कोरोना को मात देने के लिए भारत में इंसानी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी होगा विकसित
COVID-19 महामारी को नियंत्रित करने के लिए दवाओं और वैक्सीन्स के विकास के लिए दुनिया भर में कोशिशें जारी हैं. लेकिन ये अनिश्चितताओं के साथ धीमी और महंगी प्रक्रियाएं हैं. इसलिए जल्दी तैनाती के लिए एक थेरेप्यूटिक विकल्प निर्णायक साबित हो सकता है.
-
CSIR-NMITU की प्रोजेक्ट को मिली हरी झंडी, अगले 6 महीने में एंडीबॉडी उपलब्ध कराने का लक्ष्य
कोरोनावायरस संक्रमण की थेरेपी के तौर पर इंसानी मोनोक्लोनल एंटीबॉडिज को विकसित करने वाले प्रोजेक्ट को भारत में हरी झंडी दिखाई गई है. काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) ने अपने फ्लैगशिप प्रोग्राम ‘न्यू मिलेनियम इंडियन टेक्नोलॉजी लीडरशिप इनीशिएटिव’ (NMITLI) के तहत इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है.
- इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व ‘भारत बायोटेक’ की ओर से किया जा रहा है, जो वैक्सीन्स और बायो-थेरेप्यूटिक्स की लीडिंग निर्माता है. ये दुनिया के 65 से अधिक देशों में अपने उत्पादों की सप्लाई करती है. पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी के तहत इस प्रोजेक्ट के लिए नेशनल एकेडमी फॉर सेल साइंस (NCCS) पुणे, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी इंदौर के साथ इंडस्ट्री से प्रेडोमिक्स टेक्नोलॉजिस गुड़गांव और भारत बायोटेक ने हाथ मिलाया है.
- COVID-19 महामारी को नियंत्रित करने के लिए दवाओं और वैक्सीन्स के विकास के लिए दुनिया भर में कोशिशें जारी हैं. लेकिन ये अनिश्चितताओं के साथ धीमी और महंगी प्रक्रियाएं हैं. इसलिए जल्दी तैनाती के लिए एक थेरेप्यूटिक विकल्प निर्णायक साबित हो सकता है.
मौजूदा प्रोजेक्ट का मकसद ज्यादा कारगर और खास इंसानी मोनोक्लोनल एंटीबॉडिज उत्पन्न करके इस तरह का वैकल्पिक थेरेप्यूटिक रेजीम उपलब्ध कराना है. ये एंटीबीडिज SARS-CoV2 वायरस को बेअसर करने में सक्षम हैं. इस तरह के एंटीबॉडिज वायरस से जुड़कर उसे बेअसर कर सकते हैं. इससे संक्रमण के प्रसार को रोका जा सकता है. मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी एक बेहद कारगर और सुरक्षित तरीका है.
- प्रोजेक्ट को CSIR-NMITLI की मंजूरी मिलने पर भारत बायोटेक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ. कृष्णा एल्ला ने खुशी का इजहार किया है. उन्होंने कहा, “सवाल यह है कि उन व्यक्तियों का इलाज कैसे किया जाए जो पहले से संक्रमित हैं? इसके अलावा, हम अभी तक नहीं जानते हैं कि बुजुर्गों और एकसाथ कई बीमारियों वाले लोगों में एक एंटी-SARS-CoV2 वैक्सीन कितना कारगर रहेगा. हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और हृद्य रोग से पीड़ित भारतीयों की बड़ी संख्या को देखते हुए, यह अहम मुद्दा है.”
डॉ. एल्ला के मुताबिक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी एक व्यावहारिक विकल्प प्रदान करेगी. उन्होंने कहा, “इजरायल और नीदरलैंड दोनों ने हाल ही में वायरस को न्यूट्रालाइज करने वाली एंटीबॉडी के विकास की हालांकि घोषणा की है, हमारा नजरिया न्यूट्रिलाइजिंग एंटीबॉडी का ऐसा ताकतवर कॉकटेल विकिसत करना है जो साथ ही वायरस के म्युटेशनल वैरिएंट्स को भी ब्लॉक कर दे.” भारत बायोटेक सारी प्रक्रिया को फास्ट ट्रैक कर रहा है जिससे कि अगले 6 महीने में ही एंटीबॉडिज उपलब्ध हो जाए.