दवा विवाद / कोलंबिया यूनिवर्सिटी का शोध- मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना में ज्यादा फायदेमंद नहीं, मरीज बच नहीं पा रहे

अमेरिकियों ने डर के चलते दवा जमा करना शुरू किया, एफडीए ने जारी की चेतावनी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन किन मरीजों को दी जाए, इस पर भी डॉक्टर- वैज्ञानिक एकमत नहीं

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न्यूयॉर्क. कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कोरोना संक्रमण के लिए बेहद उपयोगी मानी जा रही मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल पर सवाल उठाए हैं। यूनिवर्सिटी ने करीब 1400 मरीजों पर की गई एक स्टडी में दावा किया गया है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन लेने वाले और न लेने वाले मरीजों की स्थिति में बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा, क्योंकि ये दवा गंभीर मरीजों को बचा नहीं पा रही। ये रिपोर्ट न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपी है।

इस स्टडी में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की उस सलाह पर भी आपत्ति उठाई गई है जिसमें उन्होंने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल बढ़ाने पर जोर दिया था। अमेरिकी सरकार ने 19 मार्च को मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली क्लोरोक्वीन को कोरोना के लिए इस्तेमाल करने की मंजूरी दे दी थी।

1400 मरीजों पर दो समूहों में की गई स्टडी

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन लेने वाले 800 से अधिक मरीजों की तुलना ऐसे 560 मरीजों से की है जिनका इलाज इस दवा की बजाय दूसरे तरीके से किया गया। हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन वाले मरीजों में से कुछ को सिर्फ यही दवा मिली जबकि कुछ मरीजों को एजिथ्रोमाइसिन के साथ मिलाकर दी गई थी।

इन दोनों समूहों के अलग-अलग नतीजों में पता चला कि करीब 1400 मरीजों में से 232 की मौत हो गई और 181 लोगों को वेंटिलेटर पर ले जाना पड़ा। दोनों ही समूहों में ये आंकड़े लगभग बराबर थे। हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल के कारण न तो मरने का जोखिम कम हुआ और न ही वेंटिलेटर की जरूरत को कम किया जा सका।

इस स्टडी को को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ से फंडिंग मिली थी। अप्रैल में शुरू हुई इस स्टडी का मकसद यह देखना था कि क्या ये दवा वायरस के संपर्क में आने वाले फ्रंटलाइन वर्कर्स में संक्रमण को रोकने में मदद कर सकती है।

चेतावनी- दवा का फायदा कम, नुकसान ज्यादा

अचानक जीवन रक्षक बनकर उभरी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन  को लेकर इन अमेरिकी शोधकर्ताओं की सलाह है कि ये दवा फायदे ज्यादा नुकसान कर सकती है। उन्होंने इसके संभावित गंभीर दुष्प्रभाव बताए हैं, जिसमें दिल की धड़कन का अचानक से बेकाबू हो जाना भी है और ये मौत का कारण भी बन सकता है।

एफडीए ने भी औपचारिक अध्ययन के अलावा कोरोनोवायरस संक्रमण के लिए इस दवा के इस्तेमाल को लेकर सचेत किया है। यह चेतावनी इस खबर के बाद आई कि अमेरिकी लोगों ने डर के मारे हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन जमा करना शुरू दिया है।

गंभीर मरीजों को दी जा रही ये दवा

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन अमूमन ऐसे मरीजों को दी जा रही है जो ज्यादा संक्रमित हैं। इसके लिए दुनियाभर में व्यापक रूप से अपनाए जा रहे तरीकों पर ही अमल हो रहा है, लेकिन कोई बहुत अच्छे नतीजे नहीं मिल रहे क्योंकि मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है।

इसका इस्तेमाल मरीज को भर्ती किए जाने के दो दिनों के भीतर शुरू हुआ। क्योंकि पहले के अध्ययनों के कुछ आलोचकों ने कहा था कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन शुरुआत में ही दी जानी चाहिए, न कि मरीज की हालत बिगड़ने के बाद।

ट्रम्प के दबाव में शुरू हुआ इस्तेमाल 

शुरुआती रिसर्च रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि मलेरिया और इम्यून सिस्टम की खतरनाक बीमारी ल्यूपस दवा का कॉम्बिनेशन कोरोना में भी प्रभावी हो सकता है। दुनियाभर से इस तरह के मामले सामने आने के राष्ट्रपति ट्रम्प भी इस दवा के समर्थन में कूद पड़े।

उन्होंने भारत को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन भेजने के लिए अपरोक्ष धमकी भी दे डाली थी और इसके बाद भारत को अपनी पॉलिसी बदलकर अमेरिका को ये दवा भेजनी पड़ी थी। बताया गया है कि ट्रम्प ने इसके इस्तेमाल के लिए अपने देश की सबसे बड़ी नियंत्रक एजेंसी एफडीए पर भी दबाव बनाया।

भारतीय दवा की क्वालिटी पर भी सवाल 

अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. रिक ब्राइट ने बीते दिनों देश के विशेष काउंसिल ऑफिस में भारत से पहुंची हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की क्वालिटी पर शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें कहा गया था कि ट्रम्प प्रशासन के स्वास्थ्य अधिकारियों को भारत से मिल रही कम क्वालिटी वाली मलेरिया की दवा खासकर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर आगाह किया गया था।

डॉ. ब्राइट फिलहाल सेवा से हटा दिए गए हैं। इससे पहले वे बायोमेडिकल एडवांस्ड रिसर्च डेवलपमेंट अथॉरिटी के प्रमुख थे। यह अमेरिका के हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेज (एचएचएस) विभाग की देखरेख में काम करने वाली शोध एजेंसी है।

कोई रामबाण दवा नहीं, वैज्ञानिक हताश हो रहे

यह अवलोकन आधारित स्टडी थी जिसमें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और प्लेसिबो (कोई दवा नहीं) वाले मरीजों के समूह की तुलना की गई। हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि इसके निष्कर्ष मरीजों और उनके परिवारों को उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि, “यह निराशाजनक है कि महामारी में इतने महीनों के बाद भी हमारे पास किसी भी इलाज में, कोई रामबाण दवा इस्तेमाल करने के संतुष्ट करने वाले नतीजे नहीं है।”

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