कहां से आया कोरोना / पैंगोलिन और चमगादड़ पर शक गहराया, रिसर्च में पता चला जानवरों में मिला वायरस इंसान में फैले Sars-CoV-2 जैसा
पैंगोलिन-CoV वायरस की संरचना इंसान के SARS-CoV-2 और चमगादड़ के Sars-CoV RaTG13 नाम के वायरस जैसी सिर्फ एक अंतर के आधार पर कहा जा रहा संभव है कि वायरस चमगादड़ से आया और पैंगोलिन के जरिये इंसानों में फैला
- पैंगोलिन-CoV वायरस की संरचना इंसान के SARS-CoV-2 और चमगादड़ के Sars-CoV RaTG13 नाम के वायरस जैसी
- सिर्फ एक अंतर के आधार पर कहा जा रहा संभव है कि वायरस चमगादड़ से आया और पैंगोलिन के जरिये इंसानों में फैला
वुहान. कोरोनावायरस कहां से आया? इस गुत्थी को सुलझाने के लिए दुनिया और संस्थान चीन के पीछे पड़े हैं। तमाम बिखरी कड़ियों को जोड़ने की कोशिश हो रही हैं और अभी तक सारे क्लूज दो जानवरों- पैंगोलिन और चमगादड़ पर जाकर खत्म हो रहे हैं।
अब तक मिले सबूतों से बहुत हद तक ये बात सिद्ध हो रही है कि चमगादड़ से निकले कोरोना के मूल वायरस ने कुछ ताकत पैंगोलिन से ली और फिर एक नए रूप में विकसित होकर इंसानों में Sars-CoV-2 वायरस बनकर फैल गया।
चीन की स्टडी में फिर पैंगोलिन घेरे में
अपनी कई महीनों से चल रही रिसर्च स्टडी में खुद चीन के दो प्रमुख वैज्ञानिक कांगपेंग झियाओ, जुन्कियोनग झाई इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि कोविड-19 महामारी का Sars-CoV-2 वायरस के पनपने में पैंगोलिन और चमगादड़ दोनों की भूमिका है।
जर्नल नेचर में छपी रिपोर्ट के हवाले से इन वैज्ञानिकों को मिले नए सबूत इशारा कर रहे हैं कि इंसानों तक कोरोनावायरस के पहुंचने में मासूम सा नजर आने वाला पैंगोलिन इंटरमीडिएट होस्ट यानी बीच की कड़ी हो सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी बीते दिनों चमगादड़ की भूमिका को संदिग्ध बताया था। इस रिसर्च को पढ़ने वाले भारत में बैटमेन के नाम से मशहूर वन्यजीव जीवविज्ञानी रोहित चक्रवर्ती भी कहते हैं कि कहीं न कहीं चमगादड़ और पैंगोलिन कोरोना के नए वायरस की टूटी कड़ियों को जोड़ सकते हैं।
जीन्स लेवल पर मिली 100% समानता
साउथ चाइना एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ वेटरनरी मेडिसिन के शोधकर्ताओं के रिसर्च पेपर में पहली बार अपने दावे के पक्ष में ठोस सबूत दिए हैं। वैज्ञानिकों ने मलयन प्रजाति के पैंगोलिन और 4 विशेष जीन्स पर फोकस करके निष्कर्ष निकाले हैं। उन्हें पैंगोलिन में जो कोरावायरस ( पैंगोलिन-CoV) मिला है उसका अमीनो एसिड इंसानों में फैले वायरस के जेनेटिक मटेरियल यानी आरएनए से 100%, 98.6%, 97.8% और 90.7% समान है।
स्पाइक प्रोटीन से मिला क्लू
मलयन पैंगोलिन में मिले वायरस में कोशिकाओं पर आक्रमण करके उन्हें पकड़ने वाला स्पाइक प्रोटीन मिला है वह ठीक वैसा ही जिसका इस्तेमाल कोरोनावायरस इंसानों में कर रहा है। इसे विज्ञान की भाषा में रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन कहा जाता है।
वायरस की कड़ियों को जोड़ने में जीवों की जीनोम सीक्वेंसिंग यानी जेनेटिक मटेरियल को क्रम से लगाकर उसकी तुलना करना सबसे अहम प्रक्रिया है। इस नई स्टडी में इसी प्रक्रिया का इस्तेमाल करके वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पैंगोलिन-CoV की संरचना इंसान में फैले नए SARS-CoV-2 और चमगादड़ के Sars-CoV RaTG13 नाम के वायरस के समान है।
एक अंतर ने समझ बढ़ाई
अभी तक यही माना जा रहा है कि चमगादड़ के इसी Sars-CoV RaTG13 से ही नया कोरोनावायरस SARS-CoV-2 पैदा हुआ है। केवल एक अंतर मिला है जो स्पाइक या S जीन का है। वैज्ञानिकों ने दो दिन पहले जब इसी अंतर पर फोकस किया तो समझ में आया कि ये कहीं न कहीं एक से दूसरे जानवर के शरीर में पहुंचा और वहां अपने आप को बदलकर एक नए रूप में पैदा हुआ है। इस तरह संभव है कि वायरस चमगादड़ से आया और पैंगोलिन के जरिये इंसानों में फैला।
मलयन पैंगोलिन की प्रमुख भूमिका
वायरस को सोर्स ढूंढ़ने के लिए चीनी वैज्ञानिक यह स्टडी पिछले साल से कर रहे हैं। इसके बारे में फरवरी के महीने में कुछ बातें सामने आई थीं। वैज्ञानिकों की टीम ने यह स्टडी एक वाइल्ड लाइफ रेस्क्यू सेंटर में चार चीनी पैंगोलिन और 25 मलयन पैंगोलिन पर की। इसमें उनके फेफड़ों से टिश्यूज निकाले गए और उनमें वायरस की मौजूदगी का पता लगाया गया।
इसी क्रम में यह सामने आया कि 25 मलयन पैंगोलिनों में से 17 का आरएनए Sars-CoV-2 जैसे वायरसों के लिए पॉजिटिव है और उनमें धीरे धीरे कोरोना संक्रमण जैसे लक्षण भी सामने आए। इन जानवरों को सांस लेने में तकलीफ होने लगी, वे धीरे धीरे शिथिल होकर पड़ गए और रोने-चिल्लाने लगे। बाद में 17 में से 14 पैंगोलिन मर गए।
पैंगोलिन और चमगादड़ दोनों एक जैसे निशाचर
वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि चूंकि पैंगोलिन और चमगादड़ दोनों निशाचर जानवर हैं, दोनों ही कीड़े खाते हैं, और दुनियाभर में लगभग हर जगह फैले हुए हैं तो इसीलिए ये दोनों जानवर साझेदारी में सार्स परिवार के कोरोनावायरस के लिए आदर्श वाहक हैं और सबूत भी इसी ओर संकेत कर रहे हैं।
स्टडी में वैज्ञानिकों ने इस घटनाक्रम को भी स्पष्ट करते हुए लिखा है कि आमतौर पर बीमारी के कुदरती वाहक में उसके गंभीर लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन उससे यदि बीमारी किसी इंटरमीडिएट होस्ट जानवर में चली जाती है तो वह संक्रमण के क्लीनिकल लक्षण दिखाता है।
पैंगोलिन पर नजर रखें, तस्करी और मांस खाना रोकें
इसी कारण वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में जोर देकर लिखा है कि पैंगोलिन दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी होने वाला जानवर है। हर देश की तस्करों की ये पहली पसंद है और यही बात दुनिया के लोगों के लिए खतरा भी है क्योंकि ये स्तनपायी चींटीखोर जानवर Sars-CoV-2 जैसे वायरसों का भी वाहक है। ऐसे में अगर इसकी तस्करी और व्यापार नहीं रुकता है तो भविष्य में भी कोरोनावायरस पूरी दुनिया में फैलता रहेगा।
इसी वजह से इस रिसर्च पेपर में दुनियाभर की सरकारों से कहा गया है कि उन्हें पैंगोलिन पर एक व्यस्थित ढंग से लम्बे समय तक निगरानी रखकर इस जानवर के अवैध शिकार, तस्करी और व्यापार पर सख्त प्रतिबंध लगा देने चाहिए। इसके मांस को खाने पर तो पूर्ण प्रतिबंध लगा देने की सिफारिश की गई है।
अब तक कोरोनावायरस पर हुई ज्यादातर रिसर्च में इंसानों तक पहला संक्रमण पहुंचने की वजह पैंगोलिन या चमगादड़ बताया गया है। लेकिन हालिया रिसर्च में शोधकर्ताओं का कहना है कि चमगादड़ से कुत्ते में और कुत्ते से इंसान में कोरोनावायरस पहुंचा होगा। यह दावा कनाडा के वैज्ञानिक ने किया है। उनका कहना है कि आवारा कुत्तों का चमगादड़ खाना कोरोना महामारी की वजह हो सकती है। हालांकि इस रिसर्च को ज्यादा वैज्ञानिकों ने खारिज किया और कहा, कुत्तों की देखभाल करने वाले लोगों को इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है।
दावा; कुत्ते की आंतों में पहुंचा वायरस
कनाडा की ओटावा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जुहुआ जिया ने यह रिसर्च की। अब तक 1250 से ज्यादा कोरोनावायरस के जीनोम का अध्ययन कर चुके जुहुआ का कहना है कि सांप और पैंगोलिन में मिले वायरस के स्ट्रेन के कारण असल कड़ी टूट गई है जिसमें यह पता करना था कि चमगादड़ से इंसानों में वायरस कैसे पहुंचा। नए कोरोनावायरस के फैलने की कड़ी में नई जानकारी सामने आई है। चमगादड़ के जरिए यह वायरस कुत्तों की आंत तक पहुंचा और इससे इंसानों में संक्रमण फैला।
विरोध में आए वैज्ञानिक
- कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रोफेसर जेम्स वुड ने इस रिसर्च की आलोचना की है। उनका कहना है कि मुझे यह समझ नहीं आया कि कैसे शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंच गया। यह अतिशियोक्ति है। यह हकीकत से काफी दूर है। रिसर्च में मौजूद जानकारी कुत्तों से इंसान में कोरोनावायरस पहुंचने का समर्थन नहीं करती। यह रिसर्च जर्नल में प्रकाशित भी हो गई, यह भी सोचने वाली बात है।
- पिछले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इस पर एक बयान भी जारी किया है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अब तक पालतू जानवरों से कोरोनावायरस के संक्रमण के प्रमाण नहीं मिले हैं।
- सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लिउनी पेनिंग्स कहते हैं, यह थ्योरी और डेटा एक-दूसरे को सपोर्ट नहीं करते और मैं इस रिसर्च को नहीं मानता।
तर्क दिया, कोरोना शरीर में कमजोर कोशिका ढूंढता है
मॉलीक्युलर बायोलॉजी एंड इवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, इंसानों के शरीर में एक प्रोटीन होता है जिसे जिंक फिंगर एंटीवायरल प्रोटीन (जैप) कहते हैं। यह प्रोटीन जैसे ही कोरोनावायरस के जेनेटिक कोड साइट CpG को देखता है उसपर हमला करता है। अब वायरस अपना काम शुरू करता है और इंसान के शरीर में मौजूद कमजोर कोशिकाओं को खोजता है। कुत्तों में जैप कमजोर होता है इसलिए कोरोनावायरस आसानी से उसकी आंतों में अपना घर बना लेता है।