेशन वॉर्प स्पीड

दुनियाभर में लगभर हर कोई कोरोनावायरस की चपेट में है, ऐसे में हर व्यक्ति को वैक्सीन के दो डोज की जरूरत वैक्सीन तैयार करने में लगते हैं कई साल, अगर कोरोना वैक्सीन समय पर बन गई तो यह इतिहास का सबसे तेज प्रोग्राम होगा

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कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच सभी को इंतजार है तो बस कोरोना की वैक्सीन का। दुनिया के कई देश और कंपनियां इस वायरस की वैक्सीन बनाने में लगे हुए हैं। भारत में भी कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने पर काम चल रहा है। वैसे तो वैक्सीन तैयार करने में सालों लग जाते हैं, लेकिन इस कोरोना संकट के समय में दुनियाभर के वैज्ञानिक सालों के इस कार्य को कुछ ही महीनों में करने में लगे हैं।

कोरोनावायरस का कहर शुरू होने के बाद से ही वैक्सीन कंपनियां इसका इलाज खोजने में जुट गईं थीं। दुनियाभर में मेडिकल शोधकर्ताओं और वॉलंटियर्स की टीमें वैक्सीन बनाने में लगी हुई हैं। इनोवियो और फाइजर जैसी कंपनियों ने वैक्सीन की सुरक्षा का पता करने के लिए टेस्ट शुरू कर दिए हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता वैक्सीन को ह्यूमन सब्जेक्ट पर भी टेस्ट कर रहे हैं। उनका कहना है कि, वे लोग सितंबर तक एमरजेंसी उपयोग के लिए दवा तैयार कर लेंगे।

  • सोमवार को मॉडर्ना ने आठ वॉलंटियर्स पर सेफ्टी ट्रायल्स के अच्छे प्रदर्शन की घोषणा की। हालांकि इसका कोई भी प्रकाशित डाटा नहीं है, लेकिन इस खबर ने कंपनी के स्टॉक्स बढ़ा दिए हैं। जानवरों पर हो रही स्टडीज ने भी उम्मीदें बढ़ाई हैं। बेथ इजरायल डीकोनेस मेडिकल सेंटर ने बुधवार को रिसर्च प्रकाशित किया। इसमें बताया गया था कि, प्रोटोटाइप वैक्सीन ने बंदरों को वायरस के संक्रमण से बचा लिया है।

कयास: अगले साल तक तैयार हो जाएगी वैक्सीन
वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने के लिए एक से ज्यादा तरीके अपना रहे हैं। इस वक्त वे ट्रायल फेज को एक साथ ला रहे हैं और सालों तक चलने वाली प्रक्रिया को छोटा कर रहे हैं। दुनियाभर की लैब्स में एक नई आशा उठी है कि, अगले साल तक कोरोनावायरस की वैक्सीन तैयार हो जाएगी। जुपिटर स्थित स्क्रिप्स रिसर्च सेंटर में वायरोलॉजिस्ट माइकल फरजान के मुताबिक, कोरोनावायरस आसान शिकार है और यह अच्छी खबर है।

तो इतिहास में पहली बार इतनी जल्दी तैयार होगी वैक्सीन
वायरोलॉजिस्ट डॉक्टर डेन बरौच ने कहा कि, लोग जो समझ नहीं रहे हैं वो यह कि आमतौर पर वैक्सीन बनाने में सालों और कभी-कभी दशक लग जाते हैं। और 12-18 महीनों में यह प्रक्रिया करना अनसुना लगता है। उन्होंने कहा कि, अगर ऐसा हो गया तो यह इतिहास में सबसे तेज वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोग्राम होगा।

मॉडर्ना की वैक्सीन नई एमआरएनए टैक्नोलॉजी पर आधारी है। यह तकनीक इंसान के सेल में वायरस के जीन के अंश को डिलीवर करती है। इसका मुख्य मकसद है ऐसा वायरल प्रोटीन तैयार करना, जिसे इम्यून सिस्टम विदेशी समझे। इसके बाद शरीर प्रोटीन के खिलाफ डिफेंस तैयार कर लेगा और असल कोरोनावायरस के पहुंचने पर उसपर हमला करेगा।

वहीं, इनोवियो समेत कुछ वैक्सीन निर्माता डीएनए वेरिएशन पर आधारित वैक्सीन बना रहे हैं। लेकिन दोनों कंपनी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक ने कभी भी एसी वैक्सीन नहीं बनाई, जिसे क्लीनिकल ट्रायल के लिए अनुमति मिली हो। मुट्ठीभर मरीजों पर आधारित अपने कयासों के कारण मॉडर्ना की आलोचना भी हुई थी। कंपनी ने कोई भी साइंटिफिक डाटा भी नहीं दिया था।

इसके अलावा कुछ रिसर्च टीमें पारंपरिक तरीके अपना रही हैं। कुछ वैज्ञानिक नुकसान रहित वायरस का इस्तेमाल कोरोना को जीन में भेजने के लिए कर रहे हैं। इन्हें प्रोटीन बनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है, ताकि इम्यून सिस्टम कोरोनावायरस पर नजर रख सके। चीन की कंपनी केनसीनो बायोलॉजिक्स ने इस अप्रोच पर आधारित इंसानी परीक्षण की शुरुआत कर दी है।

कई नए वैक्सीन ट्रायल्स में ही गिर जाएंगे
वायरोलॉजिस्ट फ्लोरियन क्रैमर ने अनुमान लगाया है कि, आने वाले हफ्तों में कम से कम 20 नए वैक्सीन प्रत्याशी क्लीनिकल ट्रायल्स में शामिल हो जाएंगे। उन्होंने कहा, मैं इसके बारे में बिल्कुल भी चिंति नहीं हूं। जैसे-जैसे ट्रायल आगे बढ़ेंगे, इनमें से कई वैक्सीन गिर जाएंगे। ज्यादा लोगों को टीका लगाया जाएगा तो की प्रत्याशी वायरस से बचाव में असफल हो जाएंगे। इससे दुष्प्रभाव साफ नजर आएंगे।

आकार बदल कर परेशान कर सकते हैं वायरस
वैक्सीन तैयार कर रहे निर्माताओं को वायरस अपना आकार बदलकर भी तंग कर सकते हैं। ऐसा होने पर शोधकर्ताओं के सामने नई चुनौती होगी। क्योंकि एक वायरल स्ट्रेन पर काम करने वाली एंटीबॉडीज दूसरी पर फेल होंगी। हालांकि यह अच्छी खबर है कि, नया कोरोनावायरस इस मामले में काफी धीमा है। जो वैक्सीन ट्रायल्स में प्रभावकारी साबित होगी, वो दुनिया में कहीं भी काम कर सकेगी।

शुरुआत में जब कोरोनावायरस वैक्सीन बानाने का काम शुरू हुआ था, तब कुछ शोधकर्ता एंटीबॉडीज को लेकर चिंतित थे। उनका मानना था कि, यह कोविड 19 को और बिगाड़ देंगे। लेकिन शुरुआती स्टडी में कोई भी जोखिम सामने नहीं आया। कनेडियन सेंटर फॉर वैक्सीनोलॉजी एंड डलहाउजी यूनिवर्सिटी में रिसर्चर डॉक्टर एलिसन कैल्विन बताते हैं कि, इसका मतलब यह नहीं है कि यह नुकसान नहीं करेगी, लेकिन अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं। मैं इस मामले में सतर्कतापूर्वक आशावादी हूं।

कोरोनवायरस से प्राभावित व्यक्ति को चाहिए वैक्सीन के दो डोज
वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभाव का पता करने के लिए बड़े ट्रायल्स और प्लानिंग की जरूरत है। धरती पर लगभग हर कोई नए कोरोनावायरस की चपेट में है। ऐसे में हर कोई को नए वैक्सीन के दो डोज की जरूरत होगी। इसका मतलब करीब 1600 करोड़ डोज। येल यूनिवर्सिटी में इम्युनोबायोलॉजिस्ट अकीको इवासाकी ने कहा कि, जब कंपनी एक साल या इससे कम में वैक्सीन डिलीवर करने का वादा करती हैं, तो मुझे यकीन नहीं होता कि वे किस स्टेज के बारे में बात कर रहे हैं। मुझे शक है कि, वे दुनियाभर में करोड़ों डोसेज वितरित करने के बारे में बात कर रहे हैं।

वैक्सीन का निर्माण करना किसी भी दूसरे निर्माण से ज्यादा कठिन है, क्योंकि वैक्सीन को बड़ी जगह की जरूरत होती हैं जहां उसके सामग्री उगाई जाती है। वायरल वैक्टर वैक्सीन बनाने के लिए हाल के वर्षों में सुविधाएं बढ़ी हैं। लेकिन महामारी की इस मांग को पूरा करना एक चुनौती है। निर्माताओं के पास इनएक्टिवेटेड वैक्सीन बनाने का अनुभव है, तो इसलिए स तरह की वैक्सीन का बड़ी मात्रा में निर्माण करना आसान है। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन में वैक्सीन प्रोग्राम के डायरेक्टर एमीलियो एमिनी ने कहा कि, उनके पास केवल उम्मीद है कि किसी स्तर पर यह प्रभावकारी होंगे और यह जरूरी है, क्योंकि हमें एक से ज्यादा की जरूरत है।

ट्रम्प प्रशासन ने शुरू किया ऑपरेशन वॉर्प स्पीड
व्हाइट हाउस ने ऑपरेशन वार्प स्पीड की शुरुआत की है। जिसमें ट्रम्प प्रशासन ने एक ट्रायल खत्म होने से पहले क्षमता बढ़ाने के लिए क्लीनिकल ट्रायल्स के साथ-साथ एक पैरलल मैन्युफैक्चरिंग ट्रेक बनाने का वादा किया है। इसकी डिजाइन इस उम्मीद से की जा रही है कि, अनुमति मिलने के बाद एक या एक से ज्यादा वैक्सीन को वितरित किया जा सके। राष्ट्रपति ट्रम्प ने शुक्रवार को कहा कि, इस प्रोजेक्ट का मकसद साल के अंत से पहले वैक्सीन वितरित करना है। इसके लिए ट्रम्प डिफेंस डिपार्टमेंट पर निर्भर हैं।

निर्माण और वितरण में आएंगी परेशानियां
निर्माण लॉजिस्टिक का काम देख रहे जनरल गुस्तावे एफ पेरना ने गुरुवार को एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि, प्रोडक्शन में लगने वाले उपकरणों और सुविधाओं को लेकर चर्चा केवल शुरुआत थी। उन्होंने अपनी समस्या को गणित की परेशानी बताया। जनवरी तक डोज की 30 करोड़ वैक्सीन कैसे प्राप्त करें, जो अब तक अमेरिकियों के लिए भी नहीं है। जॉन हॉप्किंस यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर हेल्थ सिक्युरिटी में संक्रामक रोग चिकित्सक और सीनियर स्कॉलर डॉक्टर आमेश अदल्जा बताते हैं कि, निर्माण और वितरण के मामूली पहलू आगे की प्रगति को मुश्किल बना सकते हैं।

वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों से अधिकार छोड़ने की अपील
इस हफ्ते हुई वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली की मीटिंग में यूरोपियन यूनियन के एक प्रस्ताव को अपनाया गया गया था। इसमें स्वैच्छिक पेटेंट पूल का जिक्र था। इससे कंपनियों पर उनके द्वारा विकसित की गईं वैक्सीन पर एकाधिकार छोड़ने का दबाव बनेगा। अंतरराष्ट्रीय चैरिटी ऑक्सफैम ने दुनिया के 140 नेताओं और एक्सपर्ट्स का एक ओपन लैटर प्रकाशित किया है। जिसमें ‘लोगों के वैक्सीन’ की मांग की जा रही है। जो सभी देशों में मुफ्त में सभी के लिए उपलब्ध हो सकेगी। न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री हेलन क्लार्क ने कहा कि, यह वैक्सीन जनता की भलाई के लिए होना चाहिए। हम तब तक सुरक्षित नहीं हैं, जब तक सभी लोग सुरक्षित नहीं हैं।

कोरोना की वैक्सीन तैयार करने में अबतक कितना आगे पहुंचा देश?

 

  • दुनियाभर में बढ़ता जा रहा है कोरोना वायरस का संक्रमण
  • सभी को है इंतजार कि कब तैयार होगी कोरोना की वैक्सीन
  • विभिन्न देशों में 100 से ज्यादा वैक्सीन पर चल रहा है काम
  • भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट से देश को बड़ी उम्मीद

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच सभी को इंतजार है तो बस कोरोना की वैक्सीन का। दुनिया के कई देश और कंपनियां इस वायरस की वैक्सीन बनाने में लगे हुए हैं। भारत में भी कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने पर काम चल रहा है। वैसे तो वैक्सीन तैयार करने में सालों लग जाते हैं, लेकिन इस कोरोना संकट के समय में दुनियाभर के वैज्ञानिक सालों के इस कार्य को कुछ ही महीनों में करने में लगे हैं।

  • हर नई सुबह के साथ लोगों के मन में बस यही सवाल होता है कि कोरोना की वैक्सीन को लेकर अपडेट स्थिति क्या है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वैज्ञानिक सलाहकार विजय राघवन के मुताबिक, दुनियाभर में 100 से ज्यादा वैक्सीन पर काम चल रहा है, जबकि भारत में भी 30 से ज्यादा वैक्सीन पर काम किया जा रहा है।
  • पीएम मोदी के वैज्ञाानिक सलाहकार विजय राघवन ने एक टीवी न्यूज चैनल के साथ बातचीत में बताया था कि साधारण तौर पर कोई वैक्सीन बनाने के लिए सालों लग जाते हैं और बहुत 20 से 30 करोड़ डॉलर के बराबर एक बड़ी राशि भी खर्च होती है।
  • हालांकि उन्होंने कहा कि वैक्सीन जल्दी तैयार हो, इसके लिए संसाधन और फंड मुहैया कराया जा रहा है। उनका कहना है कि वैक्सीन का परीक्षण अगर सही तरीके से चल रहा हो, जैसा की अभी चल रहा है और उसके परिणाम अच्छे आने लगें जैसा कि अभी आ रहे हैं तो बाजार में वैक्सीन को आने में आठ महीने का समय लग सकता है।

देश में करीब 30 से ज्यादा कोरोना वैक्सीन पर ट्रायल चल रहा है, लेकिन दो बड़ी कंपनियों हैदराबाद की भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (BBIL) और पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) से देशभर के लोगों की उम्मीद है।

दोनों ही कंपनियां कोरोना की वैक्सीन जल्द को लेकर प्रयासरत है। भारत बायोटेक कंपनी आईसीएमआर यानी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के साथ मिलकर वैक्सीन विकसित करेगी। दूसरी ओर, सीरम की साझेदारी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ भी हुई है, जिसने तीन महीने में वैक्सीन तैयार करने का दावा किया है।

वैक्सीन तैयार करना एक लंबी प्रक्रिया

वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया का सबसे प्राथमिक हिस्सा होता है, किसी भी बीमारी का लक्षण पता करना। इसके बाद उस पर पूरी रिसर्च की जाती है। बीमारी या संक्रमण के छोटे-बड़े लक्षणों को समझने के बाद वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। बड़ी चुनौती यह होती है कि वैक्सीन ऐसे तैयार हो कि बीमारी या संक्रमण को रोकने के लिए कार्य करे। इसके लिए पहले जानवरों पर वैक्सीन का ट्रायल किया जाता है और उसके बाद मानव शरीर पर। दोनों चरणों के ट्रायल में पास होने के बाद ही वैक्सीन आम लोगों के इस्तेमाल के लिए जारी की जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में आठ महीने से लेकर साल भर का समय लगता है। कई वैक्सीन तैयार करने में सालों लग जाते हैं।

सीरम इंस्टीट्यूट से उम्मीद

बात करें सीरम इंस्टीट्यूट की, तो इस कंपनी ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ एक वैक्सीन की 60 मिलियन यानी छह करोड़ डोज का उत्पादन करने के लिए साझेदारी की है। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया उत्पादन और बिक्री के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनियों में है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) से मान्यता प्राप्त इस कंपनी ने क्लिनिकल ट्रायल के बाद सितंबर-अक्टूबर तक दो करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज तैयार करने का दावा किया है। कंपनी खुद भी पांच तरह के वैक्सीन पर प्रयोग कर रही है। हालांकि प्रक्रिया अभी लंबी है।

पूरी तरह देसी वैक्सीन तैयार होगी

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (BBIL) के साथ मिलकर कोविड 19 की वैक्सीन विकसित कर रही है। भारतीय विषाणुविज्ञान संस्थान, पुणे में मौजूद वायरस के स्ट्रेन का उपयोग करेगा। पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में आइसोलेट कर रखे गए कोरोना वायरस के स्ट्रेन को हैदराबाद स्थानांतरित भी कर दिया गया है।

वैक्सीन विकसित करने में इस कंपनी को आईसीएमआर और एनआईवी की ओर से पूरी तरह सहयोग किया जा रहा है। मतलब यह वैक्सीन पूरी तरह से भारत में बनेगी। उम्मीद है कि आने वाले कुछ महीनों में वैक्सीन बन कर तैयार हो जाएगी।

विश्व भर के वैज्ञानिक हैं प्रयासरत

कोरोना की वैक्सीन बनाने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक लगे हुए हैं। अमेरिका, चीन, इजरायल समेत अन्य देश जल्द ही आम जनमानस के लिए वैक्सीन तैयार करने का दावा कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, करीब 100 संस्थाएं इस दिशा में काम कर रही हैं, जिनमें सात से आठ संस्थाएं सकारात्मक परिणामों के साथ आगे चल रही हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक जनरल टेड्रॉस एडहानोम घेबरेसस ने संयुक्त राष्ट्र इकोनॉमिक एंड सोशल काउंसिल को बताया है कि पहले वैक्सीन को तैयार करने में 12 से 18 महीने का समय लगने की संभावना थी, लेकिन दुनिया के 40 देशों, संगठनों और बैंकों से शोध, इलाज और जांच के लिए करीब 800 करोड़ रुपये की मदद मिलने से वैक्सीन बनाने का काम तेज हो गया है।

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